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बुधवार, 1 जुलाई 2020

विजयवाड़ा के गांवों में कपास के खेतों में मजदूरी सिर्फ छोटी बच्चियों को मिलती है, कारण - उनके नाजुक हाथ कपास के फूल को अच्छे से रगड़ते हैं

कोरोनावायरस ने आंध्र प्रदेश के दूर-दराज के गांवों में मौजूद सामाजिक कुरीतियों की पोल खोल दी है। खाने के लाले पड़े तो जरूरतमंद आवाजोंने गांव की पगडंडियों से होते हुए शहरों में शोर मचाना शुरू किया। इन गांवों से शहर तक जाने के लिए सड़क तो है लेकिन यहां के लोग शहरों का रुख कम ही करते हैं।

लॉकडाउन के बाद सरकार के नुमाइंदे खुद गांव पहुंच रहे हैं। बाल मजदूरी, औरतों के साथ मारपीट और खेती में बिचौलिये के शोषण को देखते हुए सरकार ने हर गांव में एक ‘गांव सचिवालय’ बनाया है। जहांएक वॉलंटियर, महिला पुलिसकर्मी, एएनएम, आशा वर्कर, किसान और एक कंप्यूटर ऑपरेटर को तैनात किया गया है। आंध्र प्रदेश के सभी 13 जिलों के हर गांव में यह अभियान चल रहा है।

यहां के गंटूर में मिर्चका सबसे बड़ा बाजार है।मिर्च को बोरे में भरते हुए कामगार।

कपास के खेतों में काम करती हैं कम उम्र की लड़कियां

विजयवाड़ा शहर से लगभग 100 किलोमीटर दूर एक गांव है, कोटापाड़ू। यहां कुछ ऐसी लड़कियां हैं जो आज भी बाल मजदूरी करती हैं। कोरोनाकी वजह सेलड़कियांकमाने नहीं जा सकीं।ये लड़कियां कपास के खेतों में काम करती हैं और मजदूरी के लिए इन्हें यहां बुलाया जाता है।

कासा संस्था के शंकर बताते हैं ‘कपास के खेत दो तरह के होते हैं, मेल कपास और फीमेल कपास। मेल कपास के फूल तोड़कर यह लड़कियां फीमेल कपास के खेत में ले जाती हैं और फूल से फूल को रगड़ने के बादजो बीज बनता है उसेकपास के उत्पादन के लिए अच्छा माना जाता है।’ इस काम के लिए सिर्फ छोटी लड़कियों को ही लगाया जाता है। ऐसा माना जाता है कि वह अपने कोमल हाथों से ज्यादा बेहतर तरीके से इस काम को करपाती हैं।

कोटापाड़ू गांव की एक दलित बस्ती में हर कोई हमें देखकर अपने घर में छिप रहा था, भाग रहा था। उन्होंने मास्क लगाए इंसान कभी नहीं देखे। शंकर बताते हैं कि वह फोटोग्राफर के बड़े बाल और मास्क देखकर डर रहे हैं।

आंध्र प्रदेश के बॉर्डरइलाके में ज्यादातर बच्चे बाल मजदूरी करते हैं। ये कपास के खेतों में काम करते हैं।

काम करते- करते उंगलियां सूज जाती है
11 साल की एन मधु तेलगु में बोलती है। गांव की आंगनवाड़ी टीचर विजया दुर्गा हमारे लिए इसे ट्रांसलेट करती हैं। विजयादुर्गा बताती हैं कि मधु का परिवार खेतिहर मजदूर है। वे कपास और आम के खेतों में काम करते हैं। लेकिन, कपास के खेत के लिए मधु को ही काम मिलता है। मधु के पिता को 250 रुपएदिहाड़ी मिलती है। जबकि मधु को सुबह 10 बजे से शाम के 5 बजे तक के 150 रुपएमिलते हैं।

अगर खेत मालिक से इन्होंने कर्ज लिया है तो दिहाड़ी भी नहीं मिलती। 15 साल की सोनी बीते दो साल से यह काम कर रही है। वह बताती है कि दिन भर उंगलियों से काम करने से रात में उंगलियां सूज जाती हैं। लगातार खेत में खड़े होकरकाम करने से पैरों में बहुत दर्द भी होता है।

यहां न्यूजवीड में आम का बगीचा है। यहां से आम तोड़कर मार्केट में सप्लाई किया जाता है।

उधारी पर चल रहा काम

महालक्ष्मी के पिता बालास्वामी कहते हैं कि बेशक राशन का चावल मिल रहा है। लेकिन, एक आदमी के लिए पांच किलो राशन पहले पूरे महीने चलता था। अब यह राशन 10 दिन में ही खत्म हो रहा है। क्योंकि कोई काम नहीं होने से सभी लोग घर पर ही हैं।वेलोग दिन में एक बार ही खाना खा रहे हैं। बालास्वामी ने गांव के साहूकार से तीन फीसदी ब्याज पर 20 हजार रुपएउधार भी ले रखे हैं।

गांव की 19 साल की सीरिशा गुंटूर एक सेठ के घर 2,000 रुपये महीने पर काम कर रही थी। बीते दो साल से उनके घर बर्तन, झाड़ू, पोछा और बच्चों को संभालने का काम करती थी। लॉकडाउन हुआ तो सेठ ने नौकरी से निकाल दिया। पोतनपल्ली गांव की 15 साल की किरण चंदा भी खेत में मज़दूरी करती है। उसकेमाता- पिता की मौत हो चुकी है। बड़े भाई की मानसिक हालात ठीक नहीं है।इसलिए किरण अपने छोटे भाई के साथ मिलकर घर चलाती है।जरूरत पड़ने पर वह 25 किलो चावल साहूकार से उधार लेतीहै।

ग्राम सचिवालय और कोरोना में 50 घर के उपर एक वॉलियंटर लगाया है। ग्रामीणों की मदद करता एक वॉलियंटर।

गांव में अनूठी पहल की शुरुआत
लॉकडाउन में गांव में शराब पीकर औरतों के साथ मारपीट के मामले अचानक बढ़ गए हैं। जिसे देखते हुए राज्य सरकार ने आंध्र प्रदेश में एक अनूठी शुरूआत की। हर गांव में जो 'गांव सचिवालय' बनाया गया उसमें एक महिला पुलिसकर्मी को तैनात किया गया है। इसके अलावा हर वॉलियंटर को निगरानी के लिए 50-50 घर दिए गए। इनका काम हर घर पर निगाह रखना है कि गांव के किस घर में क्या चल रहा है।

किसकी तबीयत कैसी है, किसे सर्दी-खांसी ज़ुकाम हो रहा है, किस घर में मारपीट हो रही है औरकिस घर में क्या परेशानी है। उन्हें पेंशन और सरकारी राशन मिल रहा है या नहीं। तबियत खराब होने की जानकारी मिलते हीवॉलियंटर एएनएम को सूचित करता है। एएनएम घर जाकर उस इंसान का बुखार और बाकी प्राथमिक जांचें करती हैं।

अगर कोई दिक्कतगड़बड़ मिलती है तो केस आगे रेफर किया जाता है। इस तरह यहां के गावों में कोरोना के मामलों को लेकर नजर रखी जा रही है।यही तरीका है जिससे आंध्र प्रदेश में गांव तक कोविड-19 के मामलों पर नज़र रखी जा रही है।

शराब पीने से अचानक बढ़े घरेलू हिंसा के मामले

विजयवाड़ा से न्यूजवीड के बीच स्थितशराब की दुकान के बाहर लगी कतार।

इसी तरह वॉलियंटर और महिला पुलिस मिलकर उन महिलाओं की मदद कर रही है जो शराबी पतियों से परेशान हैं। कासा जैसी संस्थाएं इन सचिवालयों की मदद से बंधुआ मज़दूरी करने वाली लड़कियों को स्कूल में एडमिशन दिलवा रही हैं। उनके वॉलियंटर लोगों को खेती की जानकारी भी दे रहे हैं। उनके सरकारी फॉर्म भी भर रहे हैं।

आंध्र प्रदेश की गृहमंत्री मेकाथोती सुचारिता बताती हैं कि लॉकडाउन में शराब की दुकानों मेंसाथ बैठकर शराब पीने के अहाते बंद कर दिए हैं। ये तब किया गया जब शराब पीकर मारपीट की घटनाएं अचानक बहुत ज्यादा बढ़ गईं। सरकार ने इसको लेकरसर्वे करवाया तो पता चला किमारपीट इन दुकानों से शराब पीकर घर पहुंचनेके बाद शुरू होती है। इसके बाद 33 फीसदी शराब की दुकानेंबंद की गईं औरकीमतें भी बढ़ा दीगईं।

आंध्र प्रदेश की गृहमंत्री मेखाथोटि सुचरिता ने कहा किशराब से होने वाले राजस्व का विकल्प ढूंढने पर काम चल रहा है।

अगले पांच साल में राज्य में कर दी जाएगी शराबबंदी

गृहमंत्री का कहना है कि अगले पांच सालमें राज्य में शराबबंदी कर दी जाएगी। शराब से होने वाले राजस्व का विकल्प ढूंढने पर काम चल रहा है। आंध्र प्रदेश महिला आयोग की चेयरपर्सन वासी रेड्डी के मुताबिक, लॉकडाउन में महिला आयोग के पास हर महीने300 शिकायतें आईं। वहकहती हैं कि लॉकडाउन की वजह सेमहिलाएं कम ही आई।

इसलिए घटनाओं का यह आंकड़ा कहीं ज्यादा है। आंध्र प्रदेश में एक अम्मावाड़ी योजना है, जिसके तहत महिला के अकाउंट में सरकार की ओर से बच्चों को पढ़ाने के लिए सालाना 15 हजार रुपएडाले जाते हैं, लेकिन लॉकडाउन में महिलाओं से ज़बरदस्ती पैसे छीनने के मामले भी सामने आए हैं।



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तस्वीर आंध्र प्रदेश के कोटापाड़ू गांव की है। ये बच्चियां बाल मजदूरी की शिकार हैं, कपास के खेतों में इनसे काम कराया जाता है।


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टिक टॉक की पैरेंट कंपनी ने 2019 में 1.33 लाख करोड़ रुपए का कारोबार किया, इसमें भारत की हिस्सेदारी महज 43.7 करोड़ रुपए की

सुरक्षा खतरों को लेकर सोमवार शाम भारत ने 59 ऐप्स पर बैन लगा दिया, लेकिन चर्चा रही तो केवल टिक टॉक की। देश में यह ऐप न केवल युवाओं की पहली पसंद है बल्कि इसने रातों रात वीडियो बनाने वाले सैकड़ों युवाओं को स्टार बना दिया। इस ऐप पर देश में पोर्न/ अश्लील कंटेंट से लेकर डेटा सुरक्षा समेत कई आरोप लग चुके हैं।बावजूद इसके इसकी पॉपुलेरिटी पर कोई असर नहीं पड़ा।

भारत-चीन के बीच विवाद के बाद लगे बैन ने देश में इस ऐप के भविष्य पर सवाल खड़ा कर दिया है। वर्तमान में यह दुनिया का सबसे ज्यादा वैल्यूएबल ऐप है। न्यूयॉर्क के इनवेस्टमेंट फंड टाइगर ग्लोबल मैनेजमेंट की रिपोर्ट के मुताबिक, सेकेंडरी मार्केट में वैल्यूएशन 105 से 110 बिलियन डॉलर (7.9 लाख करोड़ से 8.3 लाख करोड़ रुपए) के बीच है।

2018 में 3 बिलियन डॉलर (करीब 21 हजार करोड़ रुपए) के निवेश के बाद कंपनी की वैल्यूएशन 75 अरब डॉलर (5.6 लाख करोड़ रुपए) थी। यह निवेश सॉफ्टबैंक के सोन की तरफ से किया गया था।फाइनेंशियल टाइम्स और विशेषज्ञों के मुताबिक, प्रस्तावित आईपीओ में कंपनी की वैल्यूएशन 180 बिलियन डॉलर (13.5 लाख करोड़ रुपए) तक जा सकती है।

कोरोना टाइम में भारी भरकम फंड जुटाने वाली जियो भी काफी पीछे
टिक टॉक की पैरेंट कंपनी बाइट डांस भारी-भरकम वैल्यूएशन का अंदाजा जियो प्लेटफॉर्म की तुलना से भी लगाया जा सकता है। आज की तारीख में फंड जुटाने के लिए चर्चित जियो प्लेटफॉर्म की वैल्यूएशन 65 बिलियन डॉलर या 5.16 लाख करोड़ रुपए ही है।

जबकि बाइट डांस की वैल्यूएशन 8.3 लाख करोड़ तक पहुंच गई है और आइपीओ तक इसमें और तेजी से बढ़ोतरी का अनुमान है। टिक टॉक की तरह जियो प्लेटफॉर्म भी टेलीकॉम के साथ कई तरह की सेवाएं देती हैं। बाइट डांस के पास भी कई ऐप हैं। इसमें Toutiao, BaBe, Lark; Helo का नाम शामिल है। लेकिन, टिकटॉक सबसे ज्यादा फेमस है।

क्या भारत के बैन लगाने से टिकटॉक के आईपीओ पर असर पड़ेगा?
भारत टिक टॉक ऐप इस्तेमाल करने वाले टॉप देशों में शामिल है। लेकिन, रेवन्यू के हिसाब से भारत टिकटॉक की पैरेंट कंपनी बाइट डांस के टॉप 10 देशों में भी नहीं है। इसको ऐसे समझते हैं कि 2019 में बाइट डांस का दुनिया भर में रेवन्यू 1.33 लाख करोड़ रुपए रहा और इसमें भारत की हिस्सेदारी महज 43.7 करोड़ रुपए रही।

भारत कंपनी के लिए दूसरा सबसे बड़ा बाजार है, लेकिन कारोबारी हिस्सेदारी बेहद कम होने के कारण कंपनी के ऊपर तुरंत कोई असर नहीं पड़ेगा। इस कारण कंपनी के प्रस्तावित आईपीओ पर भी खास असर नहीं पड़ेगा। लंबे समय में कंपनी को कारोबार में नुकसान जरूर होगा।

2019 की पहली छमाही में बाइट डांस को 49 हजार करोड़ का प्रॉफिट
2019 की पहली छमाही के दौरान टिकटॉक को 49 हजार करोड़ रुपए (7 बिलियन डॉलर) का प्रॉफिट हुआ। इसे 70 रुपए प्रति डॉलर के हिसाब से कैल्कुलेट किया गया है। कंपनी ने 14 बिलियन डॉलर के रेवन्यू का लक्ष्य रखा था, लेकिन उसने 17 बिलियन डॉलर कमाए। 2018 में कंपनी का रेवन्यू 7.2 बिलियन डॉलर रहा था।

कंपनी के पास 6 बिलियन डॉलर (45 हजार करोड़ रुपए) का कैश भी है। डेटा ब्लूमबर्ग, प्राइवेट फाइनेंशियल टाइम्स और प्राइवेट इक्विटी से मिली सूचना के आधार पर है।

बाइटडांस को भारत से कमाई
2019 में बाइटडांस ने भारत में 43.7 करोड़ रुपए का कारोबार किया। कंपनी को 3.4 करोड़ का रुपए का प्रॉफिट हुआ। अमेरिका से कंपनी को 650 करोड़ का रेवेन्यू मिला था। वहीं, चीन से कंपनी को 2500 करोड़ रुपए का रेवेन्यू मिला। कारोबारी रेवेन्यू के हिसाब से भारत बाइटडांस के टॉप 10 देशों में शामिल नहीं है।

हाल के महीनों में यूजर्स की संख्या में तेजी से बढ़ोतरी
ऐप्स बिजनेस कारोबार पर नजर रखने वाली सेंसर टॉवर के मुताबिक, टिक टॉक के यूजर बेस में तेजी से इजाफा हो रहा है। 29 अप्रैल के डेटा के अनुसार, दुनिया भर में टिक टॉक 200 करोड़ बार डाउनलोड किया गया। पिछले पांच महीने के दौरान ही 50 करोड़ बार से ज्यादा डाउनलोड किया गया। दुनियाभर में टिक टॉक के 80 करोड़ एक्टिव यूजर्स हैं।

नए यूजर्स में सबसे ज्यादा भारत से
2020 में टिक टॉक के सबसे ज्यादा नए यूजर्स भारत से आए। मई में भारत में इस ऐप को 61.1 करोड़ बार डाउनलोड किया गया। 19.6 करोड़ डाउनलोड के साथ चीन दूसरे नंबर पर रहा। 16.5 करोड़ डाउनलोड के साथ अमेरिका तीसरे नंबर पर रहा।

बाइटडांस को दुनिया के दूसरे देशों में भी विवादों का सामना करना पड़ा है

  • इंडोनेशिया ने 3 जुलाई 2018 को अश्लील वीडियो और दूसरे कई आरोपों को लेकर ऐप को अस्थायी रूप से बंद कर दिया था। नकारात्मक कंटेंट हटाने, ऑफिस खोलने और उम्र प्रतिबंध और सिक्योरिटी को मजबूत करने सहित कई बदलाव करने के एक सप्ताह बाद ऐप को अनब्लॉक कर दिया गया था।
  • Tencent के WeChat मंच पर डॉयिन के वीडियो को अवरुद्ध करने का आरोप लगा। डॉयिन को ही बाद में टिक टॉक के नाम से लॉन्च किया गया। अप्रैल 2018 में, डॉयिन ने Tencent पर मुकदमा दायर किया और उस पर अपने WeChat प्लेटफॉर्म पर झूठी और हानिकारक जानकारी फैलाने का आरोप लगाया। जून 2018 में, Tencent ने टाउटियाओ और डॉयिन के खिलाफ मुकदमा दायर किया।
  • 27 फरवरी 2019 को, यूनाइटेड स्टेट फेडरल ट्रेड कमीशन ने 13 वर्ष से कम आयु के नाबालिगों से जानकारी एकत्र करने के लिए बाइटडांस यूएस $ 5.7 मिलियन का जुर्माना लगाया। बाइटडांस ने टिक टॉक में किड्स-ओनली मोड जोड़कर जवाब दिया जो वीडियो अपलोड करने, यूजर प्रोफाइल के निर्माण, डायरेक्ट मैसेजिंग और दूसरे के वीडियो पर कमेंट करने के दौरान ब्लॉक करता है, जबकि अभी भी कंटेंट को देखने और रिकॉर्डिंग की अनुमति देता है।
  • 3 अप्रैल 2019 को, मद्रास उच्च न्यायालय ने एक जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए भारत सरकार से "अश्लील साहित्य को प्रोत्साहित करने" का हवाला देते हुए ऐप पर प्रतिबंध लगाने के लिए कहा था। अदालत ने यह भी कहा कि ऐप का उपयोग करने वाले बच्चों को यौन शिकारियों द्वारा लक्षित किए जाने का खतरा था। 17 अप्रैल को, Google और Apple दोनों ने TikTok को Google Play और ऐप स्टोर से हटा दिया था। 25 अप्रैल 2019 को, तमिलनाडु में एक अदालत द्वारा ऐप के डाउनलोड को प्रतिबंधित करने के अपने आदेश को रद्द करने के बाद प्रतिबंध हटा लिया गया था।
  • हाॅन्गकॉन्ग के प्रर्दशनों के वीडियो को सेंसर करने के लिए सितंबर 2019 में टिक टॉक की कड़ी निंदा की गई थी। ऐप के ऊपर आरोप लगे थे कि उसने डेमोक्रेसी को समर्थन देने वाले वीडियो कंटेंट को रोका था। फेसबुक के सीईओ मार्क जकरबर्ग कीआलोचना के बाद इंटेरनेशनल स्तर पर मामला काफी चर्चा में रहा था।

2012 में शुरू हुई थी बाइटडांस
झांग यिमिंग ने 2012 में बाइटडांस की शुरुआत की थी। झांग यिमिंग का सोचना रहा है कि खुद को जताने में विश्वास रखने वाली नई पीढ़ी अच्छी-खराब अपनी हर तरह की वास्तविक भावनाएं व्यक्त करना चाहती है। इसलिए उन्होंने छोटे-छोटे म्यूजिक वीडियो को लेकर काम की शुरुआत की। इसमें आर्टिफीशियल इंटेलीजेंस का भी इस्तेमाल किया गया। इस समय वह 13.5 अरब डॉलर की कुल पूंजी के साथ हुरून चाइना रिच लिस्ट के टॉप 20 अमीरों में गिने जाते हैं।



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TikTok App Ban in India/ByteDance Valuation Impact; Everything You Need To Know, Know Many Indians Use TikTok; Tick Tok's parent company did a business of Rs 1.33 lakh crore in 2019, India's share in it was just Rs 43.7 crore


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सरकार के पास अभी इतना अनाज कि 15 महीने तक बांट सकती है, बिहार में चुनाव से पहले 5 महीने तक 8.5 करोड़ गरीबों को फायदा मिलेगा

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी मंगलवार को जनता के सामने आए और देश के 80 करोड़ गरीब लोगों को मुफ्त अनाज देने वाली योजना नवंबर तक यानी 5 महीने के लिए बढ़ा गए। मोदी जिस योजना को बढ़ाकर गए हैं, उसका नाम है- प्रधानमंत्री गरीब कल्याण अन्न योजना।

मोदी ने देश की जनता को संबोधित करते हुए 16 मिनट के भाषण में बिहार के लोकपर्व छठ का दो बार जिक्र किया। छठ का जिक्र करने केपीछे भी एक वजह और वो ये कि बिहार में अक्टूबर-नवंबर में विधानसभा चुनाव हैं।

गृहमंत्री अमित शाह ने तो जून में ही बिहार में वर्चुअल रैली कर चुनावी अभियान की शुरुआत कर दी थी और अब प्रधानमंत्री मोदी भी चुनावी मूड में आ गए हैं। हालांकि, मोदी ने जिस योजना को नवंबर तक बढ़ाया है, वो अप्रैल से ही लागू हो गई है।

सबसे पहले बात, क्या है मुफ्त अनाज की योजना?
मोदी सरकार ने मार्च में कोरोनावायरस के दौर में प्रधानमंत्री गरीब कल्याण पैकेज की शुरुआत की थी। इस पैकेज के लिए 1.70 लाख करोड़ रुपए रखे गए हैं। इसी पैकेज में अन्न योजना भी शुरू हुई थी, जिसमें देश के 80 करोड़ से ज्यादा गरीबों को हर महीने 5 किलो गेहूं या चावल और 1 किलो दाल मुफ्त देने की घोषणा की थी।

इस योजना के तहत जिन लोगों के पास राशन कार्ड है, उन्हें हर महीने ये मुफ्त अनाज उनके मौजूदा अनाज के कोटे से अलग मिलेगा। इसे ऐसे समझिए कि राशन कार्ड धारकों को पहले भी 5 किलो अनाज और 1 किलो दाल मिलती थी। हालांकि, इसके लिए उन्हें कुछ पैसे चुकाने पड़ते हैं। जबकि, अन्न योजना के तहत उन्हें मुफ्त ही मिलेगा।

अगर किसी परिवार में एक राशन कार्ड में 5 लोगों का नाम जुड़ा है। तो परिवार के हर सदस्य को अन्न योजना के तहत तो 25 किलो अनाज और 1 किलो दाल मुफ्त मिलेगी। इसके अलावा 25 किलो अनाज और 1 किलो दाल भी कुछ पैसे देकर खरीद सकते हैं।

पीएम मोदी ने देश के नाम संबोधन में बताया था कि इस योजना के 5 महीने बढ़ाने पर सरकार 90 हजार करोड़ रुपए खर्च करेगी। जबकि, अप्रैल से ही गरीबों को मुफ्त अनाज मिल ही रहा है। तो इस तरह कुल 8 महीने में इस योजना पर सरकार 1.5 लाख करोड़ रुपए खर्च कर रही है।

बिहार में कितने लोगों को फायदा मिलेगा?
30 मार्च को डिपार्टमेंट ऑफ फूड एंड डिस्ट्रीब्यूशन ने एक आदेश जारी किया था। ये आदेश देश के सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के लिए जारी किया गया था। इस आदेश में लिखा गया था कि केंद्र सरकार की प्रधानमंत्री गरीब कल्याण अन्न योजना के तहत देशभर के 80.95 करोड़ गरीब लोगों को 3 महीने तक 5 किलो गेहूं या चावल और 1 किलो दाल मुफ्त मिलेगी।

इस आदेश के मुताबिक, उत्तर प्रदेश में सबसे ज्यादा 15.20 करोड़ लोगों को मुफ्त अनाज मिलेगा। दूसरे नंबर पर बिहार है, जहां के 8.57 करोड़ लोगों को मुफ्त अनाज मिलेगा। यानी, देशभर में जितने गरीब लोगों को मुफ्त अनाज मिलेगा, उसका 10% हिस्सा बिहार में जाएगा।

अप्रैल से जून तक कितना अनाज बंटा?
पीआईबी के मुताबिक, प्रधानमंत्री गरीब कल्याण अन्न योजना के तहत अप्रैल से जून के तीन महीनों के लिए कुल 104.3 लाख मीट्रिक टन चावल और 15.2 लाख मीट्रिक टन गेहूं की जरूरत थी। इसमें से 101.02 लाख मीट्रिक टन चावल और 15 लाख मीट्रिक टन गेहूं अलग-अलग राज्यों और यूटी से लिया गया था। यानी कुल 116.02 लाख लीट्रिक टन अनाज।

सरकार की तरफ से इस योजना के तहत अप्रैल में 37.02 लाख मीट्रिक टन अनाज 74.05 करोड़ (93%) लोगों को दिया गया। मई में 36.49 लाख मीट्रिक टन अनाज 72.99 करोड़ (91%) लोगों को दिया गया और जून में 28.41 लाख मीट्रिक टन अनाज 56.81 करोड़ (71%) लोगों को मिला।

चावल और गेहूं के लिए सरकार ने 46 हजार करोड़ रुपए खर्च किए थे, जिसका पूरा खर्चा केंद्र सरकार ने ही उठाया था।

वहीं, तीन महीनों के लिए कुल 5.87 लाख मीट्रिक टन दाल की जरूरत थी। इसके लिए 5 हजार करोड़ रुपए का खर्च केंद्र सरकार ने ही उठाया। अप्रैल से जून तक 4.40 लाख मीट्रिक टन दाल बांटी जा चुकी है।

अभी कितना अनाज स्टॉक में है?
फूड कॉर्पोरेशन ऑफ इंडिया की वेबसाइट पर मौजूद डेटा के मुताबिक, जून तक सरकार के पास 832.69 लाख मीट्रिक टन अनाज है। इसमें 274.44 लाख मीट्रिक टन चावल और 558.25 लाख मीट्रिक टन गेहूं है।

चावल और गेहूं के अलावा 18 जून तक 8.76 लाख मीट्रिक टन दालें स्टॉक में थीं। इसमें 3.77 लाख मीट्रिक टन तुअर दाल, 1.14 लाख मीट्रिक टन मूंग दाल, 2.28 लाख मीट्रिक टन उड़द दाल, 1.30 लाख मीट्रिक टन चना दाल और 0.27 लाख मीट्रिक टन मसूर दाल है।

सरकार के मुताबिक, नेशनल फूड सिक्योरिटी एक्ट यानी एनएफएसए और दूसरी योजनाओं के तहत हर महीने करीब 55 लाख मीट्रिक टन अनाज की जरूरत होती है। इस हिसाब से जून 2020 तक सरकार के पास जितना अनाज स्टॉक में है, उससे वो अगले 15 महीने तक गरीबों में अनाज बांट सकती है।

आखिरी बात, इन सबके जरिए कैसे बिहार को टारगेट कर रही है सरकार?
प्रधानमंत्री मोदी जब 30 जून को जनता को संबोधित करने आए तो उन्होंने छठ पूजा का दो बार जिक्र किया। छठ बिहार का लोकपर्व है। इसलिए ही उनके संबोधन को बिहार चुनाव की तैयारियों से जोड़ा गया।

चुनाव आयोग के मुताबिक, 2019 के लोकसभा चुनाव के वक्त बिहार में 7.10 करोड़ वोटर्स थे। इनमें से 4.10 करोड़ ने ही वोट डाला था। जबकि, बिहार में गरीबों की संख्या उत्तर प्रदेश के बाद सबसे ज्यादा है।

राज्य में अक्टूबर-नवंबर में चुनाव हो सकते हैं। और नवंबर तक ही गरीबों को मुफ्त अनाज बांटा जाएगा। वहां इस योजना का जितने लोगों को फायदा मिलेगा, उनकी संख्या 8.5 करोड़ से ज्यादा है।

2015 के विधानसभा चुनाव में भाजपा को वोट शेयर सबसे ज्यादा 25% था। उसे 93 लाख से ज्यादा वोट मिले थे। हालांकि, उस चुनाव में भाजपा राज्य की 243 विधानसभा सीटों में से 53 ही जीत सकी थी।

उसके बाद 2019 के लोकसभा चुनाव में भी भाजपा को 96 लाख से ज्यादा वोट मिले थे। उसका वोट शेयर 24% से ज्यादा था। उसने 40 में से 17 सीटें जीती थीं।

अगर मान लें कि जिन लोगों को मुफ्त अनाज मिल रहा है, उनमें से 10% लोग ही वोटर्स होंगे, तो ये संख्या 85 लाख से ज्यादा होती है। अगर इन 85 लाख वोटर्स में से भी ज्यादातर लोग भाजपा को वोट देते हैं, तो उसे चुनाव में इसका बड़ा फायदा मिलने का अनुमान है।



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Bihar Assembly Election 2020/PM Garib Kalyan Yojana (PMGKY) News Updates: 8.5 Crore People Will Get 5 Kg Of Ration Till November


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दूसरे देशों से प्रवासी जो पैसा घर भेजते हैं उसमें 20% की कमी, भारत में 23% की गिरावट; गरीबी, भूखमरी और मानव तस्करी के मामले बढ़ सकते हैं

नेपाल की रहने वाली शीबा काला एक हाउस वाइफ हैं। कभी शाम का खाना खाती हैं तो सुबह का नहीं और सुबह का खाती हैं तो शाम का नहीं। वह हर रोज एक वक्त का खाना छोड़ देती हैं ताकि उनकी पांच साल की बच्ची भूखी न रहे। शीबा के पति गल्फ कंट्री कतर में जॉब करते थे। कोरोनाकाल में उनकी नौकरी चली गई। इसलिए वे अब घर पर पैसे नहीं भेज पा रहे हैं। शीबा बताती हैं कि उनके पति पहले हर महीने करीब 12 हजार रुपए भेजते थे जिससे फ्लैट का किराया और घर की जरूरतें पूरी होती थीं। पिछले 6 महीने में उन्हें सिर्फ 25 हजार रुपए मिले हैं।

शीबा की तरह ही नेपाल की राधा मरासिनी भी आर्थिक तंगी से जूझ रही हैं। उनके पति भारत के लुधियाना में एक फैक्ट्री में गार्ड की नौकरी करते थे। लॉकडाउन में उनकी नौकरी चली गई। जो कुछ पैसे पति भेजते थे वह बंद हो गया। मजबूरी में राधा को कर्ज लेकर घर चलाना पड़ रहा है। शीबा और राधा की तरह करोड़ों ऐसे लोग हैं जिन्हें कोरोनाकाल में आर्थिक तंगी का शिकार होना पड़ा है।

कोरोना की वजह से ग्लोबल रेमिटेंस में 20 % की कमी
वर्ल्ड बैंककी रिपोर्ट के मुताबिक इस साल कोरोना की वजह से दुनियाभर में रेमिटेंस में 20 फीसदी से ज्यादा की कमी आएगी। रिपोर्ट के मुताबिक साल 2019 में दुनियाभर में एक देश से दूसरे देश में करीब 40 लाख करोड़ रुपए रेमिटेंस के तौर पर भेजे गए। इस साल कोरोना की वजह से भारी संख्या में लोगों की नौकरियां गई हैं। इसका सीधा-सीधा असर रेमिटेंस पर पड़ा है। इस साल 20 फीसदी घटकर रेमिटेंस करीब 33 लाख करोड़ रहने का अनुमान है। यानी करीब 7 लाख करोड़ रुपए की कमी।

भारत में करीब 13 करोड़ प्रवासी दूसरे राज्यों में काम करने के लिए जाते हैं। लॉकडाउन की वजह से ज्यादातर की नौकरी चली गई है।

रेमिटेंस क्या होता है
दरअसल दुनियाभर में लोग रोजगार की तलाश में एक देश से दूसरे देश में जाते हैं और वहां से अपने घर कुछ पैसे भेजते हैं। जिससे उनका घर चलता है। इस राशि को रेमिटेंस कहा जाता है। खाड़ी देशों में बसे भारतीय सबसे अधिक रेमिटेंस भेजते हैं। इसके अलावा अमेरिका, ब्रिटेन, ऑस्ट्रेलिया और कनाडा जैसे विकसित देशों में काम करने वाले भारत में अपने परिवार के लिए पैसे भेजते हैं।

जो प्रवासी दूसरे देशों से अपने देश रेमिटेंस के तौर पर राशि भेजते हैं उसका करीब 75 फीसदी खाने-पीने जैसी जरूरी चीजों के लिए उपयोग किया जाता है। 10 फीसदी शिक्षा पर और बाकी 15%बचत के रुप में इस्तेमाल किया जाता है।

भारत में रेमिटेंस में 23 फीसदी की गिरावट

भारत में भी रेमिटेंस पर कोरोना का बुरा प्रभाव पड़ा है। वर्ल्ड बैंक की रिपोर्ट के मुताबिक भारत में इस साल रेमिटेंस में 23 फीसदी कमी का अनुमान है। पिछले साल भारत में दूसरे देशों से लोगों ने करीब 6 लाख करोड़ रुपए भेजे थे। इस साल यह आंकड़ा घटकर 4.8 लाख करोड़ रहने का अनुमान है। भारत की तरह ही दुनिया के दूसरे देशों के भी रेमिटेंस पर कोरोना का असर पड़ा है। साउथ एशिया में27.5 फीसदी कमी का अनुमान है। वहींपाकिस्तान में 23%, नेपाल में 19%, श्रीलंका में 14% और बांग्लादेश में करीब 22 फीसदी गिरावट का अनुमान है।

रेमिटेंस प्राप्त करने वाले देशों में भारत नंबर 1 पर

दुनियाभर में रहने वाले प्रवासी करीब 3 लाख करोड़ रुपएकमाते हैं। इसका 15 फीसदीअपने घर भेजते हैं। यूएन की एक रिपोर्ट के मुताबिक, करीब 200 मिलियन (20 करोड़) प्रवासी दूसरे देशों में काम करते हैं। वे दूसरे देशों से जो एमाउंटअपने घर भेजते हैं, उससे करीब 800 मिलियन ( 80 करोड़)लोगों को सपोर्ट मिलता है।

इंटरनेशनल लेबर ऑर्गनाइजेश की एक रिपोर्ट के मुताबिक, भारत के ज्यादातर प्रवासी खाड़ी देशों में काम करते हैं। इनमें से 90 फीसदी लो या सेमी स्किल्ड हैं। इनमें से ज्यादातर की नौकरी कोरोना महामारी की वजह से गई है।

रेमिटेंस सोर्स वाले टॉप देश

रिपोर्ट के मुताबिक, अमेरिका, सउदी अरब, रूस, यूएई. जर्मनी, कुवैत, फ्रांस, कतर, इंग्लैंड और इटली ये 10 ऐसे देश हैं, जहां से सबसे ज्यादा रेमिटेंस दूसरे देशों में भेजे जाते हैं।

जीडीपी में महत्वपूर्ण स्थान

रेमिटेंस किसी देश की जीडीपी में भी महत्वपूर्ण स्थान रखता है। एक रिपोर्ट के मुताबिक, टॉप रेमिटेंस वाले देश अपनीजीडीपी का 10 फीसदी कवर करते हैं।2018 की रिपोर्ट के मुताबिक, भारत की जीडीपी में रेमिटेंस का योगदान 2.9 फीसदी था। पाकिस्तान की जीडीपी 6.7 फीसदी, नेपाल की जीडीपी 28 फीसदी, बरमूडा की जीडीपी में 22 फीसदी, चीन की जीडीपी में 0.2 फीसदी योगदान रहा।

डोमेस्टिक रेमिटेंस में 80 फीसदी की कमी
भारत में काम करने वाले प्रवासी हर साल करीब 2 लाख करोड़ रुपए रेमिटेंस के तौर पर अपने घरों में भेजते हैं। वर्ल्ड बैंक की रिपोर्ट (अप्रैल 2020) के मुताबिक, कोरोना के कारण करीब 4 करोड़प्रवासियों ने पलायन किया है। डोमेस्टिक रेमिटेंस में इस साल 80 %गिरावट का अनुमान है।

इकोनॉमी सर्वे 2017 की रिपोर्ट के मुताबिक, भारत में करीब 13 करोड़ प्रवासी दूसरे राज्यों में काम करने के लिए जाते हैं। इनमें बिहार और उत्तर प्रदेश के प्रवासीकरीब 60 फीसदी रेमिटेंस के तौर पर घर भेजते हैं।

गरीबी, भूखमरी, अपराध और मानव तस्करी के मामले बढ़ेंगे

रेमिटेंस में कमी का असर लोगों के रोजमर्रा की जिंदगी पर तो पड़ेगा ही साथ ही इससे गरीबी, भूखमरी, अपराध, मानव तस्करी और वेश्यावृत्ति बढ़ने का भी अनुमान है। क्योंकि रेमिटेंस भेजने वालों में ज्यादातर लोग गरीब वर्ग के होते हैं। नेपाल इंस्टीट्यूट ऑफ डेवलपमेंट स्टडीज थिंक-टैंक के विशेषज्ञ गुरुंग का मानना है,"बिना रेमिटेंस के इन परिवारों की आर्थिक स्थिति खराब हो जाएगी और ये लोग गलत रास्तों पर चलने के लिएमजबूर हो जाएंगे।"



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Global Remittances Drop 2020 : World Bank predicts global Remittances will fall by 20%,India Likely to Decline by 23%


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एक्सीडेंट के बाद कोरोना रिपोर्ट आई तो बंद कर दिया इलाज, ऐसे अस्पताल में भेज दिया जहां उसकी बीमारी का इलाज करने वाले थे ही नहीं

अबरार रेयाज सोफी 24 साल के थे और सेंट्रल यूनिवर्सिटी ऑफ कश्मीर से बीए एलएलबी कर रहे थे। यह उनका आठवां सेमेस्टर था। 27 जून को वो स्विफ्ट कार से पापा और चाचा के साथ एसके इंस्टीट्यूट ऑफ मीडिया साइंसेज (सौरा) गए थे।वहां से शोपियां के लिए लौट ही रहे थे कि रास्ते में एक ट्रक ने कार को टक्कर मार दी। टक्कर इतनी जोर से हुई कि तीनों बुरी तरह घायल हो गए। हॉस्पिटल लाते वक्त ही चाचा की जान चली गई। पापा को मल्टीपल फ्रेक्चर आए और वो बेहोश हो गए। अबरार की हालत इतनी खराब थी कि उन्हें सीधे श्रीनगर के एसएमएचएस हॉस्पिटल में वेंटिलेटर पर शिफ्ट कर दिया गया।

अबरार का जब सिटी स्कैन हुआ, तभी उन्हें उल्टी आना शुरू हो गईं। इस कारण उनकी सांस की नली में खाना चला गया। फिर उन्हें आईसीयू में शिफ्ट कर दिया गया। यह कहना था अबरार के परिचित का। उन्होंने अबरार को पढ़ाया भी है। उन्होंने बताया किमुझे फेसबुक से पता चला कि अबरार का एक्सीडेंट हुआ है। वो मेरे स्टूडेंट रहे हैं। मैं 12 बजे हॉस्पिटल पहुंचा। डॉक्टर्स ने बताया कि अबरार की हालत बहुत ज्यादा सीरियस है।

उन्हें ब्रेन में काफी चोट आई है।डॉक्टर्स भी हैरान थे लेकिन बॉडी में सुधार से हम सबके दिल में उम्मीद की एक आशा जाग गई थी।सोमवार सुबह उसका कोरोनावायरस का सैम्पल लिया गया। दोपहर एक बजे फोन पर पता चला कि अबरार कोरोना पॉजिटिव हैं। कोविड कंट्रोल रूम से फोन पर किसी ने यह जानकारी दी, कोई रिपोर्ट या आधिकारिक मैसेज नहीं मिला।

रिपोर्ट आते ही बदल गईं प्रायोरिटीज

कोरोना रिपोर्ट आते ही हॉस्पिटल की प्रोयोरिटीज चेंज हो गईं। डॉक्टर्स की जो टीम पहले अबरार को ठीक करने की कोशिशों में लगी थी, वो ही उन्हें किसी कोविड अस्पताल में शिफ्ट करने की तैयारी में लग गई।सोमवार सुबह अबरार का एक और सिटी स्कैन होना था लेकिन कोरोना पॉजिटिव आने के बाद उसे टाल ही दिया गया। डॉक्टर्स यह माइंड सेट कर चुके थे कि इस पेशेंट को कोरोना हॉस्पिटल में एडमिट करना है।

कोरोना रिपोर्ट पॉजिटिव आते ही उन्हेंचेस्ट डिजीज (सीडी) अस्पताल में भेज दिया गया।

हमारा कॉमन सेंस कह रहा था कि पेशेंट का यहीं इलाज होना चाहिए क्योंकि उसकी हालत बहुत क्रिटिकल है। इसके बावजूद उसे चेस्ट डिजीज (सीडी) अस्पताल में शिफ्ट करने की प्रॉसेस शुरू कर दी गई। यह सरकारी अस्पताल है, जहां सिर्फ सर्दी-खांसी का इलाज होता है। यहां कोई क्रिटिकल केयर जैसी यूनिट नहीं है। ट्रामा केयर जैसा कोई कांसेप्ट ही यहां नहीं है।

पहले रात में रखने का बोला, फिर शिफ्ट कर दिया
हम लोगों ने डॉक्टर्स को सजेस्ट किया कि आप यहां की बजाए अबरार को एसके इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज (सौरा) में शिफ्ट कर दें, क्योंकि वहां कोरोना मरीज का इलाज भी होता है और न्यूरोसर्जरी की बेहतर सुविधाएं भी हैं। लेकिन, एसएमएचएस के डॉक्टर्स ने कहा कि एसकेआईएमएस में वेंटिलेटर उपलब्ध नहीं हैं। जबकि वो लोग भी ये बात समझ रहे थे कि एसकेआईएमएस में ही बेहतर ईलाज हो सकता है। मैंने एसकेआईएमएस में बात की तो उन्होंने मुझे भी कहा कि हमारे पास बेड नहीं हैं।

परिवार ने तो अभी तक अबरार की कोरोना रिपोर्ट देखी भी नहीं। उन्हें ये भी नहीं पता कि सच में अबरार कोरोना पॉजिटिव थे भी या नहीं।

काफी रिक्वेस्ट करने पर एसएमएचएस के डॉक्टर्स ने कहा कि हम रात में अबरार को यहीं रखते हैं। सुबह देखेंगे क्या करना है। लेकिन, रात में आठ बजे मेरे पास फोन आया कि वो लोग अभी ही शिफ्ट कर रहे हैं। जब तक मैं हॉस्पिटल पहुंचा तब तक शिफ्ट करने की प्रॉसेस पूरी हो चुकी थी।रात साढ़े बजे अबरार को सीडी हॉस्पिटल भेज दिया गया।

हैरत की बात है कि दोनों अस्पतालों के बीच पेशेंट को भेजने से पहले कोई ऑफिशियल कम्युनिकेशन हुआ ही नहीं। रात दस बजे तक वो यहीकंफर्म करते रहे कि अबरार कोरोना पॉजिटिव हैं भी या नहीं। फिर उन्हें एसएमएचएस से किसी ने फोन पर कंफर्म किया कि वो कोरोना पॉजिटिव ही हैं। तब जाकर कहीं रात साढ़े दस बजे उसे एडमिट किया गया।

परिवार को तो ये भी नहीं पता कि कोरोना था भी या नहीं
परिवार चाहता था कि अबरार का कोरोना टेस्ट फिर से हो। क्योंकि पहले टेस्ट की तो न रिपोर्ट मिली थी न ऑफिशियल मैसेज आया था लेकिन हॉस्पिटल और प्राइवेट लैब दोनों ने ही टेस्ट करने से इनकार कर दिया।सीडी हॉस्पिटल में कोई न्यूरोसर्जन नहीं था। एसएमएचएस से भी कोई डॉक्टर अबरार के इलाज के लिए सीडी हॉस्पिटल नहीं आया जबकि ये दोनों हॉस्पिटल गवर्नमेंट मेडिकल कॉलेज (जीएमसी) के तहत ही आते हैं। वहां सिर्फ कुछ जूनियर एनेस्थिसियोलॉजिस्ट थे। इसी बीच अबरार का ऑक्सीजन लेवल कम हो गया और दोपहर दो बजे उसकी मौत हो गई।

पिता बेहोश हैं। अबरार और उनके चाचा की मौत हो गई। एक एक्सीडेंट ने पूरा परिवार उजाड़ दिया।

करीब तीन घंटे के इंतजार के बाद हॉस्पिटल ने बॉडी परिवार को सौंप दी। उन्होंने कहा कि मौत कार्डिएक अरेस्ट से हुई। परिवार तो यह भी नहीं जान पाया कि वो सच में कोरोना पॉजिटिव थे या नहीं।अबरार के पिता अभी तक बेहोश ही हैं। उनके घर में मां और छोटा भाई है जो ग्यारहवी कक्षा में पढ़ता है। अबरार बहुत ब्राइट स्टूडेंट थे। पिछले साल जर्मनी गई कॉलेज टीम को उन्होंने रिप्रेजेंट किया था। अखबार में कॉलम लिखते थे। कानून की गहरी समझ रखते थे। लेकिन, जिस तरह उनकी जान गई उसने व्यवस्था पर ही कई सवाल खड़े कर दिए हैं। अब परिवार और दोस्त न्याय चाहते हैं।


(जैसा द कश्मीर मॉनिटर के जर्नलिस्ट निसार धर्मा ने बताया। वे अबरार को पढ़ा भी चुके हैं।)



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Coronavirus Death In Jammu Kashmir/Cases Update | Law (LLB) Student From Shopian Dies During Tretment In Srinagar SMHS Hospital


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राजभवन में आज सुबह 11 बजे 28 मंत्री लेंगे शपथ, नए चेहरों को मिल सकता है मौका

मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के पहलेमंत्रिमंडल का विस्तार गुरुवार को होने जा रहा है। इसमें शिवराज सिंह के पिछले मंत्रिमंडल के प्रमुख चेहरों सीनियर विधायक और पूर्व मंत्री गोपाल भार्गव, भूपेंद्र सिंह, यशोधरा राजे सिंधिया, विजय शाह के साथ नए नामों को भी मौका दिए जाने पर सहमति बन गई है। शपथ कार्यक्रम सुबह 11 बजे होगा।

बताया जा रहा है कि पुराने चेहरों में पारस जैन, गौरीशंकर बिसेन, रामपाल सिंह, राजेंद्र शुक्ला, संजय पाठक, जालम सिंह पटेल और सुरेंद्र पटवा को लेकर सहमति नहीं बनी। लिहाजा इनके नामों पर देर रात तक असमंजस बरकरार रहा। वहीं, कुछ नए चेहरों को भी मौका मिल सकता है।

केंद्रीय नेतृत्व से मिले कुछ निर्देशों के साथ प्रदेश प्रभारी विनय सहस्त्रबुद्धे बुधवार को भोपाल पहुंचे। इसके बाद सीएम निवास में मुख्यमंत्री, प्रदेश अध्यक्ष वीडी शर्मा, प्रदेश प्रभारी सहस्त्रबुद्धे और संगठन महामंत्री सुहास भगत के बीच तमाम उलझनों पर बात हुई।

पूर्व में यह विचार था कि मंत्रिमंडल की संख्या सीमित रखी जाए

देर रात मंत्री बनाए जा रहे सभी लोगों को फोन किए गए। राजेंद्र शुक्ला, गौरीशंकर बिसेन और संजय पाठक पर सहमति नहीं थी, लिहाजा इन्हें देर रात सीएम हाउस बुलवाया गया। राजेंद्र पांडे भी दावेदारी कर रहे थे, लिहाजा उनसे भी सहस्त्रबुद्धे ने बात की। पार्टी सूत्रों का कहना है कि पूर्व में यह विचार था कि मंत्रिमंडल की संख्या सीमित रखी जाए, लेकिन 28 मंत्री बनाए जाने और पांच मंत्री पहले से होने के बाद अब मंत्रिमंडल में सिर्फ एक पद ही रिक्त रहेगा। मप्र में विधानसभा सीटों के लिहाज से मुख्यमंत्री के साथ 34 मंत्री ही बनाए जा सकते हैं।

भाजपा के 16, इनमें 7 पुराने और 9 नए चेहरों को मिलेगा मौका

  1. गोपाल भार्गव
  2. भूपेंद्र सिंह
  3. यशोधरा राजे सिंधिया
  4. विजय शाह
  5. जगदीश देवड़ा
  6. बृजेंद्र प्रताप सिंह
  7. विश्वास सारंग
  8. प्रेम सिंह पटेल
  9. इंदर सिंह परमार
  10. ऊषा ठाकुर
  11. ओम प्रकाश सकलेचा
  12. भारत सिंह कुशवाह
  13. रामकिशोर कांवरे
  14. मोहन यादव
  15. अरविंद भदौरिया
  16. राम खिलावन पटेल

सिंधिया खेमे से 9 और कांग्रेस से भाजपा में आए 3 मंत्री बनेंगे

सिंधिया खेमे से

  1. महेंद्र सिंह सिसोदिया
  2. प्रभुराम चौधरी
  3. प्रद्युम्न सिंह तोमर
  4. इमरती देवी
  5. राज्यवर्धन सिंह
  6. ओपीएस भदौरिया
  7. गिर्राज दंडोतिया
  8. सुरेश धाकड़ (राठखेड़ा)
  9. बृजेंद्र सिंह यादव

कांग्रेस से भाजपा में आए

  1. हरदीप सिंह डंग
  2. बिसाहूलाल सिंह
  3. एंदल सिंह कंसाना

22 पूर्व विधायकों के साथ आज शिवराज-सिंधिया की वन-टू-वन

ज्योतिरादित्य सिंधिया गुरुवार को कांग्रेस से भाजपा में शामिल हुए 22 पूर्व विधायकों के साथ सीएम निवास में बैठक करेंगे। इसमें मुख्यमंत्री, भाजपा प्रदेश अध्यक्ष समेत प्रमुख लोग मौजूद रहेंगे। इससे पहले पार्टी दफ्तर जाएंगे व कांग्रेस से भाजपा में शामिल हो रहे लोगों को सदस्यता दिलाएंगे। अगले दिन शुक्रवार को भी हाटपिपल्या के लोगों को भाजपा में शामिल कराएंगे।

मंथन में अमृत निकलता है, विष शिव पी जाते हैं : शिवराज सिंह

बुधवार को प्रभारी राज्यपाल आनंदी बेन पटेल की शपथ हुई। गुरुवार को मंत्रिमंडल शपथ लेगा। ‘मंथन से अमृत ही निकलता है, विष शिव पी जाते हैं।’ -शिवराज सिंह चौहान (मीडिया का सवाल ‘अमृत किसे और विष किसे मिलेगा’ का जवाब)

मंथन से निकले विष को अब रोज पीना पड़ेगा : कमलनाथ

मंथन से निकले विष को तो अब रोज ही पीना पड़ेगा, क्योंकि अब तो रोज मंथन करना पड़ेगा। मंथन इतना लंबा हो गया कि अमृत तो निकला नहीं, सिर्फ विष ही विष निकला है। अमृत के लिए अब तरसना पड़ेगा। -कमलनाथ, पूर्व सीएम

20 मार्च को सरकार गिरी, 23 मार्च को शिवराज चौथी बार सीएम बने
सिंधिया समर्थक छह मंत्रियों समेत 22 विधायकों के कांग्रेस से इस्तीफा देने के बाद 20 मार्च को कमलनाथ को इस्तीफा देना पड़ा था और 15 महीने पुरानी कांग्रेस सरकार गिर गई थी। 23 मार्च को शिवराज सिंह चौहान ने चौथी बार प्रदेश के मुख्यमंत्री पद की शपथ ली थी। इसके 28 दिन बाद 5 मंत्रियों वाली मिनी कैबिनेट ने 21 अप्रैल को शपथ ली थी।

शिवराज सिंह चौहान ने बुधवार को नई कैबिनेट में मंत्रियों के नामों को लेकर आ रही खींचतान की खबरों पर बुधवार को मीडिया के सवाल पर कहा कि, 'जब भी मंथन होता है, अमृत निकलता है। अमृत तो बंट जाता है, लेकिन विष शिव पी जाते हैं।'

प्रभारी राज्यपाल के रूप में आनंदीबेन पटेल दिलाएंगी शपथ
उत्तर प्रदेश की राज्यपाल आनंदीबेन पटेल ने बुधवार शाम को मध्य प्रदेश की प्रभारी राज्यपाल के तौर पर शपथ ले ली थी। इस कार्यक्रम में भी सीमित लोगों को बुलाया गया था। कोरोना को देखते हुए मंत्रिमंडल विस्तार में भी बेहद कम लोगों को राजभवन में एंट्री मिलेगी। राजभवन में सभी तैयारियां हो गई हैं। शपथ के दौरान मीडिया को एंट्री नहीं मिलेगी।

उप-मुख्यमंत्री और विधानसभा अध्यक्ष पर पेंच फंसा
भाजपा सूत्रों का कहना है कि मंत्रिमंडल के साथ-साथ विधानसभा अध्यक्ष और उप-मुख्यमंत्री पद का मुद्दा भी नहीं सुलझा है। शिवराज सिंह पूर्व नेता प्रतिपक्ष गोपाल भार्गव को विधानसभा अध्यक्ष बनवाना चाहते हैं, लेकिन सहमति नहीं बन पा रही है। अगर भार्गव को मंत्री बनाया गया तो सीतासरन शर्मा को दोबारा विधानसभा अध्यक्ष बनाया जा सकता है।

दो उप-मुख्यमंत्री बनाए जाने को लेकर भी अब तक सत्ता और संगठन के बीच तालमेल नहीं बैठ पाया है। सूत्रों का कहना है कि हाईकमान ने सिंधिया खेमे से कैबिनेट मंत्री तुलसी सिलावट और गृह मंत्री डॉ. नरोत्तम मिश्रा को उप-मुख्यमंत्री बनाने का विकल्प प्रदेश नेतृत्व को दिया है, मगर इस पर भी सहमति नहीं बन पाई।



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Shivraj Singh Chouhan Ministers List | Shivraj Singh Chauhan Madhya Pradesh (MP) Cabinet Expansion Live Updates: Jyotiraditya Scindia, Gopal Bhargava, Vishwas Sarang, Rameshwar Sharma


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हवा न भी चले तो भी कोरोना वायरस के कण 13 फीट तक जा सकते हैं, 30 डिग्री पर ये भाप बनकर उड़ सकते हैं

दुनियाभर के एक्सपर्ट सोशल डिस्टेंसिंग के लिए 6 फीट का दायरा मेंटेन करने की सलाह दे रहे हैं, लेकिन हालिया शोध के नतीजे चौंकाने वाले हैं। भारतीय और अमेरिकी शोधकर्ताओं की टीम का कहना है किकोरोना के कण बिना हवा चले भी 8 से 13 फीट तक कीदूरी तय कर सकते हैं। शोधकर्ताओं के मुताबिक, 50 फीसदी नमी और 29 डिग्री तापमान पर कोरोना के कण भाप बनकर हवा में घुलभी सकते हैं।

यह रिसर्च बेंगलुरू के इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस, कनाडा की ऑन्टेरियो यूनिवर्सिटी और कैलिफोर्निया लॉस एंजलिस यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं ने मिलकर की है। शोधकर्ताओं का लक्ष्य यह पता लगाना था कि वायरस में मौजूद वायरस के कणों का संक्रमण फैलाने में कितना रोल है।टीम का कहना है, रिसर्च के नतीजे स्कूल और ऑफिस में सावधानी बरतने में मदद करेंगे।

मेथेमेटिकल मॉडल से समझी कणों की गति
शोधकर्ताओं के मुताबिक, कोरोना से बचना है तो सिर्फ सोशल डिस्टेंसिंग ही काफी नहीं क्योंकि संक्रमण फैलाने वाले वायरस के कण बिना हवा के 13 फीट तक जा सकते हैं। फिजिक्स ऑफ फ्लुइड जर्नल में प्रकाशित शोध के मुताबिक, टीम में कोरोना के कणों को फैलने, वाष्पित होने और हवा में इनकी गति को समझने के लिए मेथेमेटिकल मॉडल विकसित किया।

एक बार छींकने पर 40 हजार ड्रॉप्लेट्स निकले
शोधकर्ताओं ने संक्रमित और स्वस्थ इंसान के मुंह से निकले ड्रॉप्लेट्स पर रिसर्च की। इनमें कितनी समानता है, इसका पता लगाया गया। रिसर्च में सामने आया एक बार खांसने से 3 हजार ड्रॉप्लेट्स निकले और जो अलग-अलग दिशा में बिखर गए। वहीं, एक बार छींकने पर 40 हजार ड्रॉप्लेट्स निकले।

हवा चलने पर हालात और बिगड़ सकते हैं
टोरंटो यूनिवर्सिटी के शोधकर्ता डॉ. श्वेतप्रोवो चौधरी के मुताबिक, ऐसी स्थिति में अगर हवा चलती है या दबाव बनता है तो हालात और बिगड़ सकते हैं। फैलने वाले ड्रॉप्लेट्स का आकार 18 से 50 माइक्रॉन के बीच होता है, जो इंसान के बालों से भी बेहद बारीक होता है। इसलिए यह बात भी साबित होती है कि मास्क से संक्रमण को रोका जा सकता है।

नमीमें अधिक सेंसेटिव हो जाते हैं वायरस कण
इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस, बेंगलुरू के शोधकर्ता डॉ. सप्तऋषि बसु के मुताबिक, रिसर्च का यह मॉडल शत-प्रतिशत यह साबित नहीं करता है कि कोरोना ऐसे फैलता है लेकिन अध्ययन के दौरान यह सामने आया है कि ड्रॉप्लेट्स वाष्पित भी हो सकते हैं और नमीं होने की स्थिति में अधिक सेंसेटिव हो जाते हैं।



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Coronavirus Infected Droplets Latest Research Updates By Indian Institute of Science and Ontario University of Canada


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‘कल की कक्षाओं’ में टेक्नोलॉजी महत्वपूर्ण होगी, भविष्य में ‘वन-टू-वन’ लर्निंग भी बढ़ेगी, जिससे छात्रों को उनके मुताबिक सर्वश्रेष्ठ मिल पाएगा

कोरोना ने सभी लोगों की जिंदगी प्रभावित की है। अस्थायी रूप से स्कूलों के बंद होने से एजुकेशन के क्षेत्र में एक मोड़ आया है, जिसमें दुनियाभर में छात्रों के लिए ऑनलाइन लर्निंग ही एकमात्र व्यवहारिक विकल्प रह गया है। इसलिए अब तकनीक आधारित लर्निंग इकोसिस्टम बनाना और भी जरूरी होगा गया है।

ऑटोमोबाइल से लेकर और रिटेल तक, आज हर इंडस्ट्री में तकनीक आधारित इनोवेशन हो रहे हैं। हालांकि, एजुकेशन इंडस्ट्री में बहुत बदलाव नहीं हुए और हमने अपने बच्चों को वैसे ही पढ़ाना जारी रखा जैसा एक सदी पहले पढ़ाते थे। लर्निंग इकोसिस्टम अब भी अंकों और ग्रेड्स पर ध्यान देता है।

अब तकनीक ने बच्चों के सीखने में अपनी जगह तो बना ली है, लेकिन इसे क्रांति का रूप लेने में अभी समय है। बिग डेटा एनालिटिक्स भी मदद करेंगे। टेक आधारित लर्निंग इकोसिस्टम बनाने और भविष्य के लिए तैयार रहने के लिए हमें इनकी जरूरत है:

गुणवत्तापूर्ण शिक्षण: हमारे मौजूदा शिक्षा तंत्र की समस्या ‘रटने वाली लर्निंग’ है। वीडियोज और एनिमेशन से लर्निंग यह बदल सकती है। बच्चे मुख्यत: देखकर सीखते हैं। वीडियो के माध्यम से सिखाना ज्यादा आसान और उत्साहजनक होता है। इससे ध्यान कंसेप्ट को समझने पर ज्यादा होता है, जिसमें वास्तविक जीवन के उदाहरणों से समझाया जाता है।

बच्चों को एक्टिव लर्नर बनाना होगा: भारत दुनिया का सबसे बड़ा के-12 एजुकेशन सिस्टम है, फिर भी वैश्विक मूल्यांकनों में हम पिछड़े हैं। इसका मुख्य कारण है कि हमारा सिस्टम परीक्षाओं के डर से चलता है। बच्चों को अब भी सवाल हल करना सिखाया जा रहा है, पूछना नहीं। बच्चों को एंगेजिंग और गुणवत्तापूर्ण कंटेंट देने पर वे जीवनभर के लिए एक्टिव लर्नर बनेंगे। तकनीक पर आधारित लर्निंग से बच्चे खुद सीखने की पहल करते हैं और इससे वे अपनी गति से सीखने वाले लर्नर बनते हैं।

‘एक तरीका सभी के लिए सही’ की धारणा को तोड़ना: अच्छा एजुकेशन प्रोडक्ट छात्र की समस्याओं को पहचानेगा, साथ ही उसकी सीखने की गति के आधार पर खुद में बदलाव लाएगा। पर्सनलाइजेशन सुनिश्चित करता है कि छात्र खुद से सीखने की पहल करें। अध्ययन के प्रति ऐसा झुकाव बढ़ने से नतीजे भी बेहतर आते हैं।

शिक्षकों को डिजिटली सशक्त करना: शिक्षकों की भूमिका जरूरी है और हमेशा रहेगी। शिक्षक आज शिक्षण कौशल को तकनीक आधारिक टूल्स से और बेहतर बना रहे हैं। इससे लर्निंग को एक नया आयाम मिलेगा। शिक्षकों द्वारा तकनीक के इस्तेमाल से वे कंसेप्ट्स को ज्यादा असरकारी, पर्सनलाइज्ड और एंगेजिंग तरीके से समझा सकते हैं।

लर्निंग को मजेदार बनाना: एजुकेशन में गेमीफिकेशन (पढ़ाई से जुड़े गेम्स) लर्निंग अनुभव को मजेदार, इंटरेक्टिव और ज्यादा असरदार बनाता है। इससे छात्र अपने लक्ष्यों को पाने के लिए प्रेरित होते हैं, जिससे अंतत: लर्निंग के बेहतर नतीजे मिलते हैं। खासतौर पर छोटे छात्रों में देखा गया है कि गेम्स के इस्तेमाल से उनकी सीखने की इच्छा बढ़ती है।

शिक्षा तक सबकी पहुंच के लिए तकनीक का इस्तेमाल: अब सर्वश्रेष्ठ पाठ्यक्रमों को कस्टमाइज कर देश के दूर-दराज के इलाकों के छात्रों तक पहुंचाया जा सकता है। अब भूगोल से परे जाकर इस क्षेत्र में भी काम करना कंपनियों का उद्देश्य होना चाहिए। हालांकि हमें डिजिटल असमानता अब भी एक चुनौती है। इसके लिए हमें प्रयास करना होगा कि स्मार्टफोन को ही प्रसार का मुख्य जरिया बनाएं, ताकि देश-दुनिया में कहीं भी छात्रों को उच्च क्वालिटी कंटेंट मिल सके।

ये सभी तरीके इसलिए भी महत्वपूर्ण हैं क्योंकि आने वाला समय ऑटोमेशन और तकनीक के और एडवांस होने का होगा। ऐसे में छात्रों के लिए कंसेप्ट आधारित लर्निंग और जरूरी हो जाती है, ताकि वे भविष्य में अपने कौशलों को बेहतर बनाने के लिए हमेशा तैयार रहें। हमें बच्चों को कल की उन नौकरियों के लिए तैयार करना है, जो अभी किसी ने देखी भी नहीं हैं। इसका एक ही तरीका है कि उन्हें तकनीक की मदद से शिक्षा दी जाए।

मौजूदा महामारी शिक्षा के क्षेत्र में बड़ा बदलाव लाई है और ऑनलाइन लर्निंग मुख्यधारा में आई है। दूसरी तरफ उम्मीद है कि अब शिक्षा का मिला-जुला मॉडल उभरेगा। बढ़ते स्मार्टफोन और इंटरनेट से प्रक्रिया तेज होगी। शिक्षक अब तकनीक के माध्यम से सिखाने का महत्व समझ रहे हैं, इसलिए कक्षाओं में भी इसका असर दिखेगा।

‘कल की कक्षाओं’ में टेक्नोलॉजी महत्वपूर्ण होगी। भविष्य में ‘वन-टू-वन’ लर्निंग भी बढ़ेगी, जिससे छात्रों को उनके मुताबिक सर्वश्रेष्ठ मिल पाएगा। इसलिए अब हमें भारतीय शिक्षा तंत्र की मुख्य समस्याओं को हल करने के लिए ज्यादा से ज्यादा आंत्रप्रेन्योर्स की जरूरत है, जो इसके लिए उत्पाद बनाएं।
(ये लेखक के अपने विचार हैं)



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बायजू रवींद्रन, लर्निंग एप Byju’s के संस्थापक और सीईओ


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चीनी संस्कृति के दो जरूरी पहलू चेहरा (मिअंज़ि) और पारस्परिक निर्भरता (ग्वान-शी) की अवधारणाएं, ये ही वहां व्यापार और संबंध चलाती हैं

ये वैश्विक महामारी और आर्थिक मंदी कम थी, जो अब लद्दाख में भारत-चीन सीमा पर गंभीर संघर्ष शुरू हो गया! हमारे 20 जवान शहीद हुए जो दुखदायी है। कई स्रोत कह रहे हैं कि शुरुआत चीन ने की। इस जोखिम भरे संतुलन को बिगाड़ना गैरजरूरी लग रहा था। भारतीय जानों का जाना भी अना‌वश्यक था। इसने हम देशप्रेमी भारतीयों को गुस्से से भर दिया है।

हमारे शहीदों की मौत का बदला लेने का भाव स्वाभाविक है। आखिरकार हमें भी जवाबदेही चाहिए। हम यह संदेश देना भी चाहते हैं कि यह सहा नहीं जाएगा। फिर भी, अगर अपने दिमाग की भी सुनें (जैसा अभी करना भी चाहिए), तो हमें महसूस होगा कि हिंसक बदले से हमें भी नुकसान होगा। शांत रहकर रणनीति पर विचार से भारत का ज्यादा भला होगा।

प्रतिक्रिया तैयार करने के लिए दोनों देशों की आर्थिक, सैन्य और रणनीतिक शक्ति का मूल्यांकन जरूरी है। चीन हमसे जीडीपी अर्थव्यवस्था के मामले में पांच गुना बड़ा है। दौलत में बड़े अंतर का मतलब है, वह हमसे ज्यादा खर्च कर सकता है। वह युद्ध का दर्द भी हमसे ज्यादा झेल सकता है। सैन्य शक्ति के मामले में चीन और भारत दुनिया की दूसरी और तीसरी बड़ी सेनाएं हैं।

चीन के पास हमसे 50% ज्यादा हथियार और तिगुना सैन्य बजट है। स्थानीय सीमा संघर्ष में हम बराबरी से भिड़ सकते हैं। हालांकि, पूरी सेना के मामले में चीन मजबूत है। पिछले चार दशकों में उसने पागलों की तरह आर्थिक वृद्धि की है। हमने ऐसा नहीं किया। शायद यह हमारे लिए सबक है कि अंतत: क्या मायने रखता है। कूटनीति की दृष्टि से, चीन बुरे दौर में है।

कोरोना का स्रोत देश बनने और इस पर चुप्पी से उसकी छवि और खराब हुई है। हांगकांग पर नियंत्रण बढ़ाने के उसके हालिया कानूनों की आलोचना हो रही है। भारत के लिए चीन संग मुद्दों को सुलझाने का यही अवसर है, लेकिन इस पर आगे बात करेंगे।

चीन की बुरी कूटनीतिक स्थिति के बावजूद दुनिया उसपर बहुत निर्भर है। कूटनीति आवभगत या दोस्ताने से नहीं चलती। यह फायदे से चलती है कि किसने किसके लिए क्या किया। चीन दुनिया को सस्ती और विश्वसनीय फैक्टरियां देता है। भारत नहीं देता (अब तक)। चीन ऊंची क्रय-शक्ति वाला बाजार देता है।

भारत भी बड़ा बाजार है, लेकिन इसकी औसत क्रय-शक्ति एक औसत चीनी से पांच गुना कम है। अंतत: दुनिया चीन का ही साथ देगी। इसलिए आर्थिक, सैन्य और कूटनीतिक दृष्टि से भारत के लिए स्थिति जटिल है। ऐसे में सवाल है कि भारत को क्या करना चाहिए (या क्या नहीं)?

पहली बात, भारत को मिलिट्री संघर्ष नहीं बढ़ाना चाहिए। इस घटना के पहले, 45 साल तक हम शांति बनाए रख सकते हैं तो आगे भी यही कोशिश रहे। हमें चीन से बात करनी होगी, जिसका मतलब है कुछ देना और बदले में कुछ पाना। वह क्या हो सकता है?

इसके लिए चीनी संस्कृति के दो जरूरी पहलू समझने होंगे। ये चेहरा (मिअंज़ि) और पारस्परिक निर्भरता ( ग्वान-शी) की अवधारणाएं हैं। वहां करीब एक दशक बिताने और चीनी कंपनियों के साथ काम करने के बाद, मैं कह सकता हूं कि ये दो अवधारणाएं ही वहां व्यापार और संबंध चलाती हैं।

चेहरे का मतलब है सम्मान, प्रतिष्ठा, सामाजिक रुतबा। आप उन्हें ‘चेहरा दे’ (सामाजिक सम्मान) सकते हैं या ‘चेहरा छीन’ (सामाजिक शर्मिंदगी देना) सकते हैं। चीनी लोग ‘चेहरा बनाए रखने’ के लिए कुछ भी करेंगे। वे ‘चेहरा खोने’ पर बदला लेने मजबूर हो जाएंगे। हालांकि, अगर हम चीनियों को चेहरा दे सकें (जो उन्होंने कोरोना के कारण दुनियाभर में खोया है), तो वह बदले में कुछ दे सकता है।

अगर हम उसकी बेइज्जती करना और उसे विरोधी मानना बंदकर सम्मान दें तो नतीजा कुछ और होगा। हमारे पास भड़ास निकालने के लिए पाकिस्तान है। कम से कम सरकार के स्तर पर तो चीन के साथ यह न करें। बल्कि उसके साथ डील करें। हम उसे दुनिया में चेहरा देगें (जैसे महामारी के बाद दूसरे देशों की मदद के उसके प्रयासों की सराहना)। बदले में वह सीमा पर संघर्ष न होने का भरोसा दे।

चीनी संस्कृति की दूसरी अवधारणा ‘ग्वान-शी’ का मतलब है ‘सामाजिक संपर्क’ या ‘संबंध’। आसान शब्दों में तुम मेरी पीठ खुजलाओ, मैं तुम्हारी। हम चीन के लिए क्या कर सकते हैं? हम उसकी छवि की मौजूदा समस्या हल कर सकते हैं। जब अमेरिका उसे फटकारता है तो कभी-कभी उसका पक्ष ले सकते हैं। उसे महसूस करवा सकते हैं कि हमसे उसे मैन्यूफैक्चरिंग छिनने का खतरा नहीं है। बदले में हमें कभी भी सीमा पर समस्या नहीं चाहिए और वह यह सार्वजनिक रूप से माने।

यह असैन्य तरीका, जो चीनी संस्कृति से बेहतर सामंजस्य बैठाता है, चीन से विवाद सुलझाने में ज्यादा कारगर होगा। हम गुस्सा कम करें और रणनीति पर ज्यादा ध्यान दें। चीनियों को ‘चेहरा’ दें और बदले में शांति पाएं।

(ये लेखक के अपने विचार हैं)



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चेतन भगत, अंग्रेजी के उपन्यासकार


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चीन ने जता दिया है कि उसे भारत के साथ आर्थिक संबंधों का मोल नहीं है, ऐसे में नई दिल्ली की प्रतिक्रिया भावनाओं के आधार पर नहीं होना चाहिए

नई दिल्ली बीजिंग को चुनौती देने के लिए कई विकल्पों पर काम कर रही है। इसमें व्यापार और अर्थ पर खास ध्यान दिया जा रहा है। यह विडंबना है कि अब तक आर्थिक गंठबंधनों को 1962 में भारत-चीन संबंधों को मिली चोट पर मरहम बताया जाता रहा है। और आज यही क्षेत्र कई भारतीयों के लिए चीन के प्रति गुस्सा दिखाने का केंद्र बिंदु बन गया है।

एलएसी पर विवाद से पहले ही प्रधानमंत्री मोदी आत्मनिर्भरता को कोविड-19 का सबसे बड़ा सबक बता चुके थे, हालांकि तब इशारा चीन की ओर नहीं था। हालांकि, भारत की तरफ से हाल के महीनों में चीनी आयात पर निर्भरता कम करने के प्रयास किए जा रहे हैं। और सीमा संकट के बाद यह स्पष्ट हो गया है कि भारत अब हर संभव विकल्पों पर विचार कर रहा है।

पिछले कुछ दिनों में भारतीय रेलवे ने चीनी कंपनी के साथ 470 करोड़ रुपए का एक करार तोड़ दिया और बीएसएनएल व एमटीएलएल से सरकार ने 4जी अपग्रेडेशन के लिए चीनी उपकरण इस्तेमाल न करने को कहा है। भारत ने राष्ट्रीय सुरक्षा को खतरा बताते हुए टिकटॉक और यूसी ब्राउजर सहित 59 चीनी एप्स बैन कर दिए हैं।

खबर है कि नई दिल्ली भारत में न बनने वाले कंपोनेंट्स के वैकल्पिक सप्लायर्स की सूची बना रही है, जो चीनी आयातकों का विकल्प बन सकें। कंफेडेरेशन ऑफ ऑल इंडिया ट्रेडर्स ने 2018-19 में चीन से हुए 70 बिलियन डॉलर के आयात को घटाकर दिसंबर 2021 तक 13 बिलियन डॉलर करने का आह्वान किया है।

भारत के कुल आयात में चीन की हिस्सेदारी 11.8% और भारत के निर्यात में चीन की हिस्सेदारी महज 3% रही है, जिससे भारत को हो रहा व्यापार घाटा एक समस्या रहा है। भारतीय स्टार्ट-अप सेक्टर में भी चीनी निवेश लगतार बढ़ा है।

व्यापार संबंधों में बिना सोचे-समझे बदलाव भारतीय व्यापारों और सबसे ज्यादा भारतीय गरीबों को प्रभावित करेंगे, खासतौर पर तब जब अर्थव्यवस्था कोरोना के न्यू नॉर्मल में संभलने की कोशिश कर रही है। नई दिल्ली का खुद की निर्माण क्षमता विकसित करने के प्रयास सही है, लेकिन ऐसा कम समय में नहीं होने वाला।

चीनी आयात पर अचनाक बैन न सिर्फ कोविड-19 के बाद के शुरुआती सुधारों को प्रभावित करेगा, बल्कि तैयार माल का मैन्यूफैक्चरर बनकर उभरने की भारतीय महत्वाकाकांक्षा को भी चुनौती मिलेगी। बेशक नई दिल्ली को संघर्ष बढ़ने की स्थिति में चीन से व्यापारिक संबंधों को खत्म करने से रोका नहीं जा सकता, लेकिन यह आखिरी विकल्प ही होगा।

इसलिए कम या मध्यम समय में चीन से आर्थिक रूप से पूरी तरह अलग होना न ही वांछनीय है और न ही जरूरी। इसकी जगह नई दिल्ली को व्यापार और आर्थिक संघर्ष को बढ़ाने के खतरे का इस्तेमाल करना चाहिए। बिना स्थायी फायदे वाले संबंध में हर संभव उपाय का सोच-समझकर पूरा दोहन करना चाहिए।

इसमें कोई शक नहीं कि भारत को लंबे समय में चीन पर अपनी आर्थिक निर्भरता कम करनी होगी, लेकिन कम समय में भारत को क्षेत्रवार ढंग से चीन को अलग करना चाहिए, यह दिखाने के लिए कि भारत इस उद्देश्य में गंभीर है। चीन ने हालिया हरकतों ने स्पष्ट कर दिया है कि उसे भारत के साथ आर्थिक संबंधों का मोल नहीं है।

नई दिल्ली की प्रतिक्रिया त्वरीत भावनाओं के आधार पर नहीं, बल्कि लंबे समय में खुद को आर्थिक रूप से मजबूत बनाने की जरूरत के आधार पर होना चाहिए, ताकि वह कोविड-19 के बाद की वैश्विक आर्थिक व्यवस्था की केंद्र बिंदु बन सके।

(ये लेखक के अपने विचार हैं)



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हर्ष वी पंत, प्रो. इंटरनेशनल रिलेशन्स, किंग्स कॉलेज लंदन


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राजभवन में आज सुबह 11 बजे 28 मंत्री लेंगे शपथ, नए चेहरों को मिल सकता है मौका

मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के पहलेमंत्रिमंडल का विस्तार गुरुवार को होने जा रहा है। इसमें शिवराज सिंह के पिछले मंत्रिमंडल के प्रमुख चेहरों सीनियर विधायक और पूर्व मंत्री गोपाल भार्गव, भूपेंद्र सिंह, यशोधरा राजे सिंधिया, विजय शाह के साथ नए नामों को भी मौका दिए जाने पर सहमति बन गई है। शपथ कार्यक्रम सुबह 11 बजे होगा।

बताया जा रहा है कि पुराने चेहरों में पारस जैन, गौरीशंकर बिसेन, रामपाल सिंह, राजेंद्र शुक्ला, संजय पाठक, जालम सिंह पटेल और सुरेंद्र पटवा को लेकर सहमति नहीं बनी। लिहाजा इनके नामों पर देर रात तक असमंजस बरकरार रहा। वहीं, कुछ नए चेहरों को भी मौका मिल सकता है।

केंद्रीय नेतृत्व से मिले कुछ निर्देशों के साथ प्रदेश प्रभारी विनय सहस्त्रबुद्धे बुधवार को भोपाल पहुंचे। इसके बाद सीएम निवास में मुख्यमंत्री, प्रदेश अध्यक्ष वीडी शर्मा, प्रदेश प्रभारी सहस्त्रबुद्धे और संगठन महामंत्री सुहास भगत के बीच तमाम उलझनों पर बात हुई।

पूर्व में यह विचार था कि मंत्रिमंडल की संख्या सीमित रखी जाए

देर रात मंत्री बनाए जा रहे सभी लोगों को फोन किए गए। राजेंद्र शुक्ला, गौरीशंकर बिसेन और संजय पाठक पर सहमति नहीं थी, लिहाजा इन्हें देर रात सीएम हाउस बुलवाया गया। राजेंद्र पांडे भी दावेदारी कर रहे थे, लिहाजा उनसे भी सहस्त्रबुद्धे ने बात की। पार्टी सूत्रों का कहना है कि पूर्व में यह विचार था कि मंत्रिमंडल की संख्या सीमित रखी जाए, लेकिन 28 मंत्री बनाए जाने और पांच मंत्री पहले से होने के बाद अब मंत्रिमंडल में सिर्फ एक पद ही रिक्त रहेगा। मप्र में विधानसभा सीटों के लिहाज से मुख्यमंत्री के साथ 34 मंत्री ही बनाए जा सकते हैं।

भाजपा के 16, इनमें 7 पुराने और 9 नए चेहरों को मिलेगा मौका

  1. गोपाल भार्गव
  2. भूपेंद्र सिंह
  3. यशोधरा राजे सिंधिया
  4. विजय शाह
  5. जगदीश देवड़ा
  6. बृजेंद्र प्रताप सिंह
  7. विश्वास सारंग
  8. प्रेम सिंह पटेल
  9. इंदर सिंह परमार
  10. ऊषा ठाकुर
  11. ओम प्रकाश सकलेचा
  12. भारत सिंह कुशवाह
  13. रामकिशोर कांवरे
  14. मोहन यादव
  15. अरविंद भदौरिया
  16. राम खिलावन पटेल

सिंधिया खेमे से 9 और कांग्रेस से भाजपा में आए 3 मंत्री बनेंगे

सिंधिया खेमे से

  1. महेंद्र सिंह सिसोदिया
  2. प्रभुराम चौधरी
  3. प्रद्युम्न सिंह तोमर
  4. इमरती देवी
  5. राज्यवर्धन सिंह
  6. ओपीएस भदौरिया
  7. गिर्राज दंडोतिया
  8. सुरेश धाकड़ (राठखेड़ा)
  9. बृजेंद्र सिंह यादव

कांग्रेस से भाजपा में आए

  1. हरदीप सिंह डंग
  2. बिसाहूलाल सिंह
  3. एंदल सिंह कंसाना

22 पूर्व विधायकों के साथ आज शिवराज-सिंधिया की वन-टू-वन

ज्योतिरादित्य सिंधिया गुरुवार को कांग्रेस से भाजपा में शामिल हुए 22 पूर्व विधायकों के साथ सीएम निवास में बैठक करेंगे। इसमें मुख्यमंत्री, भाजपा प्रदेश अध्यक्ष समेत प्रमुख लोग मौजूद रहेंगे। इससे पहले पार्टी दफ्तर जाएंगे व कांग्रेस से भाजपा में शामिल हो रहे लोगों को सदस्यता दिलाएंगे। अगले दिन शुक्रवार को भी हाटपिपल्या के लोगों को भाजपा में शामिल कराएंगे।

मंथन में अमृत निकलता है, विष शिव पी जाते हैं : शिवराज सिंह

बुधवार को प्रभारी राज्यपाल आनंदी बेन पटेल की शपथ हुई। गुरुवार को मंत्रिमंडल शपथ लेगा। ‘मंथन से अमृत ही निकलता है, विष शिव पी जाते हैं।’ -शिवराज सिंह चौहान (मीडिया का सवाल ‘अमृत किसे और विष किसे मिलेगा’ का जवाब)

मंथन से निकले विष को अब रोज पीना पड़ेगा : कमलनाथ

मंथन से निकले विष को तो अब रोज ही पीना पड़ेगा, क्योंकि अब तो रोज मंथन करना पड़ेगा। मंथन इतना लंबा हो गया कि अमृत तो निकला नहीं, सिर्फ विष ही विष निकला है। अमृत के लिए अब तरसना पड़ेगा। -कमलनाथ, पूर्व सीएम

20 मार्च को सरकार गिरी, 23 मार्च को शिवराज चौथी बार सीएम बने
सिंधिया समर्थक छह मंत्रियों समेत 22 विधायकों के कांग्रेस से इस्तीफा देने के बाद 20 मार्च को कमलनाथ को इस्तीफा देना पड़ा था और 15 महीने पुरानी कांग्रेस सरकार गिर गई थी। 23 मार्च को शिवराज सिंह चौहान ने चौथी बार प्रदेश के मुख्यमंत्री पद की शपथ ली थी। इसके 28 दिन बाद 5 मंत्रियों वाली मिनी कैबिनेट ने 21 अप्रैल को शपथ ली थी।

शिवराज सिंह चौहान ने बुधवार को नई कैबिनेट में मंत्रियों के नामों को लेकर आ रही खींचतान की खबरों पर बुधवार को मीडिया के सवाल पर कहा कि, 'जब भी मंथन होता है, अमृत निकलता है। अमृत तो बंट जाता है, लेकिन विष शिव पी जाते हैं।'

प्रभारी राज्यपाल के रूप में आनंदीबेन पटेल दिलाएंगी शपथ
उत्तर प्रदेश की राज्यपाल आनंदीबेन पटेल ने बुधवार शाम को मध्य प्रदेश की प्रभारी राज्यपाल के तौर पर शपथ ले ली थी। इस कार्यक्रम में भी सीमित लोगों को बुलाया गया था। कोरोना को देखते हुए मंत्रिमंडल विस्तार में भी बेहद कम लोगों को राजभवन में एंट्री मिलेगी। राजभवन में सभी तैयारियां हो गई हैं। शपथ के दौरान मीडिया को एंट्री नहीं मिलेगी।

उप-मुख्यमंत्री और विधानसभा अध्यक्ष पर पेंच फंसा
भाजपा सूत्रों का कहना है कि मंत्रिमंडल के साथ-साथ विधानसभा अध्यक्ष और उप-मुख्यमंत्री पद का मुद्दा भी नहीं सुलझा है। शिवराज सिंह पूर्व नेता प्रतिपक्ष गोपाल भार्गव को विधानसभा अध्यक्ष बनवाना चाहते हैं, लेकिन सहमति नहीं बन पा रही है। अगर भार्गव को मंत्री बनाया गया तो सीतासरन शर्मा को दोबारा विधानसभा अध्यक्ष बनाया जा सकता है।

दो उप-मुख्यमंत्री बनाए जाने को लेकर भी अब तक सत्ता और संगठन के बीच तालमेल नहीं बैठ पाया है। सूत्रों का कहना है कि हाईकमान ने सिंधिया खेमे से कैबिनेट मंत्री तुलसी सिलावट और गृह मंत्री डॉ. नरोत्तम मिश्रा को उप-मुख्यमंत्री बनाने का विकल्प प्रदेश नेतृत्व को दिया है, मगर इस पर भी सहमति नहीं बन पाई।



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Shivraj Singh Chouhan Ministers List | Shivraj Singh Chauhan Madhya Pradesh (MP) Cabinet Expansion Live Updates: Jyotiraditya Scindia, Gopal Bhargava, Vishwas Sarang, Rameshwar Sharma


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सरकार के पास अभी इतना अनाज कि 15 महीने तक बांट सकती है, बिहार में चुनाव से पहले 5 महीने तक 8.5 करोड़ गरीबों को फायदा मिलेगा

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी मंगलवार को जनता के सामने आए और देश के 80 करोड़ गरीब लोगों को मुफ्त अनाज देने वाली योजना नवंबर तक यानी 5 महीने के लिए बढ़ा गए। मोदी जिस योजना को बढ़ाकर गए हैं, उसका नाम है- प्रधानमंत्री गरीब कल्याण अन्न योजना।

मोदी ने देश की जनता को संबोधित करते हुए 16 मिनट के भाषण में बिहार के लोकपर्व छठ का दो बार जिक्र किया। छठ का जिक्र करने केपीछे भी एक वजह और वो ये कि बिहार में अक्टूबर-नवंबर में विधानसभा चुनाव हैं।

गृहमंत्री अमित शाह ने तो जून में ही बिहार में वर्चुअल रैली कर चुनावी अभियान की शुरुआत कर दी थी और अब प्रधानमंत्री मोदी भी चुनावी मूड में आ गए हैं। हालांकि, मोदी ने जिस योजना को नवंबर तक बढ़ाया है, वो अप्रैल से ही लागू हो गई है।

सबसे पहले बात, क्या है मुफ्त अनाज की योजना?
मोदी सरकार ने मार्च में कोरोनावायरस के दौर में प्रधानमंत्री गरीब कल्याण पैकेज की शुरुआत की थी। इस पैकेज के लिए 1.70 लाख करोड़ रुपए रखे गए हैं। इसी पैकेज में अन्न योजना भी शुरू हुई थी, जिसमें देश के 80 करोड़ से ज्यादा गरीबों को हर महीने 5 किलो गेहूं या चावल और 1 किलो दाल मुफ्त देने की घोषणा की थी।

इस योजना के तहत जिन लोगों के पास राशन कार्ड है, उन्हें हर महीने ये मुफ्त अनाज उनके मौजूदा अनाज के कोटे से अलग मिलेगा। इसे ऐसे समझिए कि राशन कार्ड धारकों को पहले भी 5 किलो अनाज और 1 किलो दाल मिलती थी। हालांकि, इसके लिए उन्हें कुछ पैसे चुकाने पड़ते हैं। जबकि, अन्न योजना के तहत उन्हें मुफ्त ही मिलेगा।

अगर किसी परिवार में एक राशन कार्ड में 5 लोगों का नाम जुड़ा है। तो परिवार के हर सदस्य को अन्न योजना के तहत तो 25 किलो अनाज और 1 किलो दाल मुफ्त मिलेगी। इसके अलावा 25 किलो अनाज और 1 किलो दाल भी कुछ पैसे देकर खरीद सकते हैं।

पीएम मोदी ने देश के नाम संबोधन में बताया था कि इस योजना के 5 महीने बढ़ाने पर सरकार 90 हजार करोड़ रुपए खर्च करेगी। जबकि, अप्रैल से ही गरीबों को मुफ्त अनाज मिल ही रहा है। तो इस तरह कुल 8 महीने में इस योजना पर सरकार 1.5 लाख करोड़ रुपए खर्च कर रही है।

बिहार में कितने लोगों को फायदा मिलेगा?
30 मार्च को डिपार्टमेंट ऑफ फूड एंड डिस्ट्रीब्यूशन ने एक आदेश जारी किया था। ये आदेश देश के सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के लिए जारी किया गया था। इस आदेश में लिखा गया था कि केंद्र सरकार की प्रधानमंत्री गरीब कल्याण अन्न योजना के तहत देशभर के 80.95 करोड़ गरीब लोगों को 3 महीने तक 5 किलो गेहूं या चावल और 1 किलो दाल मुफ्त मिलेगी।

इस आदेश के मुताबिक, उत्तर प्रदेश में सबसे ज्यादा 15.20 करोड़ लोगों को मुफ्त अनाज मिलेगा। दूसरे नंबर पर बिहार है, जहां के 8.57 करोड़ लोगों को मुफ्त अनाज मिलेगा। यानी, देशभर में जितने गरीब लोगों को मुफ्त अनाज मिलेगा, उसका 10% हिस्सा बिहार में जाएगा।

अप्रैल से जून तक कितना अनाज बंटा?
पीआईबी के मुताबिक, प्रधानमंत्री गरीब कल्याण अन्न योजना के तहत अप्रैल से जून के तीन महीनों के लिए कुल 104.3 लाख मीट्रिक टन चावल और 15.2 लाख मीट्रिक टन गेहूं की जरूरत थी। इसमें से 101.02 लाख मीट्रिक टन चावल और 15 लाख मीट्रिक टन गेहूं अलग-अलग राज्यों और यूटी से लिया गया था। यानी कुल 116.02 लाख लीट्रिक टन अनाज।

सरकार की तरफ से इस योजना के तहत अप्रैल में 37.02 लाख मीट्रिक टन अनाज 74.05 करोड़ (93%) लोगों को दिया गया। मई में 36.49 लाख मीट्रिक टन अनाज 72.99 करोड़ (91%) लोगों को दिया गया और जून में 28.41 लाख मीट्रिक टन अनाज 56.81 करोड़ (71%) लोगों को मिला।

चावल और गेहूं के लिए सरकार ने 46 हजार करोड़ रुपए खर्च किए थे, जिसका पूरा खर्चा केंद्र सरकार ने ही उठाया था।

वहीं, तीन महीनों के लिए कुल 5.87 लाख मीट्रिक टन दाल की जरूरत थी। इसके लिए 5 हजार करोड़ रुपए का खर्च केंद्र सरकार ने ही उठाया। अप्रैल से जून तक 4.40 लाख मीट्रिक टन दाल बांटी जा चुकी है।

अभी कितना अनाज स्टॉक में है?
फूड कॉर्पोरेशन ऑफ इंडिया की वेबसाइट पर मौजूद डेटा के मुताबिक, जून तक सरकार के पास 832.69 लाख मीट्रिक टन अनाज है। इसमें 274.44 लाख मीट्रिक टन चावल और 558.25 लाख मीट्रिक टन गेहूं है।

चावल और गेहूं के अलावा 18 जून तक 8.76 लाख मीट्रिक टन दालें स्टॉक में थीं। इसमें 3.77 लाख मीट्रिक टन तुअर दाल, 1.14 लाख मीट्रिक टन मूंग दाल, 2.28 लाख मीट्रिक टन उड़द दाल, 1.30 लाख मीट्रिक टन चना दाल और 0.27 लाख मीट्रिक टन मसूर दाल है।

सरकार के मुताबिक, नेशनल फूड सिक्योरिटी एक्ट यानी एनएफएसए और दूसरी योजनाओं के तहत हर महीने करीब 55 लाख मीट्रिक टन अनाज की जरूरत होती है। इस हिसाब से जून 2020 तक सरकार के पास जितना अनाज स्टॉक में है, उससे वो अगले 15 महीने तक गरीबों में अनाज बांट सकती है।

आखिरी बात, इन सबके जरिए कैसे बिहार को टारगेट कर रही है सरकार?
प्रधानमंत्री मोदी जब 30 जून को जनता को संबोधित करने आए तो उन्होंने छठ पूजा का दो बार जिक्र किया। छठ बिहार का लोकपर्व है। इसलिए ही उनके संबोधन को बिहार चुनाव की तैयारियों से जोड़ा गया।

चुनाव आयोग के मुताबिक, 2019 के लोकसभा चुनाव के वक्त बिहार में 7.10 करोड़ वोटर्स थे। इनमें से 4.10 करोड़ ने ही वोट डाला था। जबकि, बिहार में गरीबों की संख्या उत्तर प्रदेश के बाद सबसे ज्यादा है।

राज्य में अक्टूबर-नवंबर में चुनाव हो सकते हैं। और नवंबर तक ही गरीबों को मुफ्त अनाज बांटा जाएगा। वहां इस योजना का जितने लोगों को फायदा मिलेगा, उनकी संख्या 8.5 करोड़ से ज्यादा है।

2015 के विधानसभा चुनाव में भाजपा को वोट शेयर सबसे ज्यादा 25% था। उसे 93 लाख से ज्यादा वोट मिले थे। हालांकि, उस चुनाव में भाजपा राज्य की 243 विधानसभा सीटों में से 53 ही जीत सकी थी।

उसके बाद 2019 के लोकसभा चुनाव में भी भाजपा को 96 लाख से ज्यादा वोट मिले थे। उसका वोट शेयर 24% से ज्यादा था। उसने 40 में से 17 सीटें जीती थीं।

अगर मान लें कि जिन लोगों को मुफ्त अनाज मिल रहा है, उनमें से 10% लोग ही वोटर्स होंगे, तो ये संख्या 85 लाख से ज्यादा होती है। अगर इन 85 लाख वोटर्स में से भी ज्यादातर लोग भाजपा को वोट देते हैं, तो उसे चुनाव में इसका बड़ा फायदा मिलने का अनुमान है।



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Bihar Assembly Election 2020/PM Garib Kalyan Yojana (PMGKY) News Updates: 8.5 Crore People Will Get 5 Kg Of Ration Till November


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