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शुक्रवार, 1 मई 2020

मेरे जीवन में पहली बार हुआ कि केदारनाथ के कपाट खुले और मैं मौजूद नहीं था, लेकिन मुझे कानून और परंपरा दोनों का ध्यान रखना था

केदारनाथ के कपाट खुल गए हैं। लेकिन कोराेना के चलते इस बार आम यात्रियों के लिए यहां आने पर पाबंदी है। पहली बार ही केदारनाथ के रावल जिनका स्थान गुरु के बराबर है, वह भी कपाट खुलते वक्त मौजूद नहीं थे। रावल भीमाशंकर लिंग के मुताबिक उनके जीवन में ऐसा पहली बार हुआ है। भीमाशंकर लिंग केदारनाथ के 324वें रावल हैं। दक्षिण भारत में उनका जन्म हुआ और महाराष्ट्र के सोलापुर के गुरुकुल में वेदों की पढ़ाई। हर साल रावल महाराष्ट्र से उत्तराखंड आते हैं। वह इन दिनों केदारनाथ से 70किमी दूर ऊखीमठ में हैं और क्वारैंटाइन का पालन कर रहे हैं। उन्होंनेभास्कर से फोन पर बात की -


आप कब से केदारनाथ के रावल हैं?

मैं 2001 से केदारनाथ में रावल के पद पर हूं। ये मंदिर का प्रथम और महत्वपूर्ण पद है। मेरी जिम्मेदारी मंदिर की पूजा व्यवस्थाओं को देखना है। केदारनाथ के रावल पूजा-पाठ नहीं करते, बल्कि उनकी देखरेख में पूजा होती है।

कपाट खुलने की तारीख बदलती तो आप इस परंपरा में शामिल हो सकते थे?

कपाट खुलने की तारीख बदलने पर विचार चल रहा था। मुझे कानून और परंपरा दोनों का ध्यान रखना है। कपाट खुलने की तारीख में बदलाव नहीं चाहता था। इसलिए समय पर ऊखीमठ में आकर क्वारैंटाइनहो गया। 19 अप्रैलकोऊखीमठ पहुंचकरयह मुकुट मंदिर समिति के लोगों को सौंप दिया। 2 मई को क्वारैंटाइन के 14 दिन खत्म होंगे और 3 को केदारनाथ जाऊंगा।

आपके क्वारैंटाइन होने से पूजा और परंपराओं में बदलाव हुआ?
नहीं, रावल पूजा-पाठ नहीं करते, उनकी देख-रेख में पूजा होती है। मेरी गैरमौजूदगी में मुख्य पुजारी शिव शंकर लिंग ने पूजा और परंपराएं पूरी की। क्वारैंटाइन खत्म होने पर वहां जाकर छूटी हुई पूजा करवाएंगे। इसके बाद से मेरे मार्गदर्शन में पूजा होने लगेंगी।

आप महाराष्ट्र में फंसे थे, ऊखीमठ तक कैसे आए?
मैं महाराष्ट्र के नांदेड़ में था। वहां से कार से आया। एक दिन में करीब 1000 किमी का सफर तय किया। बीच में रुक कर खुद ही अपना खाना बनाता और खाता था। पूजा-पाठ भी चलती रही। इस तरह दो दिन में ऊखीमठ पहुंच गया।

क्या आपके लिए क्वारैंटाइन एकांतवास है, कैसे बीतता है आपका दिन ?
एकांतवास और क्वारैंटाइन में अंतर है। दिनभर में करीब 10 से 12 घंटे तक पूजा-पाठ चलती है। आमतौर पर पूजा-पाठ में इतना समय नहीं दे पाते हैं। क्योंकि उस दौरान श्रद्धालुओं और लोगों से मिलना पड़ता है।

ऑनलाइन दर्शन करवाए जा सकते थे, उसका विरोध क्यों हुआ ?
परंपराओं को टूटने से बचाना था, इसलिए ही ऑनलाइन दर्शन का विरोध हुआ। ऑनलाइन दर्शन करवाने से चारधाम यात्रा और ज्यादा प्रभावित हो सकती थी। देश में अलग-अलग आस्था और मत वाले लोग रहते हैं। उनका ध्यान रखते हुए भी ये फैसला लिया।

केदारनाथ को चढ़ने वाला मुकुट आपके पास था, ये परंपरा कब से है ?
ये परंपरा सदियों से चली आ रही है। इसके पीछे आस्था है कि जिन 6 महीनों में केदारनाथ के दर्शन नहीं होते उस समय धार्मिक कार्यक्रमों में रावल इस मुकुट को पहनते हैं। लोग इस मुकुट के दर्शन करते हैं। जिससे उनको केदारनाथ दर्शन का फल मिलता है।



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रावल श्री भीमाशंकर लिंग की देखरेख में ही भगवान केदारनाथ की पूजा होती है। कपाट बंद होने पर भगवान केदारनाथ को चढ़ने वाला मुकुट ये ही पहनते हैं।


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हांगकांग में 100% लोग मास्क पहन रहे; मास्क कम न हो, इसलिए जेल में कैदी भी हर महीने 25 लाख मास्क बना रहे

ऐलेन यू. विश्व स्वास्थ्य संगठन की गाइडलाइन में कोरोना से बचने का सबसे अच्छा विकल्प सोशल डिस्टेंसिंग, बार-बार हाथ धुलना और मास्क पहनना है। दुनिया में जब तक इन तीनों विकल्पों पर पूर्ण रूप से अमल किया जाता, तब तक बहुत देर हो चुकी थी। इस सबके बीच चीन से लगे एक छोटे से देश हांगकांग ने लोगों की सुरक्षा के लिए सक्रियता दिखाई। रातोंरात स्कूल बंद कर दिए, शहर भर में पोस्टर लगा दिए कि हर दो घंटे में हाथ धोते रहें। घर से बाहर निकलने पर फेस मास्क जरूर लगाएं। लोग भी पीछे नहीं रहे। यहां पर मास्क पहनने का आंकड़ा 100 फीसदी दर्ज किया गया है। इसका नतीजा भी सबके सामने है। 75 लाख की आबादी वाले इस देश में कोरोना से सिर्फ 4 जाने गई हैं। 1038 संक्रमितों में से830 लोग स्वस्थ भी हो चुके हैं। देशवासियों को सर्जिकल मास्क की कमी न पड़े, इसके लिए यहां के जेल में बंद कैदी हर महीने 25 लाख मास्क बना रहे हैं। लेकिन, इस दौरान पश्चिम देशों में मास्क की जरूरत और उसकी क्षमता पर ही बहस होती रही और कई सप्ताह इसी में निकल गए।


17 साल पहले आए सार्स महामारी से हांगकांग के लोगोंने सीखासबक
हांगकांग के लोगों ने मास्क पर भरोसा इसलिए जताया, क्योंकि वे 17 साल पहले सार्स महामारी ने यहां कहर बरपाया था। इससे सबक लेते हुए यहां प्रशासन ने व्यापक स्तर पर मास्क बनाने का काम शुरू किया। हांगकांग के सर्वव्यापी मास्क के पीछे की कहानी भी काफी अनोखी है। दरअसल, हांगकांग में लाखों की संख्या में सर्जिकल मास्क यहां के कैदी बना रहे हैं, जिनमें से अनेक तो अतिरिक्त पैसों के लिए देर रात तक काम कर रहे हैं। चीन से लगने वाली सीमा पर मध्यम स्तर की सुरक्षा वाली लो वु जेल में फरवरी से 24 घंटे मास्क बनाने का काम चल रहा है। कैदियों के साथ-साथ रिटायर्ड कर्मचारी और काम से छूटने वाले अधिकारी भी मास्क बनाने में अपना योगदान दे रहे हैं। महामारी के हांगकांग पहुंचने से पहले यहां हर महीने 11 लाख मास्क तैयार किए जाते थे।


2018 में कैदियों द्वारा बनाए गए सामानों की कीमत 432 करोड़ रुपए थी

  • हांगकांग के कैदी जेल में अपना समय काम करते हुए बिताते हैं, जिससे न केवल उनके आलस और तनाव में कमी आती है, बल्कि काम से मिले पैसे से उन्हें अपने पुनर्वास में मदद मिलती है। यहां 4000 से अधिक कैदी हर साल ट्रैफिक चिह्न, पुलिस की वर्दी, अस्पताल कपड़े और सरकारी दफ्तरों में दी जाने वाली चीजें तैयार करते हैं।
  • 2018 में कैदियों द्वारा तैयार किए सामानों की कीमत 432 करोड़ रुपए आंकी गई थी। कैदी पूरी रात या अतिरिक्त शिफ्टों में यह काम स्वैच्छिक रूप से करते हैं। इसके लिए उन्हें ज्यादा मजदूरी दी जाती है। हालांकि दो साल की सजा पूरी कर पिछले ही महीने जेल से निकलीं यानीस कहती हैं कि उसे रोज की मजदूरी 4.30 डॉलर थी, जो हांगकांग में तय न्यूनतम मजदूरी का आठवां हिस्सा थी।
  • हांगकांग ह्यूमन राइट्स मॉनिटर के निर्देशक लॉ युक-काई कहते हैं कि समाज की अत्यावश्यक जरूरतों की पूर्ति के लिए इस तरह के सस्ते श्रम पर निर्भरता ठीक नहीं है। कैदी हमारी जरूरतों की पूर्ति के लिए इतनी मेहनत कर रहे हैं, तो उन्हें उनके काम का मामूली मेहनताना नहीं दिया जाना चाहिए।


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तस्वीर हांगकांग के लो वु जेल की है। यह चीन बॉर्डर पर स्थित है। इस मध्यम स्तर की सुरक्षा वाली जेल में बंद कैदी फरवरी से 24 घंटे मास्क बना रहे हैं।


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पेशे से सराफा कारोबारी लेकिन इन दिनों काम कोरोना पॉजिटिव की मौत होने पर अंतिम संस्कार करना

कोरोना से फैली बीमारी का सबसे डरावना पक्ष है मौत। वह मौत जिसके बाद अपने अंतिम संस्कार करने को भी राजी नहीं होते। वह मौत जिसके बाद शव छूने की इजाजत तक नहीं। कई मामलों में तो आखिर बार अपनों को मरनेवाले की सूरत देखना भी नसीब नहीं होता। सोशल डिस्टेंसिंग की चीख-पुकार के बीच कोरोनावायरस ने दूरी इतनी बना दी है कि परिजन शवों के करीब भी जाना नहीं चाहते। कुछ मामले तो ऐसे भी आए, जहां परिजन शवों का दाह संस्कार नहीं करना चाहते।

लेकिन कुछ ऐसे लोग हैं, जो इन परायों को अपनों की तरह अलविदा कर रहे हैं। जो कोरोना संक्रमण के बीच शवों के करीब भी जा रहे हैं। उन्हें कंधा भी दे रहे हैं। परिजनों के न होने पर अग्नि भी दे रहे हैं। यहां तक कि कुछ तो अंतिम संस्कार का खर्च तक उठा रहे हैं। वक्त सुबह से लेकर शाम तक श्मशान में शवों के बीच गुजर रहा है। परिवार इनका भी है। घर पर छोटे बच्चे भी हैं। खतरा इन्हें भी है, लेकिन बावजूद इसके ये बेखौफ यह काम कर रहे हैं। इंदौर, जयपुर और मुंबई के ऐसे ही तीन योद्धाओं की कहानी।

पहली कहानी इंदौर की...
प्रदीप वर्मा जूनी इंदौर मुक्तिधाम में शवों का निशुल्क अंतिम संस्कार करते हैं। पेशे से सराफा कारोबारी वर्मा 22 मार्च से मुक्तिधाम पर रोजाना ड्यूटी दे रहे हैं। सुबह 9 बजे से शाम 6 बजे तक यहीं रहते हैं। वे कहते हैं कि, ‘लावारिस शवों को मैं खुद अग्नि देता हूं। कोरोना संक्रमित शव भी आ रहे हैं, इन्हें भी अग्नि दे रहा हूं।' वर्मा पिछले 8 सालों से मुक्तिधाम में सेवाएं दे रहे हैं। लावारिस शवों के अंतिम संस्कार का खर्च वह खुद उठाते हैं।

वर्मा अपने साथियों के साथ पीपीई किट पहनकर यह काम करते हैं।

एक शव को जलाने में 1700 से 1800 रुपए का खर्चा आता है। इसमें ढाई क्विंटल लकड़ी, 30 कंडे और दो संटी लगती हैं। एमवाय से मुक्तिधाम तक शव को लाने में 250 रुपए लगते हैं। हर महीने 10-12 हजार इस काम पर खर्च करते हैं।
इतने सब खर्च के बीच आप अपने परिवार का पालन-पोषण कैसे कर रहे हैं? ये पूछने पर बोले- मेरी सराफा में दुकान है। सामान्य दिनों में दुकान पर रहता हूं और एक टाइम मुक्तिधाम में रहता हूं। कोरोनावायरस के बाद से दुकान बंद है, तब से पूरा समय मुक्तिधाम में ही बिता रहा हूं।

कोरोना मरीजों के आने पर डर लगता है? बोले, नगर निगम ने मुझे पीपीई किट दी है। इसे पहनकर ही पूरी सुरक्षा के साथ सेवाकार्य में जुटा हुआ हूं। अब घरवाले तो बाहर निकलने से भी मना करते हैं, लेकिन नहीं निकलूंगा तो यह सेवा कैसे कर पाऊंगा।

सुबह से शाम तक मुक्तिधाम में ही रहते हैं।

प्रदीप कहते हैं, बहुत से शव लावारिस होते हैं। मेरा नंबर एमवाय अस्पताल में भी है। लावारिस शव आने पर वो लोग मुझे सूचना देते हैं। मैं एम्बुलेंस से शव बुलवा लेता हूं। फिर यहां उसका अंतिम संस्कार करता हूं। कई बार परिजन साथ होते हैं कई बार नहीं होते। बोले, कुछ समय पहले एमवाय का एक स्वास्थ्यकर्मी खुद ही कोरोना संक्रमण का शिकार हो गया। हमने ही उसका अंतिम संस्कार किया। वो कोरोना मरीजों की सेवा के लिए अरबिंदो अस्पताल गया था, लेकिन फिर लौटकर वापिस नहीं आ पाया।

दूसरी कहानी जयपुर की...
कुछ ऐसी ही जिम्मेदारी जयपुर में विष्णु गुर्जर निभा रहे हैं। पिछले 7 सालों से मुर्दाघर में नौकरी कर रहे विष्णु बीते 28 दिनों से घर नहीं गए। वे कहते हैं कि हम शवों का पोस्टमार्टम भी करते हैं और अंतिम संस्कार भी करते हैं। अभी सिर्फ उन्हीं शवों का अंतिम संस्कार कर रहे हैं जो कोरोना पॉजिटिव होते हैं क्योंकि नेगेटिव वाले शवों को तो परिजन ले जाते हैं।
बहुत से ऐसे मामले सामने आ रहे हैं, जिनमें शव के साथ कोई होता ही नहीं। परिजन या तो आते नहीं या होते ही नहीं। ऐसे शवों का अंतिम संस्कार भी यही करते हैं। विष्णु ने बताया कि, कोरोना से बचने के लिए मैं पीपीई किट पहनता हूं। घरवालों को चिंता होती होगी? ये पूछने पर बोले, सर घर पर पत्नी, 6 माह की बेटी और एक तीन साल का बेटा है। परिवार में किसी को मेरे कारण संक्रमण न हो इसलिए लॉज में ही एक कमरा लिया है, वहीं रुका हूं।

विष्णु बीते 28 दिनों से अपने घर नहीं गए।

विष्णु कहते हैं, हम हिंदू ही नहीं बल्कि मुस्लिमों का भी अंतिम संस्कार कर रहे हैं। उन्हें दफनाने का काम करते हैं। कई बार उनकी साथी आ जाते हैं तो उनकी मदद कर देते हैं। बोले, कोरोना के कारण डर तो लगता है लेकिन हमे विश्वास है कि कुछ नहीं होगा। कुछ दिन पहले कोरोना टेस्ट भी करवाया है, जो निगेटिव आया।

विष्णु की टीम में मंगल, अर्जुन, मनीष और रोशन भी शामिल हैं। इन लोगों को 6 से 8 हजार रुपए महीना तक मिल जाता है। नगर निगम एक शव का पोस्टमार्टम करने से लेकर अंतिम संस्कार करने तक का 500 रुपए देती है। कई बार शव के साथ परिजन आते हैं लेकिन वे नजदीक नहीं जाते, ऐसे में पूरी प्रक्रिया हम लोगों को ही पूरी करनी होती है।

तीसरी कहानी मुंबई की....
मुंबई में शवों का दफनाने का काम शोएब खतीब अपनी टीम के साथ निभा रहे हैं। वे कहते हैं, हमारी 35 लोगों की टीम है। जिस भी हॉस्पिटल में मौत होती है, वहां के नजदीकी कब्रिस्तान में शव लाकर दफनाने का काम करते हैं।
कई बार तो शव को अस्पताल से क्लेम करने भी जाते हैं, क्योंकि परिवार क्वारेंटाइन में है। टीम में हर किसी ही अलग-अलग जिम्मेदारी है। कोई शव को एम्बुलेंस से उतारने का काम करता है। कोई गड्‌ढा खोदने का काम करता है तो कोई दफनाने का।

शवों का दफनाने का काम शोएब खतीब अपनी टीम के साथ कर रहे हैं।

शोएब कहते हैं कि, हम तो चौबीस घंटे इसी काम में लगे हैं। दिन ही नहीं रात में भी शव को दफना रहे हैं। सुरक्षित रहने के लिए पीपीई किट पहनते हैं। सैनिटाइजर पास रखते हैं, लेकिन खतरा तो होता ही है। बोले, जामा मस्जिद ऑफ बॉम्बे ट्रस्ट द्वारा यह पूरा सेवाएं फ्री दी जा रही हैं। इसके लिए लोगों से पैसा नहीं वसूला जाता।



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After Death, This Businessman Funeral Coronavirus


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कोरोनावायरस खून के थक्के जमाकर फेफड़ों को ब्लॉक कर सकता है, आयरलैंड के मरीजों पर स्टडी के बाद पता चला

कोरोनावायरस शरीर में खूनके थक्के जमाकर फेफड़ों को ब्लॉक कर सकता है। यह दावा आयरलैंड के डॉक्टरों ने किया है। कोरोना से पीड़ित 83 गंभीर मरीजों पर हुई स्टडी के दौरान वायरस का एक और खतरा सामने आया है। डबलिन के सेंट जेम्स हॉस्पिटल के डॉक्टरों का कहना है कि यह नया वायरस फेफड़ों में करीब 100 छोटे-छोटे ब्लॉकेज बना देता है जिससेशरीर में ऑक्सीजन का स्तर घट जाता हैऔर मरीज की मौत भी हो सकती है। शोधकर्ता प्रो. जेम्स ओ-डोनेल का कहना है कि कोविड-19 एक खास तरह केब्लड क्लॉटिंग डिसऑर्डर (खून के थ्) की वजह बनता है जो सीधे तौर पर सबसे पहले फेफड़ों पर हमला करता है।

पांच पाइंट में कोरोना और खून के थक्कों का कनेक्शन

  • 1. करीब 80 फीसदी पहले से ही बीमारी से जूझ रहे थे

ब्रिटिश जर्नल ऑफ हिमेटोलॉजी में प्रकाशित रिसर्च के मुताबिक, 83 गंभीर मरीजों में 81 फीसदी यूरोपियन, 12 फीसदी एशियाई, 6 फीसदी अफ्रीकन और एक फीसदी स्पेनिशहैं। इन मरीजों की उम्र औसतन 64 साल थीऔर करीब 80 फीसदी पहले से किसी न किसी बीमारी से जूझ रहे थे। इनमें 60 फीसदी रिकवर हुए थे और 15.7 फीसदी मरीजोंकी मौत हो गई थी।

  • 2. थक्का जमाने वाले प्रोटीनका स्तर बढ़ा मिला

मरीजों में रक्त के थक्के कितनी जल्दी जमते हैं इसके लिए शोधकर्ताओं नेडी-डाइमर नाम के प्रोटीन केस्तर कोचेक किया। डी-डाइमर एक ऐसाप्रोटीन है जो अगरशरीर में ज्यादा होगा तोरक्त का थक्का जमने का खतरा उतना ही अधिक होगा। रिसर्च में शामिल मरीजों में डी-डाइमर सामान्य से अधिक मात्रा में मिला था। शोधकर्ताओं के मुताबिक, मरीजों के फेफड़ों के असामान्य ब्लड क्लॉटिंग के मामले दिखे जो छोटे-छोटे थक्के जमने की वजह बने थे। ऐसे मरीजों को सीधेआईसीयू में भर्ती किया गया।

  • 3. हाई रिस्क मरीजों में थक्के के मामले अधिक

शोधकर्ता प्रो. जेम्स ओ-डोनेल के मुताबिक, निमोनिया भी फेफड़ों को प्रभावित करता है लेकिन कोरोना के मरीजों में जिस तरह का संक्रमण फेफड़ों में दिख रहा है वैसा दूसरे संक्रमणमें नहीं देखा गया। फेफड़ों में जमने वाले इन छोटे-छोटे थक्कों को समझने की कोशिश की जा रही है ताकि बेहतर इलाज किया जा सके। इसके मामले उन मरीजों में ज्यादा दिखे हैं जो पहले से हाई-रिस्क जोनमें हैं यानी जिनकी उम्र अधिक है और जिन्हेंपहले से कोई गंभीरबीमारी हैं।

  • 4. थक्के हार्ट अटैक और स्ट्रोक का खतरा बढ़ाते हैं

यह रिसर्च अमेरिकी विशेषज्ञों की एकहेल्थ रिपोर्ट के बाद आई है, जिसमें कहा गया था कोरोना पीड़ितों की सर्वाधिक मौत की वजह शरीर में खून में थक्के जमना था। हॉस्पिटल से डिस्चार्ज होने वाले मरीजों में भी ऐसा दिखा गया था। एक अन्य रिसर्च में यह सामने आया कि ऐसे मरीजों में अनियंत्रित रक्त के थक्के हार्ट अटैक और स्ट्रोक के मामले भी बढ़ाते हैं।

  • 5. चीनी लोगों में ऐसे मामले कम

शोधकर्ताओं का कहना है कि चीनी लोगों में आनुवांशिक भिन्नताओं के कारण उनमें रक्त केथक्केजमने के मामले काफी कम होते हैं। यही वजह है कि चीन के मुकाबले यूरोप और अमेरिकामें कोरोना के काफी गंभीर मामले सामने आए हैं।



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coronavirus may cause deadly blood clots Irish doctors find infection can cause hundreds of small blockages in the lungs


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बच्चा मास्क से डरे, ताे उसे मजेदार चित्राें वाले मास्क दें, इससे जुड़ी क्राफ्ट एक्टिविटी करवाएं, उसके खेल में भी मास्क को शामिल करें

(पेरी क्लास, एम.डी).काेराेना संक्रमण के दाैर में एक महीने में लाेगाें की जीवनशैली में शामिल हुए मास्क काे वयस्काें ने ताे अपना लिया है, लेकिन बच्चाें के लिए यह किसी खाैफ से कम नहीं है। कई बच्चाें काे यह डरा सकता है। मुखाैटाें से डरने वाले बच्चे मास्क काे लेकर ऐसी हीप्रतिक्रिया कर सकते हैं। ऐसे में बड़ा संकट है बच्चों को मास्क से परिचित करवाना।हार्वर्ड मेडिकल स्कूल में साइकाेलाॅजी के लेक्चरर राेबर्टाे ओलिवर्डिया कहते हैं, ‘करीब एक प्रतिशत बच्चे मास्काफाेबिया से पीड़ित हाे सकते हैं। यह ऐसा डर है, जाे बच्चाें में छह महीने तक रह सकता है। यह काॅस्ट्यूम औरसुपरहीराे से भी जुड़ा हाे सकता है।’

हालांकि, कई बच्चे अपने माता-पिता काे मास्क पहने देखकर डर सकते हैं।

छाेटे बच्चाें में चेहरा पहचानने की शक्ति कम हाेती है- प्रो. कांग ली
बच्चाें के चेहरा पहचानने के काैशल के विकास का अध्ययन करने वाले टाेरंटाे यूनिवर्सिटी के प्राे. कांग ली के मुताबिक, मास्क से डरने का एक कारण चेहरा न पहचान पाना हाे सकता है। छाेटे बच्चाें में चेहरा पहचानने की शक्ति कम हाेती है। छह वर्ष की उम्र से बच्चाें में यह काैशल विकसित हाेता है। 14 वर्ष की उम्र तक वे वयस्काें जैसे काैशल तक पहुंच पाते हैं। छह वर्ष से कम उम्र के बच्चे किसी व्यक्ति के पूरे चेहरे काे पहचानने की बजाय चेहरे की किसी विशेषता से याद रखते हैं। जैसे नाक के आकार, आंख के प्रकार आदि।

बच्चों के सामने मास्क उतारें और लगाएं- डायरेक्टर मोंडलोक
ओंटेरियाे स्थित ब्राेक यूनिवर्सिटी में फेस परसेप्शन लैब की डायरेक्टर कैथरीन जे. माेंडलाेक के मुताबिक, बच्चाें के सामने बार-बार मास्क उतारें और लगाएं, ताकि वे पहचान सकें कि आप उनके माता-पिता हैं।

डॉ. विलार्ड ने कहा- फोबिया के इलाज के लिए एक्सपोजर थेरेपी बेहतर

कैंब्रिज में साइकाेथेरेपिस्ट डाॅ. क्रिस्टाेफर विलार्ड कहते हैं, ‘फाेबिया के इलाज के लिए एक्सपाेजर थेरेपी बेहतर है। परिजन मास्क से पहचान कराने का अनाैपचारिक तरीका अपना सकते हैं। मजेदार चित्राें वाले मास्क उन्हें दें। उन्हें अपना मास्क डिजाइन करने दें। इससे जुड़ी क्राफ्ट एक्टिविटी भी करवा सकते हैं। उन्हें मास्क पहनने और उतारने का अभ्यास कराएं। घर में घूमते-खेलते समय भी उन्हें मास्क पहनाएं। मास्क पहने हुए आंखोंके इशाराें से उन्हें समझाएं और उन्हें भी उसी तरह संवाद करने के लिए कहें।’

डॉ. कोपलिवक्ज के मुताबिक,बच्चों को समझा सकते हैं कि डॉक्टर और नर्स हीरोहैं

चाइल्ड माइंड इंस्टीट्यूट के प्रेसिडेंट डाॅ. हाराेल्ड काेपलिवक्ज कहते हैं, ‘सुपरहीराे से संबंध जाेड़ने से भी मदद मिल सकती है। उन्हें समझा सकते हैं कि डाॅक्टर और नर्स हीराे हैं, जाे लाेगाें की सुरक्षा करते हैं और मदद करते हैं। हम भी सुपरहीराे बन सकते हैं और मास्क पहनकर दूसराें की रक्षा कर सकते हैं।’



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फेस परसेप्शन लैब की डायरेक्टर कैथरीन जे. माेंडलाेक के मुताबिक, बच्चाें के सामने बार-बार मास्क उतारें और लगाएं, ताकि वे पहचान सकें कि आप उनके माता-पिता हैं।


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इजरायल में सरकार की नाकामी के खिलाफ प्रदर्शन; तुर्की में वेतन की मांग कर उग्र कामगार सड़कों पर उतरे

तस्वीर इजरायल के तेल अवीव शहर की है। लॉकडाउन के दौरान हजारों कलाकारों और छोटे कारोबारियों ने सरकार के खिलाफ सोशल डिस्टेंसिंग का पालन करते हुए प्रदर्शन किया। इन लोगों ने आरोप लगाया कि सरकार कोराेना संकट का मुकाबला ठीक से नहीं कर सकी है। बता दें कि इजरायल में अब तक कोरोनावायरस के 16 हजार से ज्यादामामले सामने आ चुके हैं। जबकि 223 लोगों की मौत हुई है।

सुविधाओं की मांग को लेकर उग्र कामगार सड़कपर उतरे

मजदूर दिवस पर तुर्की की राजधानी इस्तांबुल में हजारों कामगारों ने वेतन और सुविधाओं की मांग को लेकर सरकार के खिलाफ प्रदर्शन किया। इस बीच, ट्रेड यूनियन के कुछ नेताओं की पुलिस से हिंसक झड़प हो गई। इसमें कुछ लोग घायल हो गए। सरकार ने लॉकडाउन के मद्देनजर रैलियों पर रोक लगाई है। इसके बावजूद लोग सड़कों पर उतरे। तुर्की में कोरोना के 1 लाख 20 हजार 204 मामले आए हैं। अब तक 3,174 मौतें हो चुकी हैं।

प्रदर्शन के दौरानट्रेड यूनियन के कुछ नेताओं की पुलिस से हिंसक झड़प भी हुई।


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इजरायल के तेल अवीव शहर में हजारों कलाकारों और छोटे कारोबारियों ने सरकार के खिलाफ सोशल डिस्टेंसिंग का पालन करते हुए प्रदर्शन किया।


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लंदन के क्रिस हर दिन बना रहे एक नया टैटू; ॐ से अध्यात्म पर भरोसा जताया, फरिश्ता बनाकर कोरोना कर्मवीरों को शुक्रिया कहा

लॉकडाउन के बीच लंदनकेटैटू आर्टिस्टक्रिस वुडहेड बीते 40 दिनों सेअपने शरीर पर हर दिन एक नया परमानेंटटैटू बना रहे हैं। चेहरे को छोड़ दें तो बाकी शरीर पर अब और नए टैटू बनाने कीजगह नहीं बची। इनके टैटूज में कई कहानियां भीछिपी हैं।

किसी टैटू में मेडिकल स्टाफ (एनएचएस) को धन्यवाद कहा गया है तो कहीं लॉकडाउन खत्म होने का सवाल छिपा है। कहीं पर ॐ बना है तो कहीं किसी हिस्से में एक फरिश्तामुस्कुराता नजर आ रहा है। कान में मकड़ी का जाल है तो पैर के तलवों तक में मैसेज लिखा है।

क्रिस उत्तरी-पूर्वी लंदन के वॉथैम्स्टो में रहते हैं और रोजाना दोपहर 2 बजे से 4 बजे अपनेसोफे पर बैठकरशरीर का ऐसा नयाहिस्सा ढूंढते हैं जहां टैटू बनाया जा सके और कोई कहानी कही जा सके।

तस्वीरों में क्रिस की और टैटूज कीकहानी -

कोरोना महामारी में टाइमपास करने और तनाव से बचने के लिए क्रिस ने रोजाना एक टैटू बनाने की शुरुआत की। शरीर पर टैटू बनाने का शौक 18 साल की उम्र में चढ़ा था। क्रिस को प्रेरणा डंकन एक्स से मिली जो ब्रिटेन के जाने माने टैटू आर्टिस्ट हैं और उनके पूरे शरीर पर भी टैटू हैं। तस्वीर साभार- इंस्टाग्राम
क्रिस का कहना है कि डंकन एक्स ने जब मेरे शरीर पर टैटू बनाया तो मेरी उम्र 19 साल की थी। उसके बाद मेरे एक दोस्त ने टैटू बनाने के लिए मुझे कैनवस कीतरह इस्तेमाल किया। उसने मुझ पर 400 से अधिक टैटू बनाए।
क्रिस रोजाना लॉकडाउन की किसी न किसी स्थिति से प्रेरित होते हैं और दोपहर 2 से 4 के बीच टैटू बनाना शुरू करते हैं। वह कहते हैं, मैं इसे एक थैरेपी की तरह मानता हूं, जो मेरे मन में आता है उसे बनाता हूं।

क्रिस को इंतजार है लॉकडाउन हटने और इस महामारी के खत्म होने का। वह कहते हैं, यह बेहद बुरा समय है ऐसे में एनएचएस जिस तरह लोगों की मदद कर रहा है वह तारीफ के काबिल है। उनसे प्रेरित होने की जरूरत है। वे इतनेमुश्किल हालात में भी डटे हुए हैं और अपना फर्ज निभा रहे हैं।

क्रिस के टैटू बनाने की तकनीक काफी पुरानी है जिसमें बिना बिजली सुई की मदद से टैटू बनाया जाता है। वह कहते हैं, यह तकनीक आधुनिक टैटू गन के मुकाबले कम दर्द देती है।


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Corona lockdown story artist tattos himself and expressed gratitude to nhs and waiting to life lockdown


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कोरोना के दौर में रोबोट टीचर्स, वर्क फ्रॉम होम, डिस्टेंस लर्निंग जैसे ट्रेंड बने जिंदगी का अहम हिस्सा

कोरोना संकट के दौरान लॉकडाउन, क्वारैंटाइन या आइसोलेशन के समय में समाज को गतिशील रखने में रखने में टेक्नोलॉजी महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही हैं। वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम के मुताबिक, कोरोना महामारी ने प्रमुख टेक्नोलॉजी ट्रेंड्स को रफ्तार दे दी है। इनमें डिजिटल पेमेंट, टेलीहेल्थ और रोबोटिक्स भी शामिल हैं।कारोबार खुले रहने के बावजूद ये टेक्नोलॉजी संक्रमण को फैलने से रोकने में काम आ रही हैं। ये अन्य खतरों से निपटने के लिए समाज को लचीला बनाने में मदद भी कर रही हैं।

इन 8 प्रमुख ट्रेंड्स से जानिए कि कोरोनावायरस और लॉकडाउन से कैसे हर क्षेत्र में कैसे हो रहा है बदलाव

1 ऑनलाइन शॉपिंग और रोबोट डिलीवरी: 2002 में सार्स ने चीन में ऑनलाइन मार्केटप्लेस में जबरदस्त इजाफा किया। कोरोना ने इसे अगले स्तर पर पहुंचाया है।
2 डिजिटल पेमेंट: करेंसी से वायरस फैलने की संभावना है, इसलिए कार्ड या ई-वॉलेट से कॉन्टैक्टलेस पेमेंट बढ़ा है।
3 क्लाउड टेक्नोलॉजी, वीपीएन: वर्क फ्रॉम होम का चलन बढ़ा है। इसमें वीपीएन, इंटरनेट प्रोटोकॉल, वर्चुअल मीटिंग्स, क्लाउड टेक्नोलॉजी बढ़ी है।
4 डिस्टेंस लर्निंग, एआई वाले रोबोट टीचर्स: स्कूल, कॉलेज बंद होने से 191 देशों में करीब 157 करोड़ छात्र घरों में बंद हैं। ऐसे में ऑनलाइन पढ़ाई बढ़ी है। वर्चुअल रियलिटी, एआई टीचर्स का चलन बढ़ा है।
5 टेलीहेल्थ: टेलीहेल्थ संक्रमण नियंत्रित करने का प्रभावी तरीका है। वियरेबल डिवाइस और चैटबोट्स मरीजों के लक्षणों के आधार पर शुरुआती निदान कर रहे हैं।
6एंटरटेनमेंट: फिल्में ऑनलाइन रिलीज हो रही हैं। म्यूजियम वर्चुअल टूर करवा रहे हैं। ऑनलाइन गेमिंग भी बढ़ी।
7 सप्लाई चेन: कोरोना ने सबसे ज्यादा असर ग्लोबल सप्लाई चेन पर डाला है। ऐसे में बिग डाटा, इंटरनेट ऑफ थिंग्स, ब्लॉकचेन जैसी टेक्नोलॉजी सप्लाई चेन मैनेजमेंट सिस्टम में मदद कर रही हैं।
8 3डी प्रिंटिग: सुरक्षा उपकरणों की आपूर्ति पर रोक के झटके को 3डी प्रिंटिंग ने कम किया है। एक ही प्रिंटर कई डिजाइन फाइलों और सामग्रियों के आधार पर विभिन्न उत्पादों को बना सकता है।



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191 देशों में करीब 157 करोड़ छात्र घरों में बंद हैं। ऐसे में ऑनलाइन पढ़ाई बढ़ी है। वर्चुअल रियलिटी, एआई टीचर्स का चलन बढ़ा है। -प्रतीकात्मक फोटो


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कोरोना संक्रमण के 5 से 10 दिन बेहद चिंताजनक, सतर्कता जरूरीः डॉक्टर

(तारा पार्कर-पोप).जब मेरे एक रिश्तेदार हाल ही में गंभीर रूप से बीमार हुए, तो कोरोना संक्रमण लग रहा था। मेरा पहला सवाल समय के बारे में था कि आपको कितने दिन पहले लक्षण दिखने शुरू हुए थे? बीमारी के पहले संकेत पर रोज का कैलेंडर बनाना संक्रमण की निगरानी के महत्वपूर्ण कदम हैं। जैसे- कब क्या हुआ, बुखार और ऑक्सीजन के स्तर को ट्रैक करना आदि।

अल्बर्टा यूनिवर्सिटी में संक्रामक रोग विशेषज्ञ डॉ. इलाना श्वार्ट्ज कहते हैं,“ज्यादातर लोग एक हफ्ते में ठीक हो जाते हैं, लेकिन कुछ लोग बीमारी की “एक बहुत बुरी दूसरी लहर” में प्रवेश कर जाते हैं। हालांकि, हर मरीज अलग होता है, लेकिन संक्रमण के 5 से 10 दिन सांसों की जटिलता के लिए सबसे चिंताजनक समय होता है।” डॉ. श्वार्ट्ज के मुताबिक, ब्लड प्रेशर, डाइबिटीज और मोटापे से जूझ रहे लोगों की स्थिति 10 से 12 दिन में मुश्किल हो सकती है।

मॉनिटरिंग से बेहतर इलाज में मिलेगी मदद

1-3 दिनःकोरोना के शुरुआती लक्षण भिन्न होते हैं। यह गले में खुजली, खांसी, बुखार, सिरदर्द और छाती में दबाव से शुरू हो सकता है। कभी-कभी यह लूज मोशन से शुरू होता है। कुछ लोग थकान महसूस करते हैं और स्वाद और गंध पहचान नहीं पाते।

4-6 दिनःकभी-कभी बुखार, दर्द, ठंड लगना, खांसी और बेचैनी जैसे लक्षण दिखने लगते हैं। कुछ बच्चों और युवाओं के शरीर पर चकते पड़ सकते हैं। हाथ-पैर की उंगलियों पर खुजलीदार लाल धब्बे, सूजन या छाले हो सकते हैं।

7-8 दिनःसीडीसी के मुताबिक, जिन रोगियों के लक्षणों में सुधार है और 3 दिनों से बुखार नहीं है, वे आइसोलेशन से बाहर आ सकते हैं। कुछ की स्थिति बनी रह सकती है। ऑक्सीजन के स्तर की निगरानी करनी चाहिए। अस्वस्थ महसूस करने पर तुरंत डॉक्टर को दिखाएं।

8-12 दिनःइस दौरान मरीज को पेट के बल या करवट पर लेटने से बेहतर नींद महसूस हो सकती है। माउंट सिनाई के डॉ. चार्ल्स पॉवेल कहते हैं,‘8-12 दिन में पता चल जाता है कि मरीज की स्थिति बेहतर है या बिगड़ने वाली है। ऑक्सीजन का स्तर महत्वपूर्ण है।’

13-14 दिनःहल्की बीमारी वाले मरीजों को ठीक हो जाना चाहिए। जिनमें लक्षण बदतर थे, लेकिन ऑक्सीजन का स्तर बनाए रखा, वे दो हफ्ते में ठीक होने चाहिए। हालांकि, जिन्हें कम ऑक्सीजन के कारण अतिरिक्त उपचार की आवश्यकता हो, अभी भी अस्वस्थ और थके हुए महसूस कर रहे हो, तो उन्हें ठीक होने में अधिक समय लग सकता है।



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डॉक्टर के मुताबिक, हर मरीज अलग होता है, लेकिन संक्रमण के 5 से 10 दिन सांसों की जटिलता के लिए सबसे चिंताजनक समय होता है। -फाइल फोटो


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एंडी ने जीता वर्चुअल टेनिस टूर्नामेंट तो माइक ने किचन में सेटअप लगाकर साइकिल रेस की, क्रिकेट अंपायर ऑनलाइन फैसले दे रहे

कोरोनावायरस ने खेल पर पूरी तरह विराम लगा दिया है। ओलिंपिक से लेकर आईपीएल तक सभी इवेंट टल चुकेहैं। इन सब के बीच खेल में टेक्नॉलॉजी का प्रयोग काफी बढ़ गया है। कोरोना का प्रकोप न होता तो इन्हें आने में सालों लग जाते। अब खिलाड़ी वर्चुअल ट्रेनिंग तो ले ही रहे हैं। साथ ही वर्चुअल टूर्नामेंट भी खेल रहे हैं। कोच भी खिलाड़ियों को ऑनलाइन फिटनेस टिप्स दे रहे हैं।

1. टेनिस: ब्रिटेन के एंडी मरे ने घर के सोफे पर बैठकर मैड्रिड ओपन जीता। उन्होंने टेनिस वर्ल्ड टूर वीडियो गेम के फाइनल में डेविड गाॅफिन को हराया और 1.2 करोड़ की प्राइज मनी जीती, जो उन्होंने डोनेट कर दी। किकी बर्टेंस महिला कैटेगरी में चैंपियन बनीं।

एंडी मरे नेटेनिस वर्ल्ड टूर वीडियो गेम के फाइनल में डेविड गाॅफिन को हराया।

2. फुटबॉल: अमेरिका में खिलाड़ियों को वीडियो कॉन्फ्रेंस से स्किल सिखाई जा रही। खेल के नए तरीके भी बताए जाते हैं।

3. बास्केटबॉल: एनबीए में ऐप से खिलाड़ियों को ट्रेनिंग दी जा रही है। ऐप खिलाड़ियों का डेटा भी जमा कर रहा है।

4. कुश्ती: भारतीय कुश्ती कोच कृपा शंकर पटेल वीडियो कॉल के जरिए खिलाड़ियों को नए-नए मूव्स बता रहे हैं। उन्होंने बताया कि टेक्नोलॉजी की वजह से वो खिलाड़ियों की मदद करने के साथ ही घर में पिता का ख्याल भी रख पा रहे हैं।

5. मैराथन: अमेरिका में कॉर्प्स मैराथन मई में वर्चुअल होगी। खिलाड़ी को दर्शकों के चीयर करने की आवाज भी आएगी।

6. चेस: ऑनलाइन नेशन्स कप 5 मई से होना है। विश्वनाथन आनंद समेत दुनिया के कई बड़े खिलाड़ी हिस्सा लेने वाले हैं।

7. साइक्लिंग: नीदरलैंड के माइक ट्यूनिसन समेत 13 अन्य साइक्लिस्ट ने 30 किमी लंबी वर्चुअल टूर ऑफ फ्लैंडर्स में हिस्सा लिया। माइक ट्यूनिसन ने किचन में सेटअप लगाकर साइक्लिंग की। बेल्जियम के ग्रेग वान एवरमेट ने रेस जीती।

8. स्वीमिंग: भारतीय खेल मंत्री किरेन रिजिजू ने सोशल मीडिया पर ऑनलाइन स्वीमिंग सेशन के बारे में बताया।

9. विंटर गेम्स के लिए ऑनलाइन भर्ती: गेम्स के आयोजकों ने ऑनलाइन इंटरव्यू कर कर्मचारियों की भर्ती की है।

10. क्रिकेट: आईसीसी अंपायरों की स्किल सुधारने पर काम कर रही है। भारतीय अंपायर शम्शुद्दिन ने बताया कि आईसीसी के ऑनलाइन सेशन में उन्हें मैच के वीडियो दिए जाते हैं और इसपर फैसला देने को कहा जाता है।



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नीदरलैंड के माइक ट्यूनिसन समेत 13 अन्य साइक्लिस्ट ने 30 किमी लंबी वर्चुअल टूर ऑफ फ्लैंडर्स में हिस्सा लिया।


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राजस्थान में एक ऐसा मंदिर जहां पार्वतीजी होम क्वारैंटाइन में और महादेव कर रहे हैं इंतजार

(महेंद्र शर्मा)राजस्थान में बूंदी जिले के हिंडाैली कस्बे में एक ऐसा मंदिर है, जहां से मूर्ति चुराकर ले जाने पर कोई पुलिस केस दर्ज नहीं कराया जाता। यहां रामसागर झील किनारे रघुनाथ घाट मंदिर से पार्वतीजी की मूर्ति चुराने के पीछे की वजह अनूठी है। मान्यता है कि जिस युवक की शादी नहीं हो पा रही, अगर वह इस मंदिर से गुपचुप पार्वती की मूर्ति चुरा ले जाए तो उसकी शादी जल्द हो जाती है। यही वजह है कि कुंवारे मंदिर से रात के अंधेरे में गुपचुप मां पार्वती की मूर्ति उठा ले जाते हैं।

कुंवारों को करना पड़ सकता है लंबा इंतजार

मंदिर में महादेव (शिवलिंग) के बगल में ही पार्वतीजी की मूर्ति स्थापित है। पर महादेव जोड़े के साथ कम ही नजर आते हैं, क्योंकि कुंवारे पहले से ताक में रहते हैं। फिलहाल, सावन केपहले से पार्वतीजी महादेव से बिछुड़ी हुई हैं। वे किसी कुंवारे के घर होम क्वारैंटाइन में हैं। लॉकडाउन के चलते इस बार अक्षय तृतीया जैसे मुहूर्त पर भी शादियां नहीं हुईं। लॉकडाउन नहीं टूटा और शादियां नहीं हुई तो जुलाई से चार महीने के लिए देव सो जाएंगे, ऐसे में कम ही उम्मीद है कि पार्वतीजी महादेव के पास जल्द लौट आएंगी। कतार में लगे कुंवारों को इस बार लंबा इंतजार करना पड़ सकता है।

अब तक 15-20 बार पार्वतीजी की मूर्ति चोरी हो चुकी है

पिछले 35 साल से मंदिर में पुजारी के रूप में सेवा दे रहे रामबाबू पाराशर बताते हैं कि अब तक 15-20 बार पार्वतीजी की मूर्ति चोरी हो चुकी है। चुराने वालों की शादियां भी हो चुकी हैं। हमें चोरी का पता चल भी जाता है तो भी किसी को टोकते नहीं। साल में बमुश्किल एक-दो महीने ही पार्वतीजी की प्रतिमा मंदिर में विराजित रह पाती हैं। लौटते ही उन्हें फिर कोई चुरा ले जाता है।



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मान्यता है कि जिस युवक की शादी नहीं हो पा रही, अगर वह इस मंदिर से गुपचुप पार्वती की मूर्ति चुरा ले जाए तो उसकी शादी जल्द हो जाती है। यही वजह है कि कुंवारे मंदिर से रात के अंधेरे में गुपचुप मां पार्वती की मूर्ति उठा ले जाते हैं।


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राजस्थान में एक ऐसा मंदिर जहां पार्वतीजी होम क्वारैंटाइन में और महादेव कर रहे हैं इंतजार

(महेंद्र शर्मा)राजस्थान में बूंदी जिले के हिंडाैली कस्बे में एक ऐसा मंदिर है, जहां से मूर्ति चुराकर ले जाने पर कोई पुलिस केस दर्ज नहीं कराया जाता। यहां रामसागर झील किनारे रघुनाथ घाट मंदिर से पार्वतीजी की मूर्ति चुराने के पीछे की वजह अनूठी है। मान्यता है कि जिस युवक की शादी नहीं हो पा रही, अगर वह इस मंदिर से गुपचुप पार्वती की मूर्ति चुरा ले जाए तो उसकी शादी जल्द हो जाती है। यही वजह है कि कुंवारे मंदिर से रात के अंधेरे में गुपचुप मां पार्वती की मूर्ति उठा ले जाते हैं।

कुंवारों को करना पड़ सकता है लंबा इंतजार

मंदिर में महादेव (शिवलिंग) के बगल में ही पार्वतीजी की मूर्ति स्थापित है। पर महादेव जोड़े के साथ कम ही नजर आते हैं, क्योंकि कुंवारे पहले से ताक में रहते हैं। फिलहाल, सावन केपहले से पार्वतीजी महादेव से बिछुड़ी हुई हैं। वे किसी कुंवारे के घर होम क्वारैंटाइन में हैं। लॉकडाउन के चलते इस बार अक्षय तृतीया जैसे मुहूर्त पर भी शादियां नहीं हुईं। लॉकडाउन नहीं टूटा और शादियां नहीं हुई तो जुलाई से चार महीने के लिए देव सो जाएंगे, ऐसे में कम ही उम्मीद है कि पार्वतीजी महादेव के पास जल्द लौट आएंगी। कतार में लगे कुंवारों को इस बार लंबा इंतजार करना पड़ सकता है।

अब तक 15-20 बार पार्वतीजी की मूर्ति चोरी हो चुकी है

पिछले 35 साल से मंदिर में पुजारी के रूप में सेवा दे रहे रामबाबू पाराशर बताते हैं कि अब तक 15-20 बार पार्वतीजी की मूर्ति चोरी हो चुकी है। चुराने वालों की शादियां भी हो चुकी हैं। हमें चोरी का पता चल भी जाता है तो भी किसी को टोकते नहीं। साल में बमुश्किल एक-दो महीने ही पार्वतीजी की प्रतिमा मंदिर में विराजित रह पाती हैं। लौटते ही उन्हें फिर कोई चुरा ले जाता है।



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मान्यता है कि जिस युवक की शादी नहीं हो पा रही, अगर वह इस मंदिर से गुपचुप पार्वती की मूर्ति चुरा ले जाए तो उसकी शादी जल्द हो जाती है। यही वजह है कि कुंवारे मंदिर से रात के अंधेरे में गुपचुप मां पार्वती की मूर्ति उठा ले जाते हैं।


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