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शनिवार, 31 अक्टूबर 2020
कंगना के निशाने पर नेहरू; मुनव्वर ने किया आतंकी का बचाव; देश की पहली सी-प्लेन सर्विस गुजरात में शुरू

नमस्कार!
देश में कोरोना टेस्टिंग का आंकड़ा 11 करोड़ के करीब पहुंच गया है। हालांकि चिंताजनक बात यह है कि 7 राज्यों में एक्टिव केस घटने के बजाए अब बढ़ने लगे हैं। बहरहाल, शुरू करते हैं मॉर्निंग न्यूज ब्रीफ...
आज इन इवेंट्स पर रहेगी नजर
- IPL में आज डबल हेडर मुकाबले। पहला मैच किंग्स इलेवन पंजाब और चेन्नई सुपरकिंग्स के बीच अबु धाबी में दोपहर साढ़े तीन बजे से खेला जाएगा। दूसरा मुकाबला राजस्थान रॉयल्स और कोलकाता नाइटराइडर्स के बीच दुबई में शाम साढ़े सात बजे से होगा।
- मुंबई में आज मेनटेनेंस के चलते मध्य रेलवे का मेगा ब्लॉक, हार्बर लाइन पर लोकल ट्रेनें नहीं चलेंगी।
- प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी आज फिर बिहार में होंगे। उनकी आज यहां तीन रैलियां होंगी। पहली सारण के छपरा, दूसरी पूर्वी चंपारण और तीसरी समस्तीपुर में है।
- झारखंड में आज शाम दुमका और बेरमो उपचुनाव का प्रचार खत्म हो जाएगा। 3 नवंबर को दोनों ही जगहों पर वोटिंग होगी।
देश-विदेश
मुनव्वर राणा ने फ्रांस के आतंकी हमलावर का बचाव किया
फ्रांस में हुए आतंकी हमले पर मशहूर शायर मुनव्वर राणा ने कहा, ‘आप विवाद को जन्म देकर लोगों को उकसा रहे हैं। मोहम्मद साहब का कार्टून बनाकर उसे कत्ल के लिए मजबूर किया गया, अगर उस स्टूडेंट की जगह मैं भी होता तो वही करता जो उस स्टूडेंट ने किया।’
गुजरात में सी-प्लेन सर्विस शुरू, इसका किराया 1500 रुपए
प्रधानमंत्री मोदी ने शनिवार को नर्मदा जिले के केवडिया में देश की पहली सी-प्लेन सर्विस की शुरुआत की। यह सर्विस केवडिया से अहमदाबाद के साबरमती रिवर फ्रंट तक शुरू की गई। किराया 1500 रुपए है। सी-प्लेन से 200 किमी का सफर 40 मिनट में पूरा हो जाएगा।
मोदी बोले- पुलवामा हमले से देश दुखी था, कुछ लोग दुख में शामिल नहीं थे
प्रधानमंत्री मोदी ने शनिवार को केवडिया में स्टेच्यू ऑफ यूनिटी के पास हुए एकता दिवस के प्रोग्राम में कहा, "देश कभी भूल नहीं सकता कि पुलवामा हमले के बाद जब वीर बेटों के जाने से पूरा देश दुखी था, तब कुछ लोग उस दुख में शामिल नहीं थे। वे पुलवामा हमले में भी अपना राजनीतिक स्वार्थ खोज रहे थे।"
कंगना बोलीं- पटेल ने गांधीजी की खुशी के लिए पीएम का पद ठुकराया
सरदार पटेल के बहाने कंगना रनोट ने पं. जवाहरलाल नेहरू के बारे में बयान दिया है। उन्होंने ट्वीट किया, "पटेल ने गांधीजी की खुशी के लिए भारत के पहले प्रधानमंत्री के रूप में सबसे योग्य पद को ठुकरा दिया, क्योंकि गांधीजी को लगता था कि नेहरू बेहतर अंग्रेजी बोलते हैं। पटेल को नुकसान नहीं हुआ, लेकिन देश ने दशकों इसका परिणाम झेला।"
ट्रम्प बोले- कोरोना से हो रही मौतों से डॉक्टरों को फायदा
अमेरिका में कोरोनावायरस के मामले भी रिकॉर्ड तेजी से बढ़ रहे हैं, लेकिन राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प अब भी बेफिक्र नजर आते हैं। मिशिगन की एक चुनावी रैली में ट्रम्प ने कहा कि कोरोनावायरस से हो रही मौतों से डॉक्टरों को फायदा हो रहा है। उन्होंने यह भरोसा भी जताया कि वे व्हाइट हाउस में ही रहेंगे।
ओरिजिनल
कहानी हरिलाल की, जिनकी जमीन बिहार में, लेकिन घर जम्मू में है
बिहार के सिवान जिले का हरिलाल परिवार सहित 30 साल से जम्मू में हैं। यहां वो ड्राइक्लीन और कपड़े प्रेस करने का काम करते हैं। उनका एक बेटा और दो बेटियां हैं। जो जम्मू में ही पैदा हुईं और पली बढ़ी। अब उनमें से कोई बिहार वापस नहीं जाना चाहता, जबकि उनकी जमीन बिहार में है, लेकिन घर जम्मू में। पढ़ें पूरी खबर...
नए कानून के बाद जमीन खरीदने डीलरों के पास फोन आना शुरू
डेटा स्टोरी
भारत में हर घंटे सड़क दुर्घटना में 17 मौतें
भारत में सड़कें पैदल चलने के लिए भी सुरक्षित नहीं हैं! 2019 में हर दिन 1,230 एक्सीडेंट और 414 मौतें हुईं। वहीं, जब इस आंकड़े को घंटे के ब्रेक-अप में देखें तो हर घंटे करीब 51 एक्सीडेंट हुए और उनमें 17 लोगों की मौत हुई। दुखद पहलू यह है कि मरने वालों में 57% पैदल चलने वाले, साइकिल चलाने या टू-व्हीलर चलाने वाले थे। पढ़ें पूरी खबर...
देश की सड़कों के बारे में दो अहम बातें
सुर्खियों में और क्या है...
- अमेरिकी कंपनी जॉनसन एंड जॉनसन ने कहा, "हम बहुत जल्द अपने कोविड-19 वैक्सीन की टेस्टिंग शुरू करने जा रहे हैं। शुरुआत में इसके डोज 12 से 18 साल के किशोरों को दिए जाएंगे।"
- वेस्टइंडीज के क्रिस गेल टी-20 क्रिकेट में 1000 छक्के लगाने वाले दुनिया के पहले खिलाड़ी बन गए हैं। उन्होंने IPL पंजाब की ओर से खेलते हुए राजस्थान के खिलाफ यह उपलब्धि हासिल की।
- दुनिया में कोरोना संक्रमितों का आंकड़ा 4.58 करोड़ से ज्यादा हो गया है। 3 करोड़ 32 लाख 37 हजार 845 मरीज रिकवर हो चुके हैं। अब तक 11.93 लाख से ज्यादा लोगों की मौत हो चुकी है।
- 7 फिल्मों में जेम्स बॉन्ड का रोल निभाने वाले हॉलीवुड फिल्मों के सुपरस्टार शॉन कॉनरी का शनिवार को 90 साल की उम्र में निधन हो गया। वे पहले एक्टर थे, जिन्होंने जेम्स बॉन्ड की भूमिका निभाई।
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from Dainik Bhaskar
अकेली महिला समाज में असुरक्षित क्यों है? क्यों नारी देह आकर्षण, अधिकार और अपराध का शिकार बनती जा रही है?

विचार- अकेली स्त्री असुरक्षित क्यों है? ये सवाल हमेशा उठता रहा है। क्या दोष समाज का है, क्या न्याय व्यवस्था ढीली है या अपराधियों के हौंसले बुलंद हैं? स्त्री की देह पुरुषों के लिए केवल आकर्षण ही नहीं, अधिकार और अपराध का विषय भी बनता जा रहा है।
कहानी- सीताजी ने जब पंचवटी में सोने का हिरण देखा, तो वो तो इतना जानती थी कि ये तो अद्भुत है और जीवन में इससे पहले हिरण का ऐसा रूप नहीं देखा। हालांकि, वह हिरण नहीं, रावण का मामा मारीच था। जो रावण के कहने पर वेश बदलकर आया था।
सीताजी ने अपने पति श्रीराम से कहा मुझे ये हिरण ला दीजिए। राम ने एक बार समझाया भी, आप मेरे साथ अयोध्या से सबकुछ छोड़कर आई हैं। तो फिर इस स्वर्ण मृग के प्रति आपका आकर्षण क्यों है? लेकिन, सीता कोई तर्क सुनने को तैयार नहीं थीं। स्वर्ण मृग का आकर्षण ही ऐसा था। उन्होंने श्रीराम से कहा कि आप कैसे भी ये मृग मेरे लिए ले आइए।
राम समझ गए कि अपनी पत्नी की इस जिद को पूरा करना ही पड़ेगा और वे दौड़ पड़े। लक्ष्मण को छोड़ गए, सीता की रक्षा के लिए। उधर उन्होंने जब मारीच को तीर मारा तो मारीच ने राम की आवाज में लक्ष्मण को पुकारा। सीता ने लक्ष्मण पर दबाव बनाया कि आप जाकर देखिए आपके भाई संकट में हैं।
न चाहते हुए भी लक्ष्मण चले गए और पीछे से रावण आ गया। रावण ने साधु का वेश बनाया था। सीता से आग्रह किया कि तुम्हें आश्रम की सीमा से बाहर आना पड़ेगा और सीता आई और उनका हरण हो गया।
यहां सीता ने हरण के बाद जो संवाद बोला वह ये था कि यदि रावण तुम साधु के वेश में नहीं होते तो तुम मेरा हरण नहीं कर सकते थे। मैं स्त्री होकर पुरुष के प्रत्येक स्वरूप का मान करती हूं। और तुम पुरुष होकर स्त्री का सम्मान नहीं करते।
सबक- स्त्रियों को अपनी सुरक्षा के लिए केवल बल की जरूरत नहीं है। छल से भी उन्हें सावधान रहना चाहिए। स्त्रियां घर में हों या बाहर, अतिरिक्त सावधानी रखिए। ऐसी अतिरिक्त सावधानी पुरुषों को रखने की जरूरत पड़ती, लेकिन स्त्री देह का गठन ऐसा है, अगर इसमें सावधानी नहीं रखी गई तो रावण जैसे अपराधी को अवसर मिल जाता है।
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from Dainik Bhaskar
नए कानून के बाद जमीन खरीदने डीलरों के पास फोन आना शुरू, बुकिंग भी होने लगी, पर कीमत दोगुनी हुई

बिहार के सिवान जिले के हरी लाल परिवार सहित 30 साल से जम्मू में हैं। यहां वो ड्राई क्लीन और कपड़े इस्त्री करने का काम करते हैं। उनका एक बेटा सुमन कुमार और दो बेटियां हैं। जो जम्मू में ही पैदा हुईं और पली बढ़ी। आज न तो हरी लाल का बेटा बिहार वापस जाना चाहता है न ही बेटियां। यहां तक कि बिहार चुनाव से भी उन्हें कोई लेना देना नहीं है।
जमीन तो बिहार में है लेकिन घर जम्मू में। जैसे ही धारा 370 हटी, उन्हें उम्मीद जगी कि अब वह किराए के घर को छोड़ अपना घर लेंगे। लेकिन, यह सपना साकार हुआ अब जब 26 अक्टूबर को नया भूमि कानून आया। अब वह जहां रहते हैं वही पर अपनी जमीन लेना चाहते हैं।
उत्तर प्रदेश के बिजनौर जिले के मोहम्मद इस्तकार सलमानी। तीन साल पहले काम की तलाश में जम्मू आए और सैलून का काम शुरू किया। जम्मू शहर के सुभाष नगर में सैलून का काम शुरू किया तो चल निकला। आज दुकान और मकान दोनों किराये पर हैं। नए भूमि कानून से पता चला कि अब जमीन खरीद सकते हैं तो कहते हैं कि परिवार को भी यहीं लाना चाहता हूं।
वो कहते हैं, 'नया भूमि कानून अच्छा है। यहां काम करने वाले बाहरी राज्यों के लोगों के लिए बेहतर अवसर है, अपना घर बनाने और काम करने का। अब लगता है कि बाकी राज्यों की तरह जम्मू कश्मीर भी पूरी तरह भारत का हिस्सा है।'

बाहरी राज्यों के लोग भी करना चाहते हैं इन्वेस्ट, सेटल होने के विचार कम
जम्मू कश्मीर को लेकर कहा जा रहा था कि अगर धारा 370 हटी और नए कानून आए तो बहरी राज्यों के लोग यहां बस जाएंगे। लेकिन, जम्मू या कश्मीर में परमानेंट सेटल होने के बारे में वही सोच रहा है जिसका यहां बिजनेस है या जो यहां केंद्रीय कर्मी है। पंजाब या दिल्ली के ज्यादातर लोग केवल इन्वेस्ट करना चाहते हैं। चाहे जमीन में हो या दूसरे बिजनेस में।
पंजाब के जालंधर के विजय कुमार मेहता कहते हैं, "मेरे रिश्तेदार जम्मू में हैं। आना-जाना लगा रहता है। शहर अच्छा है और लोग भी। बसना तो नहीं चाहेंगे, लेकिन जमीन में इन्वेस्ट करना चाहेंगे।" दिल्ली के अजय बख्शी का ससुराल जम्मू में हैं। वह कहते हैं,"अगर कोई फ्लैट अच्छे दाम पर मिले तो जरूर लेंगे। लेकिन, परमानेंट सेटल होने के बारे में कभी सोचा नहीं। जरूरत भी नहीं है।" पंजाब के होशियारपुर के नवीन गुप्ता एक व्यवसायी हैं। उनका कहना है कि जम्मू में व्यवसाय करने के अवसर देख रहे हैं। अब वहां के किसी नागरिक को पार्टनर बनाने की जरूरत नहीं। खुद काम करेंगे।
जम्मू के एक धड़े को डर, भूमि माफिया न हो जाए सक्रिय
जम्मू के व्यवसायी संदीप गुप्ता का मानना है कि बाहर के रियल एस्टेट के लोगों के पास बेशुमार दौलत है। वह बड़े तौर पर जमीन खरीदकर मन मुताबिक दाम पर बेचेंगे। यहां के स्थानीय लोगों के लिए कामकाज का कम्पीटिशन भी बढ़ेगा और लोगों के लिए दाम भी। जिस जमीन का दाम आज 5 या 6 लाख रुपये प्रति मरला है, वही सीधे 10 लाख रु पहुंच जाएगी।

सैनिक कालोनी के बिजनेस प्रधान राकेश चौधरी कहते हैं कि नए भूमि कानून का स्वागत करना चाहिए। क्योंकि जब बाहरी राज्यों के लोग आएंगे और काम करेंगे या जमीन खरीदेंगे तो जम्मू के लोगों के लिए अवसर बढ़ेंगे और विकास होगा। वो कहते हैं कि अगर जम्मू कश्मीर के लोगों की दिल्ली एनसीआर में प्रॉपर्टी हैं तो वहां के लोग यहां क्यों नहीं आ सकते।
जम्मू में फ्लैट कल्चर भी बढ़ रहा
जम्मू के व्यवसायी ने नाम न छापने की शर्त पर बताया कि हमारे पास एक कॉलोनी में 250 फ्लैट बने हैं। इसमें से ज्यादातर बिक गए थे। नया कानून आने के बाद से 4 -5 दिनों में कई बाहरी राज्यों से फोन आ रहे हैं। यहां तक कि कुछ बुक भी हुए हैं। कुछ टॉवर अभी बन रहे हैं।
हालांकि अभी अचानक दाम नहीं बढ़े हैं, लेकिन जब कुछ ही फ्लैट बचेंगे तो 50 लाख वाला फ्लैट भी 75 लाख तक जायेगा। और जिन लोगों ने कम पैसे में लेकर इन्वेस्ट किया है, वह भी मुनाफा कमा सकते हैं। वहीं जम्मू की एक कॉलोनी में फ्लैट बुक करने वाले चंडीगढ़ के प्रशांत कुमार कहते हैं कि एक फ्लैट लेने का मन बनाया है। अब अवसर है इन्वेस्ट करने का। कुछ प्रॉपर्टी डीलर से भी बात हुई है।

प्रॉपर्टी डीलर का काम बढ़ेगा
जम्मू के सैनिक कॉलोनी में पिछले एक दशक से प्रॉपर्टी का काम करने वाले सचिन चलोत्रा कहते हैं, 'काम तो बढ़ेगा, हमारे पास हमेशा स्थानीय ग्राहक होते थे। अब दाम ज़मीन और लोकेशन के हिसाब से होंगे। क्योंकि बाहर से लोग आएंगे तो अच्छी जमीन का अच्छा दाम भी मिलेगा।
भूमि कानून संशोधन पर राजनीति शुरू
पीडीपी अध्यक्ष महबूबा मुफ्ती ने कहा है कि केंद्र सरकार के इरादे अब बिलकुल साफ है। नया भूमि कानून केवल एक चुनावी स्टंट है, क्योंकि बिहार में चुनाव है। उमर अब्दुल्ला ने कहा है कि हिमाचल प्रदेश और नागालैंड जैसे राज्यों में बाहरी लोगों के जमीन खरीदने पर पाबंदी है। जबकि केंद्र ने एक साजिश के तहत अमीर तबके को खुली जमीन खरीदने के अवसर दिए हैं ताकि वह यहां के लोगों को बाहर फेंक सके।
क्या है नया भूमि कानून जानने के लिए पढ़िए:
अब आप-हम भी खरीद सकते हैं कश्मीर में जमीन; आइए समझते हैं कैसे?
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from Dainik Bhaskar
तीन दोस्तों ने लाखों की नौकरी छोड़ जीरो इन्वेस्टमेंट से शुरू की ट्रेकिंग कंपनी, एक करोड़ टर्नओवर

ओशांक, हर्षित और मोहित… आज की कहानी इन तीन दोस्तों की, जो अपनी-अपनी कमाऊ नौकरी से बोर हो चुके थे और लाइफ में कुछ अलग करना चाहते थे। 2014 से पहले ये तीनों एक-दूसरे को जानते तक नहीं थे। बस तीनाें में कॉमन ये था कि जब भी ये अपने काम से ऊब जाते तो सब छोड़कर कुछ दिनों के लिए ट्रेकिंग पर निकल जाते थे।
फिर रिफ्रेश होकर अपने रुटीन में वापस लौट आते थे। ट्रेकिंग के इसी पैशन के चलते 2017 में ये तीनों मिले, फिर इनमें दोस्ती हुई और तीनों ने मिलकर एक स्टार्टअप ‘ट्रेकमंक’ की शुरुआत की। पिछले फाइनेंशियल ईयर में इनकी कंपनी का टर्नओवर 1 करोड़ तक पहुंच गया।
जब हमने इन दोस्तों से बात की तो उस वक्त हर्षित और मोहित ग्रुप्स के साथ ट्रेक पर थे और अपने दिल्ली बेस्ड ऑफिस से मैनेजमेंट संभाल रहे थे। इस बातचीत में ओशांक ने ट्रेकमंक के शुरू हाेने की पूरी जर्नी हमसे शेयर की।
तीन दोस्त; एक इनवेस्टमेंट बैंकर, दूसरा आईआईटी ग्रेजुएट और तीसरा मांउटेनर
32 साल के ओशांक पेशे से इनवेस्टमेंट बैंकर थे। 2014 में काम के दबाव से थककर अपना बैग पैक किया और कोलकाता निकल गए। 28 साल के मोहित आईआईटी खड़गपुर से इंजीनियरिंग ग्रेजुएट हैं, लेकिन उन्हें हमेशा यही लगता था कि जो वो करना चाहते हैं, वो नहीं कर पा रहे हैं। यही वजह थी कि उन्होंने छह महीने के अंदर तीन नौकरियां बदलीं।

28 साल के हर्षित ने 19 की उम्र में ही अकेले घूमना शुरू कर दिया था, केरल में एक बाइक एक्सीडेंट में उनके पांव की दो हड्डियां टूट गईं थीं। साल भर बाद डॉक्टर्स ने कहा कि वो कभी भी पहले की तरह नहीं चल पाएंगे लेकिन हर्षित ने अपनी इच्छा शक्ति के सामने डॉक्टर्स की बात को गलत साबित किया और लद्दाख में स्टोक कांगड़ी पर अकेले ट्रेक किया।
ऋषिकेश में एक नौकरी इंटरव्यू में तीनों की मुलाकात हुई
2015 में ये तीनों ऋषिकेश बेस्ड एक ट्रेवल ऑर्गेनाइजेशन में ट्रेक लीडर की नौकरी के लिए इंटरव्यू देने आए थे, इसी दौरान ये एक-दूसरे से मिले। नौकरी के दौरान तीनों ने नोटिस किया कि इस कंपनी में काफी कमियां हैं जिसे वो ठीक कर सकते हैं। इस बारे में उन्होंने हायर अथॉरिटी से भी बात की, लेकिन उन्होंने उनकी बातों को नजरअंदाज कर दिया।
ओशांक बताते हैं कि ‘जब हर्षित और मैंने नौकरी को छोड़ने का फैसला किया उस वक्त मोहित कंपनी में ही था। हम उस कंपनी के वर्क कल्चर से खुश नहीं थे इसलिए हमने अपनी बाइक उठाई और वलसाड से कन्याकुमारी की ओर हर्षित के होमटाउन की ओर निकल गए।’

इस एक महीने की यात्रा के दौरान दोनों ने अपने पैशन को पूरा करते हुए पैसे कमाने का प्लान बनाया। इसी बीच में उन्हें ‘ट्रेकमंक’ का आइडिया आया। इस जर्नी के दौरान वो काफी लोगों से मिले और लोगों को बताना शुरू किया कि जल्द ही वो एक ट्रेकिंग कंपनी शुरू करने जा रहे हैं। जो सभी तरह के ग्रुप्स के लिए ऑफबीट ट्रेक ऑर्गनाइज करेगी। नवंबर 2016 में दिल्ली लौटने के बाद उन्होंने अपने स्टार्टअप को रजिस्टर्ड कराया। इसके बाद मोहित भी ऋषिकेश बेस्ड टूर एजेंसी की नौकरी छोड़कर इसमें शामिल हो गए।
हमारा ट्रेकमंक में जीरो इंवेस्टमेंट था
ओशांक बताते हैं कि शुरुआत में हमारे पास कुछ नहीं आ रहा था। हम फ्री ऑफ कॉस्ट काम कर रहे थे। हम बस री-इनवेस्ट करते जा रहे थे। ट्रेकमंक को शुरू करने में हमारा जीरो इंवेस्टमेंट था।’ हम पहला ग्रुप 6 जनवरी 2017 को चादर ट्रेक पर लेकर गए थे। इसमें फर्स्ट बैच में 6 लोग थे, सेकंड बैच में 9 और थर्ड बैच में 10 लोग थे। हमने एक ट्रेक से शुरुआत की और आज हम 100 से ज्यादा ऑफबीट ट्रेक कराते हैं।’
ओशांक कहते हैं कि ‘सर्विस सेक्टर में हमेशा प्रॉफिट मार्जिन रहता है। हमारे ट्रेक पैकेज में करीब 30 प्रतिशत का मार्जिन रहता है और यह पैसा हमारी जेब में ही आता है। हम इन पैसों से इक्यूपमेंट, टैंट्स आदि खरीद लेते थे, आगे के बैचेस की तैयारियों में ये पैसा इंवेस्ट कर लेते थे। किसी भी ट्रेक में हमें कभी घाटा नहीं हुआ, बस हम हमेशा अपने प्रॉफिट को बिजनेस में लगाते रहे।’ वो कहते हैं कि ‘कोविड के बाद सितंबर से हमने दोबारा ट्रेकिंग शुरू की है लेकिन अब काफी कुछ बदल गया है। पहले हम 16 लोगों का बैच लेकर जाते थे, अब सिर्फ 10 लोगों का बैच ही ले जाते हैं।
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from Dainik Bhaskar
देश की सड़कों के बारे में दो अहम बातें: दुनिया की सबसे खराब सड़कें भारत में; इन सड़कों पर हर घंटे 17 मौतें

भारत की सड़कों को लेकर दो अहम बातें सामने आई हैं। पहली तो यह कि यह पूरी दुनिया में सबसे खराब है। दूसरी, इन्हीं सड़कों पर हर घंटे 17 मौतें हो रही हैं। यह हम नहीं बल्कि खुद सरकार के आंकड़े कह रहे हैं। आंकड़े पिछले साल के हैं। हर दिन 1,230 एक्सीडेंट हुए और उनमें 414 लोगों की मौत हुई। यदि हर घंटे का ब्रेक-अप देखें तो 51 एक्सीडेंट और 17 मौतें। पूरी दुनिया में सबसे भयावह स्थिति है।
सबसे दुखद पहलू यह है कि मरने वालों में 57% ऐसे थे, जो पैदल चल रहे थे, साइकिल चला रहे थे या टू-व्हीलर पर कहीं जा रहे थे। पिछले साल सितंबर नया मोटर व्हीकल एक्ट लागू हुआ, लेकिन उसकी सख्ती के बाद भी भारत में रोड एक्सीडेंट में होने वाली मौतों में कोई कमी फिलहाल तो नजर नहीं आ रही।
2015 की तुलना में एक्सीडेंट जरूर 50 हजार कम हुए हैं, लेकिन एक्सीडेंट विक्टिम जरूर पांच हजार बढ़ गए। वैसे, राहत की बात यह है कि 2018 के मुकाबले पिछले साल एक्सीडेंट्स में 3.86%, मौतों में 0.20% और घायलों में 3.85% की कमी आई है।
पूरी दुनिया में भारत की सड़कें ही सबसे खतरनाक
भारत में भले ही दुर्घटनाओं और मौतों को कम करने की कोशिश की जा रही हो, दुनियाभर में हमारी सड़कें ही सबसे खतरनाक हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन की ग्लोबल स्टेटस रिपोर्ट ऑन रोड सेफ्टी 2018 के मुताबिक 2016 में दुनियाभर में सालभर में 13.5 लाख लोगों की मौतें सड़क दुर्घटनाओं की वजह से हुई। यह और भी चौंकाने वाली बात है कि 5-29 वर्ष के एज ग्रुप में मौतों का यह सबसे बड़ा कारण है।
यह आंकड़ा और भी चौंकाने वाला है कि अमेरिका और जापान में भारत से भी ज्यादा रोड एक्सीडेंट हुए थे, लेकिन हमारे यहां एक्सीडेंट्स में मरने वालों की संख्या दोनों देशों के विक्टिम्स से चार गुना ज्यादा है। रिपोर्ट कहती है कि कम आय वाले देशों में मौतों का आंकड़ा बढ़ा है।

तीन साल में लड़कियों की मौतें बढ़ी
रोड एक्सीडेंट्स की बात करें तो विक्टिम पांच में से चार पुरुष ही रहे हैं। लेकिन, पिछले तीन वर्षों का ट्रेंड देखें तो मरने वालों में लड़कियों की संख्या तेजी से बढ़ी है। 2017 में रोड एक्सीडेंट्स का शिकार बनने वालों में 18 साल से कम उम्र की लड़कियों की संख्या 1,965 थी, जो 2019 में बढ़कर 2,516 हो गईं। यानी करीब 30% से ज्यादा की बढ़ोतरी। इसी तरह ओवरऑल देखें तो कुल विक्टिम में महिलाओं की हिस्सेदारी 2017 में 13.6% थी, जो 2019 में बढ़कर 14.4% हो गईं।

ओवर स्पीडिंग बन रहा मौत का कारण
केंद्र सरकार की रिपोर्ट कहती है कि 2018 की तरह 2019 में भी ओवर स्पीडिंग ही रोड एक्सीडेंट्स में मौत का सबसे बड़ा कारण रहा। ओवर स्पीडिंग की वजह से 71.1% एक्सीडेंट्स हुए और 67.3% मौतों और 72.4% घायलों में यही दोषी भी रहा।
रिपोर्ट कहती है कि ओवर स्पीडिंग, शराब पीकर ड्राइविंग, रेड सिग्नल तोड़ने और गाड़ी चलाते समय मोबाइल फोन के इस्तेमाल की घटनाएं 2018 के मुकाबले 2019 में ज्यादा रही। करीब 10% एक्सीडेंट्स बिना लाइसेंस के ड्राइविंग की वजह से हुए। इसका मतलब यह है कि मोटर व्हीकल एक्ट 2019 का सख्ती से पालन करने की जरूरत है।

ओपन एरिया में स्पीड कंट्रोल से ही थमेंगे एक्सीडेंट
रिपोर्ट में चौंकाने वाली बात सामने आई है। रेसिडेंशियल एरिया, इंस्टिट्यूशनल एरिया और मार्केट में ट्रैफिक ज्यादा होता है और वहां एक्सीडेंट्स होने का खतरा भी ज्यादा रहता है। डेटा इसके उलट तस्वीर पेश करता है। 2018 और 2019 में ओपन एरिया में एक्सीडेंट्स ज्यादा हुए और विक्टिम्स भी ज्यादा रहे। वैसे, राहत की बात यह है कि सख्ती से नियमों का पालन कराने से 2019 में मार्केट और ओपन एरिया में एक्सीडेंट कुछ कम हुए और विक्टिम भी कम रहे।

अंधे मोड़ नहीं सीधी सड़कों पर सबसे ज्यादा एक्सीडेंट
सरकार ने एक्सीडेंट्स कहां हुए, यह आंकड़े भी जुटाए हैं। यह चौंकाने वाले हैं। आम तौर पर अंधे मोड़ या कर्व्ड सड़कों पर एक्सीडेंट्स का खतरा बताया जाता है, लेकिन यह सच नहीं है। डेटा कहता है कि 65.5% एक्सीडेंट्स सीधी सड़कों पर हुए और कुल मौतों में 66% हिस्सेदारी इन्हीं सड़कों की रही। वहीं, गड्ढों की वजह से 4,775 एक्सीडेंट्स हुए और इनमें 2,140 लोगों की मौत हुई।
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from Dainik Bhaskar
...गोया औरत का गर्भ न हुआ, सुलभ शौचालय की दीवार हो गई, जहां जब मन आए, आप फारिग हो जाएं

पिछले दिनों एक फैमिली कोर्ट में अजीबोगरीब मामला आया। इसमें 40 साल की होने को आई एक पत्नी ने मां बनने का हक मांगा। पति का तर्क था कि पत्नी उसे पर्याप्त इज्जत नहीं देती, लिहाजा वो साथ नहीं देगा। पत्नी ने हारकर आईवीएफ यानी कृत्रिम तरीके से मां बनने पर सहमति चाही लेकिन पति अपने शुक्राणु देने को राजी नहीं। उल्टा उसने अपनी बीवी पर सवालों का तमंचा तान दिया और खुद नौकरी छोड़कर उससे गुजारा भत्ता मांग रहा है। इरादा साफ है। कोर्ट के फेरे लगाते हुए पत्नी का गर्भाशय जर्जर हो जाए और वो कभी मां न बन सके। मिन्नतें करें वो अपनी जिंदगी के जागीरदार बन बैठे उस मर्द से।
अफसोस। मां बनने की इच्छा रखने वाली औरत को मां न बनने देकर मर्द उसे सजा दे पाता है। या फिर इसके ठीक उलट औरत को तब तक प्रेग्नेंट करता रहता है, जब तक उसका गर्भाशय आटे की पुरानी बोरी जैसा बेडौल और कमजोर न हो जाए। असल में सारा मसला औरत के इसी अंग-विशेष से जुड़ा हुआ है। बच्ची मां के गर्भ से बाहर आई नहीं कि उसे मां बनने के लिए तैयार करने की कवायद शुरू हो जाती है। खेलने के लिए उसे गुड़िया मिलती है ताकि उसकी देखरेख के बहाने बच्ची रतजगे की आदत डाल ले। बच्चे के जन्म में आधे हिस्सेदार रहे पति या तो बगल के कमरे में नींद पूरी कर रहे होंगे। या फिर नए जमाने के हुए तो बाजू में आधी नींद में मां-बच्चे पर कुड़कुड़ा रहे होंगे।
किस्सा यहीं खत्म नहीं होता, मेडिकल साइंस भी पुरुष-सत्ता को सहेजने का कोई मौका नहीं छोड़ता। वो बताता है कि मां बनने के कितने दिनों बाद औरत का शरीर दोबारा यौन संबंध बनाने को तैयार हो जाता है। कितने दिनों बाद औरत का मन राजी होगा, इसपर कोई बात नहीं होती।

रेप की धमकी भी तो आखिरकार मर्द इस गर्भाशय के चलते दे पाते हैं। कहीं की न छोड़ने का ये प्रण मर्दों ने इतना पक्का कर रखा है कि सड़क पर बिखरे बाल और कपड़ों में अनाश-शनाप बोलती औरतों को भी नहीं बख्शा जाता। वो औरत, जिसे अपना नाम तक नहीं पता, घर-रिश्ते तो दूर, वो भी वहशियत से सुरक्षित नहीं। कुछ दिन पहले इक्का-दुक्का मानवाधिकार संस्थाओं ने मानसिक तौर पर कमजोर औरतों के गर्भाशय हटाने की मांग कर डाली थी। उनका तर्क लाजवाब था- जिन औरतों को अपने कपड़ों की सुध नहीं, वे बच्चा कैसे संभालेंगी! बिल्कुल सही।
वे बच्चा नहीं संभाल सकतीं लेकिन संस्थाओं ने ये क्यों नहीं कहा कि सड़क पर घूमते वहशी पुरुषों की नसबंदी करवा दें ताकि औरतें बची रहें। मां बनने के पक्ष और विपक्ष में तमाम तर्क पुरुषों के ही पाले में जा रहे हैं। पिता कहलाने का सुख चाहिए तो औरत प्रेगनेंट होगी। औरत को मजा चखाना है तो भी वो प्रेगनेंट होगी। और सड़क पर चलते हुए यौन सुख की इच्छा उछालें मारने लगे तो भी औरत प्रेगनेंट होगी। गोया औरत का गर्भ न हुआ, सुलभ शौचालय की दीवार हो गई, जहां जब मन आया, आप फारिग हो जाएं।
लड़की ने इनकार क्या किया, मर्द का इगो सांप जैसा फुफकारता है, फिर उसे कुचलने की कवायद शुरू होती है
और अगर किसी औरत ने अपने गर्भाशय पर अपनी मर्जी चलाई, झट से मर्दों का समूचा अस्तित्व डोल उठता है। गले की नसें फुलाकर वे इस हक को अनैतिक करार देते हैं। और ऐसा करने वाली अपराध के गहरे कुएं में धकेल दी जाती है। क्यों भई, जब मेरे दांतों या बालों पर मेरा अधिकार है तो मेरे गर्भाशय के मालिक आप कैसे हुए?
नौ महीने तक मैं उबकाइयां लूं और आप जीभ चटकाते हुए अपनी पसंदीदा डिश उड़ाएं। मेरा शरीर खुद मुझपे भारी हो जाए और आप जिम में डोले-शोले बनाएं। नौ महीने बाद पेट पर बड़ा-सा नश्तर झेलूं मैं और पिता आप कहलाएं। अगर मां कामकाजी हुई तो दफ्तर के बाकी पुरुष भी उसे चीरने को तैयार रहेंगे। हाल ही में मेरी एक सहकर्मी मैटरनिटी लीव पर गई तो एक पुरुष सहकर्मी ने मजाक में मुझसे कहा- काश मैं भी औरत होता तो मजे में 6 महीने मुफ्त तनख्वाह उड़ाता।

मर्दों की दुनिया का ये खेल वैसे काफी पुराना है। अमेरिकी लेखक नथानियल हॉथॉर्न की किताब 'द स्कारलेट लेटर' को पढ़ते हुए आप दुनियाभर में फैले अपने बिरादरी वालों के बारे में जान सकेंगे। इस उपन्यास में उन औरतों का किस्सा है, जो अपने गर्भाशय पर अपना हक मानने का अपराध कर बैठी थीं। अब अपराध हुआ है तो सजा भी मिलेगी। लिहाजा औरतों का चेहरा और पूरा शरीर लाल रंग से रंगा जाता। लाल रंग इसलिए कि पता चले कि वे हत्यारिन हैं।
इसमें हेस्टर नाम की एक बागी औरत को न केवल लाल रंगा गया, बल्कि उसकी पूरी सजा टीवी पर दिखाई गई, ताकि उसे देख रही औरतें अपना कलेजा थाम लें और मेरा गर्भ- मेरी मर्जी, जैसी बचकानी बातें करना बंद कर दें। हेस्टर को महीनेभर अपनी गोद में एक गुड़िया लिए घूमना था ताकि उसे पल-पल याद रहे कि उसने एक भ्रूण की हत्या की है। इस यंत्रणा में ढेरों औरतें शर्म या ग्लानि से मर जाती थीं। हेस्टर जिंदा रही।
वो हम औरतों जैसी मजबूत होगी शायद। लेकिन सहनशीलता की पराकाष्ठा बेमानी हैं। मर्दों को सिखाना होगा कि औरत की कोख को सार्वजनिक शौचालय समझना बंद कर दो। पिता बनने की इच्छा कोई 11वीं में विषय चुनने की इच्छा नहीं, जिसका तुमसे और सिर्फ तुमसे ताल्लुक हो। ये सबसे पहले और सबसे ज्यादा औरत का फैसला है।
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from Dainik Bhaskar
कंगना के निशाने पर नेहरू; मुनव्वर ने किया आतंकी का बचाव; देश की पहली सी-प्लेन सर्विस गुजरात में शुरू

नमस्कार!
देश में कोरोना टेस्टिंग का आंकड़ा 11 करोड़ के करीब पहुंच गया है। हालांकि चिंताजनक बात यह है कि 7 राज्यों में एक्टिव केस घटने के बजाए अब बढ़ने लगे हैं। बहरहाल, शुरू करते हैं मॉर्निंग न्यूज ब्रीफ...
आज इन इवेंट्स पर रहेगी नजर
- IPL में आज डबल हेडर मुकाबले। पहला मैच किंग्स इलेवन पंजाब और चेन्नई सुपरकिंग्स के बीच अबु धाबी में दोपहर साढ़े तीन बजे से खेला जाएगा। दूसरा मुकाबला राजस्थान रॉयल्स और कोलकाता नाइटराइडर्स के बीच दुबई में शाम साढ़े सात बजे से होगा।
- मुंबई में आज मेनटेनेंस के चलते मध्य रेलवे का मेगा ब्लॉक, हार्बर लाइन पर लोकल ट्रेनें नहीं चलेंगी।
- प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी आज फिर बिहार में होंगे। उनकी आज यहां तीन रैलियां होंगी। पहली सारण के छपरा, दूसरी पूर्वी चंपारण और तीसरी समस्तीपुर में है।
- झारखंड में आज शाम दुमका और बेरमो उपचुनाव का प्रचार खत्म हो जाएगा। 3 नवंबर को दोनों ही जगहों पर वोटिंग होगी।
देश-विदेश
मुनव्वर राणा ने फ्रांस के आतंकी हमलावर का बचाव किया
फ्रांस में हुए आतंकी हमले पर मशहूर शायर मुनव्वर राणा ने कहा, ‘आप विवाद को जन्म देकर लोगों को उकसा रहे हैं। मोहम्मद साहब का कार्टून बनाकर उसे कत्ल के लिए मजबूर किया गया, अगर उस स्टूडेंट की जगह मैं भी होता तो वही करता जो उस स्टूडेंट ने किया।’
गुजरात में सी-प्लेन सर्विस शुरू, इसका किराया 1500 रुपए
प्रधानमंत्री मोदी ने शनिवार को नर्मदा जिले के केवडिया में देश की पहली सी-प्लेन सर्विस की शुरुआत की। यह सर्विस केवडिया से अहमदाबाद के साबरमती रिवर फ्रंट तक शुरू की गई। किराया 1500 रुपए है। सी-प्लेन से 200 किमी का सफर 40 मिनट में पूरा हो जाएगा।
मोदी बोले- पुलवामा हमले से देश दुखी था, कुछ लोग दुख में शामिल नहीं थे
प्रधानमंत्री मोदी ने शनिवार को केवडिया में स्टेच्यू ऑफ यूनिटी के पास हुए एकता दिवस के प्रोग्राम में कहा, "देश कभी भूल नहीं सकता कि पुलवामा हमले के बाद जब वीर बेटों के जाने से पूरा देश दुखी था, तब कुछ लोग उस दुख में शामिल नहीं थे। वे पुलवामा हमले में भी अपना राजनीतिक स्वार्थ खोज रहे थे।"
कंगना बोलीं- पटेल ने गांधीजी की खुशी के लिए पीएम का पद ठुकराया
सरदार पटेल के बहाने कंगना रनोट ने पं. जवाहरलाल नेहरू के बारे में बयान दिया है। उन्होंने ट्वीट किया, "पटेल ने गांधीजी की खुशी के लिए भारत के पहले प्रधानमंत्री के रूप में सबसे योग्य पद को ठुकरा दिया, क्योंकि गांधीजी को लगता था कि नेहरू बेहतर अंग्रेजी बोलते हैं। पटेल को नुकसान नहीं हुआ, लेकिन देश ने दशकों इसका परिणाम झेला।"
ट्रम्प बोले- कोरोना से हो रही मौतों से डॉक्टरों को फायदा
अमेरिका में कोरोनावायरस के मामले भी रिकॉर्ड तेजी से बढ़ रहे हैं, लेकिन राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प अब भी बेफिक्र नजर आते हैं। मिशिगन की एक चुनावी रैली में ट्रम्प ने कहा कि कोरोनावायरस से हो रही मौतों से डॉक्टरों को फायदा हो रहा है। उन्होंने यह भरोसा भी जताया कि वे व्हाइट हाउस में ही रहेंगे।
ओरिजिनल
कहानी हरिलाल की, जिनकी जमीन बिहार में, लेकिन घर जम्मू में है
बिहार के सिवान जिले का हरिलाल परिवार सहित 30 साल से जम्मू में हैं। यहां वो ड्राइक्लीन और कपड़े प्रेस करने का काम करते हैं। उनका एक बेटा और दो बेटियां हैं। जो जम्मू में ही पैदा हुईं और पली बढ़ी। अब उनमें से कोई बिहार वापस नहीं जाना चाहता, जबकि उनकी जमीन बिहार में है, लेकिन घर जम्मू में। पढ़ें पूरी खबर...
नए कानून के बाद जमीन खरीदने डीलरों के पास फोन आना शुरू
डेटा स्टोरी
भारत में हर घंटे सड़क दुर्घटना में 17 मौतें
भारत में सड़कें पैदल चलने के लिए भी सुरक्षित नहीं हैं! 2019 में हर दिन 1,230 एक्सीडेंट और 414 मौतें हुईं। वहीं, जब इस आंकड़े को घंटे के ब्रेक-अप में देखें तो हर घंटे करीब 51 एक्सीडेंट हुए और उनमें 17 लोगों की मौत हुई। दुखद पहलू यह है कि मरने वालों में 57% पैदल चलने वाले, साइकिल चलाने या टू-व्हीलर चलाने वाले थे। पढ़ें पूरी खबर...
देश की सड़कों के बारे में दो अहम बातें
सुर्खियों में और क्या है...
- अमेरिकी कंपनी जॉनसन एंड जॉनसन ने कहा, "हम बहुत जल्द अपने कोविड-19 वैक्सीन की टेस्टिंग शुरू करने जा रहे हैं। शुरुआत में इसके डोज 12 से 18 साल के किशोरों को दिए जाएंगे।"
- वेस्टइंडीज के क्रिस गेल टी-20 क्रिकेट में 1000 छक्के लगाने वाले दुनिया के पहले खिलाड़ी बन गए हैं। उन्होंने IPL पंजाब की ओर से खेलते हुए राजस्थान के खिलाफ यह उपलब्धि हासिल की।
- दुनिया में कोरोना संक्रमितों का आंकड़ा 4.58 करोड़ से ज्यादा हो गया है। 3 करोड़ 32 लाख 37 हजार 845 मरीज रिकवर हो चुके हैं। अब तक 11.93 लाख से ज्यादा लोगों की मौत हो चुकी है।
- 7 फिल्मों में जेम्स बॉन्ड का रोल निभाने वाले हॉलीवुड फिल्मों के सुपरस्टार शॉन कॉनरी का शनिवार को 90 साल की उम्र में निधन हो गया। वे पहले एक्टर थे, जिन्होंने जेम्स बॉन्ड की भूमिका निभाई।
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from Dainik Bhaskar
वीगनिज्म पर भारत में गूगल सर्च दोगुनी, मांसाहार के साथ दूध से बनी हर चीज से तौबा

दुनिया में सबसे ज्यादा वेजिटेरियन आबादी वाले भारत में वीगनिज्म साल दर साल जोर पकड़ रहा है। पिछले कुछ सालों में ही विराट कोहली, अक्षय कुमार, आमिर खान, अनुष्का शर्मा जैसी तमाम हस्तियां वीगन हो गईं, तो आम लोगों ने भी गूगल पर वीगनिज्म या वीगन जैसे शब्दों को दोगुना से ज्यादा सर्च किया। जीव-जन्तु से मिलने वाले हर तरह की चीज को छोडऩे का यह वेस्टर्न लाइफ स्टाइल भारत के लिए यों तो नया है, लेकिन धार्मिक और सांस्कृतिक परपंराओं के चलते एकदम अनजाना नहीं। यहां वेजिटेरियन होना कोई चौंकाने वाली बात नहीं। हां, दूध-दही और देशी घी के दीवाने इस देश में वेजिटेरियन से वीगन होना चुनौती भरा जरूर है। बावजूद इसके भारतीयों के बीच वीगनिज्म ट्रेंड करने लगा है।
वीगन लाइफस्टाइल को लेकर पश्चिमी दुनिया में कई बड़ी रिसर्च हो चुकी हैं। मशहूर मैग्जीन साइंस में प्रकाशित एक बड़ी रिसर्च में दावा किया गया कि गया है कि अगर मांस, दूध और दूध से बने प्रोडक्ट्स की खपत बंद हो जाए तो दुनिया में खेती की जमीन का इस्तेमाल 75% तक कम किया जा सकता है। यह जमीन अमरीका, यूरोपी यूनियन, चीन और ऑस्ट्रेलिया के बराबर होगी। रिसर्च के मुताबिक दुनिया की 83% खेती की जमीन का इस्तेमाल पशुपालन के लिए होता है, जबकि इनसे इंसानी जरूरत की केवल 18 % कैलोरी मिलती हैं।
वीगनिज्म आखिर है क्या?
फिलॉसिफी: जीने का वह तरीका जो भोजन, कपड़े या किसी दूसरे मकसद से जहां तक हो सके जानवरों के इस्तेमाल, शोषण और क्रूरता को रोकता है।
प्रैक्टिकली: ऐसा शाकाहार जिसमें किसी जीव या जंतु से मिलने वाली किसी भी चीज का इस्तेमाल नहीं किया जाता है। मधुमक्खियों से मिलने वाला शहद भी नहीं।


मांस के साथ दूध छोड़ना पृथ्वी को बचाने का अकेला सबसे बड़ा रास्ता









76 साल पहले अंग्रेज डॉनल्ड वाटसन ने वीगन शब्द इजाद किया
ब्रिटेन में पशु अधिकारों के पैरोकार डॉनल्ड वाटसन ने सबसे पहले वीगन शब्द का इस्तेमाल किया। उन्होंने नवंबर 1944 में अपनी पत्नी डोरोथी और तीन दोस्तों के साथ दी वीगन सोसाइटी बनाई थी। उन्होंने ऐसे शाकाहारियों को वीगन कहा जो डेयरी प्रोडक्ट और अंडे नहीं खाते। मगर 1951 में वीगन सोसाइटी ने हर तरह की पशुक्रूरता को जीवन से खत्म करने को वीगनिज्म में शामिल कर लिया।
14 बरस की उम्र में न्यू इयर रेजोलुशन लेकर मांसाहार छोड़ा
1910 में यूके के यॉर्कशायर में जन्मे वॉटसन के पिता खनन करने वाले समुदाय के हेडमास्टर थे। बचपन में वे अपने चाचा के खेतों पर अक्सर जाते थे। वहीं मांस के लिए सुअर को मारने की घटना ने उन्हें काफी बेचैन कर दिया। 1924 में 14 वर्ष के वॉटसन ने नए साल का प्रण लेकर मांसाहार छोड़ दिया। इसके बाद उन्हें लगा कि दूध के लिए भी मवेशी पालना अनैतिक है। इसके बाद उन्होंने दूध भी छोड़ दिया।
पिछले 5 सालों में देश की कई हस्तियों ने वीगनिज्म को अपनाया
- विराट कोहली: 2018 में दक्षिण अफ्रीका के टूर के दौरान रीढ़ की हड्डी में एक नस दबने से हाथ की उंगली तक तेज उठा। जांच हुई तो पता चला कि मांसाहार से शरीर में बहुत ज्यादा यूरिक एसिड बनने लगा। आंतों ने कैल्शियम सोखना बंद कर दिया। शरीर हड्डियों से कैल्शियम खींचने लगा था। इसके बाद ही विराट ने वीगनिज्म को अपना लिया। उनका दावा है कि इन दो वर्षों जैसा पहले कभी महसूस नहीं किया। इससे उनका खेल पहले से बेहतर हुआ है।
- अनुष्का शर्मा : 2015 में वीगनिज्म को अपनाया। अक्टूबर 2019 में उन्होंने ट्वीट किया, "लोग अक्सर पूछते हैं कि मैं प्रोटीन कहां से लेती हूं। फिल्म गेम चेंजर उनको मेरा जवाब है।" फिल्म में अरनॉल्ड श्वार्जनेगर समेत तमाम एथलीट्स ने बताया कि मांसाहार से ही प्रोटीन मिलने की बात मार्केटिंग का हथकंडा है।
- कंगना रनौत: खुलकर अपनी बात रखने वाली कंगना ने पांच साल पहले ही वीगनिज्म को अपना लिया। मांसाहार छोडऩे पर भी उन्हें एसिडिटी होती रही तो वह पूरी तरह वीगन हो गईं।
- अक्षय कुमार: 52 साल के अक्षय कुमार देश के सबसे फिट फिल्म स्टारों में से एक हैं। उन्होंने तीन साल पहले वीगनिज्म को अपनाया था। अक्षय पार्टियों में नहीं जाते। सुबह चार बजे उठकर योग करते हैं।
- आलिया भट्टः गर्मी ज्यादा लगने के चलते पहले मांसाहार छोड़ा फिर दूध से बने प्रोडक्ट। आलिया को अब फल और सब्जी अच्छे लगते हैं। कहती हैं कि उन्हें वीगन डाइट का मजा आ रहा है।
- आमिर खान-किरण राव: वीगन किरण राव ने आमिर खान को 2015 में एक वीडियो दिखाया, जिसमें दिखाया गया था कि मौत की वजह बनने वाली 15 सबसे आम बीमारियों से डाइट बदलकर बचा जा सकता है। इसके बाद आमिर वीगन हो गए।
- सोनम कपूर: पेटा ने 2018 में इंडियाज पर्सन ऑफ द ईयर बनाया। दूध के लैक्टोज को पचाने में परेशानी के चलते वीगन बनीं। बाद में उन्होंने चमड़े से बने प्रोडक्ट्स का भी इस्तेमाल बंद कर दिया।
- माधवन: पशु अधिकारों के लिए अक्सर आवाज उठाने वाले RHTDM फेम आर माधवन ने हमेशा के लिए वीगनिज्म को अपना लिया है। उन्हें पेटा पर्सन आफ द इयर बना चुका है।
1918 में ही वीगनिज्म का आइडियाः महात्मा की दुविधा, गाय-भैंस का दूध छोड़ा तो बकरी का दूध कैसे पिएं

भारत में वीगनिज्म को लेकर शायद पहला रिकॉर्डेड किस्सा महात्मा गांधी और दूध को लेकर उनकी दुविधा से जुड़ा है। तब तो दुनिया में ही वीगनिज्म का ऐसा आइडिया नहीं था। हुआ यों कि दक्षिण अफ्रीका से 1915 में भारत लौटे महात्मा गांधी बिहार के चंपारण के बाद 1918 में गुजरात के खेड़ा में बड़ा किसान आंदोलन किया। इसके तुरंत बाद वे गंभीर पेचिश के शिकार हो गए। डॉक्टरों ने सलाह दी कि उन्हें ज्यादा प्रोटीन की जरूरत है। एक तरफ गांधी शाकाहारी थे तो दूसरी तरफ उन्हें दालें पच नहीं रही थीं। प्रोटीन के लिए उन्हें डॉक्टरों ने दूध लेने की सलाह दी। बस यहीं गांधी की वीगन दुविधा सामने आकर खड़ी हो गई है। दरअसल, गांधी दूध के लिए गायों पर की जाने वाली फूंका (काउ ब्लोइंग) नाम की प्रथा के खिलाफ थे। इसमें दूध दुहने के लिए गायों के अंग में हवा भरी जाती थी। वहीं, बछड़े की मौत होने पर उनकी खाल में भूसा भरकर तैयार डमी से गाय-भैंस को जिंदा बछड़े का अहसास दिलाने और दूध दुहने से भी गांधी सहमत नहीं थे। गांधी इन दोनों परंपराओं को गाय-भैंस के साथ हिंसा मानते थे। इसके चलते ही उन्होंने दूध या उससे बनने की सभी चीजें छोड़ दी थीं।
एक तरफ महात्मा अपना प्रण नहीं तोड़ सकते थे तो दूसरी तरफ उनका जीवित रहना भी जरूरी थी। यही थी वीगन महात्मा गांधी की दुविधा। कस्तूरबा ने उन्होंने गांधी से गाय या भैंस की जगह जीने के लिए बकरी का दूध पीने की सलाह दी।
गांधी ने यह बात तो मान तो ली मगर वे जानते थे कि उन्होंने अपने आदर्शों से समझौता कर लिया था। आत्मकथा सत्य के साथ मेरे प्रयोग में उन्होंने लिखा, मेरे इस कार्य का डंक अभी मिटा नहीं है और बकरी का दूध छोडऩे के विषय में मेरा चिंतन चल ही रहा है। बकरी का दूध पीते समय मैं रोज दुख का अनुभव करता हूं।
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