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मंगलवार, 30 जून 2020
ये ऐप डाउनलोड करने वालों में हर तीन में से एक भारतीय; लॉकडाउन में आरोग्य सेतु से ज्यादा टिक टॉक डाउनलोड हुआ

लद्दाख सीमा पर भारत-चीन की सेनाओं के बीच जारी तनाव के बीच सोमवार को केंद्र सरकार ने चीन की 59 ऐप्स को भारत में बैन कर दिया है। केंद्र सरकार के इस कदम को सोशल मीडिया पर "डिजिटल सर्जिकल स्ट्राइक' करार दिया गया।
जिन 59 ऐप्स पर सरकार ने पाबंदी लगाई है, उसमें टिक टॉक भी शामिल है। टिक टॉक न सिर्फ देश बल्कि दुनिया की सबसे पॉपुलर ऐप्स है। दुनियाभर में टिक टॉक के डेढ़ अरब से ज्यादा डाउनलोड हैं। इसमें से एक तिहाई हिस्सा भारतीयों का है।
टिक टॉक डाउनलोड करने वालों में हर तीन में से एक भारतीय
मोबाइल ऐप इंटेलिजेंस पर काम करने वाली सेंसर टॉवर की रिपोर्ट के मुताबिक, टिक टॉक डाउनलोड करने वालों में सबसे ज्यादा भारतीय यूजर हैं। अब तक भारत में टिक टॉक को 61.1 करोड़ से ज्यादा बार डाउनलोड किया जा चुका है। यानी, जो लोग भी टिक टॉक डाउनलोड कर रहे हैं, उनमें से हर तीन यूजर में से एक भारतीय यूजर है।
हालांकि, भारत में टिक टॉक के मंथली एक्टिव यूजर्स की संख्या 20 करोड़ के आसपास है। इसका मतलब ये हुआ कि भले ही 61.1 करोड़ बार डाउनलोड हो चुका है, लेकिन इसमें से 20 करोड़ लोग ही ऐसे हैं, जो हर महीने कम से कम एक बार टिक टॉक पर आते हैं।
इतना ही नहीं, टिक टॉक को जितना भारतीयों ने डाउनलोड किया है, उतना तो इसे चीन में भी डाउनलोड नहीं किया गया। चीन में अब तक इस ऐप को करीब 20 करोड़ बार डाउनलोड किया गया है। जबकि, अमेरिका में इसे 16 करोड़ से ज्यादा बार डाउनलोड किया जा चुका है।
दुनियाभर में टिक टॉक के जितने डाउनलोड्स हैं, उसमें से 30.3% डाउनलोड्स अकेले भारत में हैं। दूसरे नंबर पर चीन है, जहां कुल डाउनलोड्स में से 9.7% डाउनलोड्स हैं।

कोरोनावायरस का भी फायदा मिला टिक टॉक को
हाल ही में सेंसर टॉवर की एक रिपोर्ट आई थी। इस रिपोर्ट में 2020 की पहली तिमाही यानी जनवरी से मार्च तक के आंकड़े थे। इस रिपोर्ट के मुताबिक, इस साल जनवरी से मार्च के बीच टिक टॉक को दुनियाभर में 31 करोड़ से ज्यादा बार डाउनलोड किया गया।
सेंसर टॉवर की रिपोर्ट कहती है कि, 2016 से लेकर 2019 तक गूगल प्ले स्टोर पर सबसे ज्यादा डाउनलोड होने वाली ऐप्स में वॉट्सऐप का नाम पहले नंबर पर होता था। लेकिन, 2020 की पहली तिमाही में वॉट्सऐप को पीछे छोड़कर टिक टॉक पहले नंबर पर आ गई।
टिक टॉक को गूगल प्ले स्टोर से करीब 25 करोड़ बार डाउनलोड किया गया। जबकि, ऐपल के ऐप स्टोर से ये 6.7 करोड़ से ज्यादा बार डाउनलोड हुई।
टिक टॉक के इतने डाउनलोड के पीछे कोरोनावायरस भी एक वजह है। सेंसर टॉवर के मुताबिक, कोरोना को फैलने से रोकने के लिए दुनियाभर की सरकारों ने लॉकडाउन लगा दिया था। जबकि, काफी पहले से ही इससे बचने के लिए लोग घरों पर रहने लगे थे।
इस रिपोर्ट में भी जनवरी से मार्च तक के ही आंकड़े हैं। जब दूसरी तिमाही के आंकड़े आएंगे, तो टिक टॉक के डाउनलोड्स और भी बढ़ने के पूरे-पूरे चांसेस हैं। क्योंकि, कोरोना मार्च में फैलना शुरू हुआ और उसके बाद ही कई देशों में लॉकडाउन लगा।
इस साल 5 महीने में 55 करोड़ से ज्यादा बार टिक टॉक डाउनलोड हुआ
इस साल जनवरी से लेकर मई तक 5 महीनों में टिक टॉक को 55 करोड़ से ज्यादा बार डाउनलोड किया गया। इसमें से लगभग 16 करोड़ से ज्यादा यानी करीब 30% डाउनलोड्स अकेले भारत में हुए।
जनवरी में टिक टॉक को दुनियाभर में 10.47 करोड़ बार डाउनलोड किया गया, उसमें से 34.4% डाउनलोड्स भारत में हुए थे। उसके बाद फरवरी में 11.3 करोड़, मार्च में 11.5 करोड़, अप्रैल में 10.7 करोड़ और मई में 11.1 करोड़ बार टिक टॉक को डाउनलोड किया गया।
पांचों महीने में भारत ही पहला देश था, जहां टिक टॉक के सबसे ज्यादा डाउनलोड्स हुए थे।
लॉकडाउन में भी आरोग्य सेतु से ज्यादा टिक टॉक डाउनलोड हुआ
सेंसर टॉवर पर भारत में टिक टॉक डाउनलोड्स के 10 अप्रैल तक के आंकड़े बताते हैं कि कोरोना महामारी के बीच भारत में टिक टॉक सबसे ज्यादा डाउनलोड की जाने वाली ऐप्स थी।
इसमें 1 मार्च से लेकर 10 अप्रैल तक का डेटा मौजूद है। इसको तीन हिस्से में बांटा गया है। पहली हिस्सा 1 मार्च से 11 मार्च तक का, जब कोरोनावायरस के भारत में कुछ ही मामले थे। दूसरा हिस्सा 11 मार्च से 25 मार्च का है, जब देश में कोरोना के मामले बढ़ने लगे थे और वर्क फ्रॉम होम और सोशल डिस्टेंसिंग लागू होने लगी थी। तीसरा हिस्सा 25 मार्च से 10 अप्रैल का है, जब भारत में लॉकडाउन लग गया था।
इसमें 1 मार्च से 11 मार्च के बीच टिक टॉक को 1 करोड़ से ज्यादा बार डाउनलोड किया गया। जबकि, 11 मार्च से 25 मार्च के बीच इसे 1.89 करोड़ से ज्यादा बार डाउनलोड दिया गया। वहीं, 25 मार्च से 10 अप्रैल के बीच ये 1.40 करोड़ से ज्यादा बार डाउनलोड हुआ
इसी बीच 2 अप्रैल को सरकार ने आरोग्य सेतु ऐप लॉन्च की थी। अभी इसको साढ़े 13 करोड़ से ज्यादा लोगों ने डाउनलोड कर लिया है। लेकिन, 15 अप्रैल तक इसके 5 करोड़ डाउनलोड्स ही थे।

भारत से कितनी कमाई होती है टिक टॉक को?
टिक टॉक के लिए चीन के बाद भारत सबसे बड़ा बाजार है। भारत में इसके 20 करोड़ से ज्यादा एक्टिव यूजर्स हैं। डिजिटल इकोनॉमी वेबसाइट एन्ट्रैकर की एक रिपोर्ट के मुताबिक, पिछले साल अक्टूबर-दिसंबर तिमाही में टिक टॉक को भारत से 23 से 25 करोड़ रुपए का रेवेन्यू मिला था।
वहीं, इस साल जुलाई-सितंबर तिमाही तक टिक टॉक ने भारत से 100 करोड़ रुपए का रेवेन्यू हासिल करने का टारगेट रखा था।
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from Dainik Bhaskar
क्यों राफेल की तरह पहले मिग 21 और जगुआर भी अंबाला में ही तैनात हुए थे और इससे मुकाबले के लिए चीन के पास कोई फाइटर नहीं हैं

भारत को 27 जुलाई तक फ्रांस से 6 राफेल फाइटर जेट मिलने वाले हैं। इन फाइटर जेट को अम्बाला एयरबेस पर तैनात किया जाएगा। भारत राफेल बनाने वाली फ्रेंच कंपनी दसॉ एविएशन से 36 फाइटर जेट खरीदेगा। उम्मीद है कि 2022 तक ये सभीफाइटर जेट मिल जाएंगे।
एलएसी पर चीन के साथ जारी तनाव के बीच राफेल हमारे लिए बहुत जरूरी भी था। भारतीय वायुसेना ने पहले भी फ्रांस, रूस और ब्रिटेन जैसे देशों से फाइटर जेट खरीदे हैं। फ्रांस से हमने जो भी फाइटर जेट खरीदे हैं, वो सभी दसॉ एविएशन के हैं।
इसमें 1953 से 1965 के बीच 104 एमडी 450 ओरागेन (भारत में इसे हरिकेन कहते हैं) खरीदे थे। 1957 से 1973 के बीच 110 एमडी 454 मिस्टेरे-5 खरीदे थे। 1985 में मिराज 2000 खरीदे थे। मिराज का इस्तेमाल हम कारगिल की लड़ाई और बालाकोट एयरस्ट्राइक में भी कर चुके हैं।

राफेल फाइटर जेट के आने के बाद भारत की कितनी ताकत बढ़ेगी? चीन के विमानों की तुलना में ये कितना शक्तिशाली होगा? ये सब समझने के लिए पढ़िए रिटायर्ड एयर मार्शल अनिल चोपड़ा का एक्सप्लेनर...
भारतीय पायलट राफेल भारत लेकर पहुंचेंगे
राफेल को भारतीय वायुसेना के फाइटर पायलट ही फ्रांस से लेकर भारत पहुंचेंगे। भारत आने से पहले पायलट फ्रांस में ही उड़ान भरकर प्रैक्टिस करेंगे। फ्रांस के बोर्डेक्स मेरिग्नेक एयरफील्ड से भारतीय पायलट 25 जुलाई को उड़ान भर सकते हैं। 6 एयरक्राफ्ट तीन-तीनविमान के ग्रुप में बंटेंगे। इन विमानों के साथ सी-70 या आईएल-76 जैसे ट्रांसपोर्ट एयरक्राफ्ट भी होंगे। ये एयरक्राफ्ट इंजीनियर्स, टेक्नीशियन और स्पेयर पार्ट्स को लेकर आएंगे।
इसके लिए एक बड़े विमान की जरूरत है, क्योंकि एक विशेष लोडिंग ट्रॉली के साथ एक स्पेयर इंजन भी होगा। इस समय राफेल अनआर्मर्ड होंगे, इसलिए एक्सटर्नल फ्यूल टैंक की भी जरूरत होगी। फ्रांस से भारत आने के बीच सिर्फ एक ही स्टॉप होगा। पहले तो फ्रांस की वायुसेना इसमें फ्यूल भरने की सुविधा देगी। करीब 4 घंटे तक उड़ान भरने के बाद रिफ्यूलिंग के लिए और पायलट के आराम के लिए इसको रोकना होगा। मिराज 2000 जब भारत आया था तो कई जगह रुका था, लेकिन राफेल एक स्टॉप के बाद सीधे अम्बाला एयरबेस पर उतरेगा।

फ्रांस में हुई है राफेल के पायलट्स की ट्रेनिंग
राफेल उड़ाने के लिए भारतीय वायुसेना के पायलट्स की ट्रेनिंग फ्रांस के मोंट-डे-मार्सन एयरबेस पर हुई। यहीं पर मिराज 2000 की ट्रेनिंग भी हुई थी। न सिर्फ भारतीय वायुसेना के पायलट्स बल्कि इंजीनियरों और टेक्नीशियंस को भी ट्रेनिंग दी गई है। यही लोग भारत आकर दूसरे साथियों को ट्रेनिंग देंगे।
17वीं स्क्वाड्रन गोल्डन एरोज राफेल की पहली स्क्वाड्रन होगी। खास बात ये है कि पूर्व एयर चीफ बीएस धनोआ ने कारगिल युद्ध के दौरान इस स्क्वाड्रन की कमान संभाली थी। विदेशों से ट्रेनिंग लेकर आए पायलट इस स्क्वाड्रन में तैनात होंगे। एक साल बाद जब हाशमीरा में राफेल की दूसरी स्क्वाड्रन तैयार होगी, तब वहां पायलट का ग्रुप बंट जाएगा।
मिग 21 और जगुआर भी अंबाला में ही तैनात हुए थे
शुरुआत में जगुआर और मिग-21 बाइसन जैसे लड़ाकू विमानों को भी अंबालाएयरबेस पर ही तैनात किया गया था। यह एयरबेस भारत की पश्चिमी सीमा से 200 किमी दूर है और पाकिस्तान के सरगोधाएयरबेस के नजदीक भी है। यहां पर तैनाती से पश्चिमी सीमा पर पाकिस्तान के खिलाफ तेजी से एक्शन लिया जा सकेगा। दिलचस्प बात ये भी है कि अंबालाएयरबेस चीन की सीमा से भी 200 किमी की दूरी पर है। अंबालाएयरबेस से 300 किमी दूर लेह के सामने चीन का न्गारी गर गुंसा एयरबेस है।

राफेल की तैनाती के लिए यहां पर इन्फ्रास्ट्रक्चर भी तैयार किया गया है। स्पेशल ब्लास्ट पेन, एवियोनिक्स और इलेक्ट्रॉनिक्स वारफेयर सिस्टम लैब, हथियार तैयार करने वाले क्षेत्रों समेत तकनीकी इन्फ्रास्ट्रक्चर तैयार किया गया है या फिर उसे रिडेवलप किया गया है। हालांकि, इंजन के टेस्ट के लिए और सुविधाओं की जरूरत हो सकती है। बाद में इसी तरह का इन्फ्रास्ट्रक्चर हाशिमारा में भी तैयार किया जाएगा।
सबसे फुर्तिला विमान जिससे परमाणु हमला भी कर सकते हैं
राफेल डीएच (टू-सीटर) और राफेल ईएच (सिंगल सीटर), दोनों ही ट्विन इंजन, डेल्टा-विंग, सेमी स्टील्थ कैपेबिलिटीज के साथ चौथी जनरेशन का विमान है। ये न सिर्फ फुर्तीला विमान है, बल्कि इससे परमाणु हमला भी किया जा सकता है।
इस फाइटर जेट को रडार क्रॉस-सेक्शन और इन्फ्रा-रेड सिग्नेचर के साथ डिजाइन किया गया है। इसमें ग्लास कॉकपिट है। इसके साथ ही एक कम्प्यूटर सिस्टम भी है, जो पायलट को कमांड और कंट्रोल करने में मदद करता है। इसमें ताकतवर एम 88 इंजन लगा हुआ है। राफेल में एक एडवांस्ड एवियोनिक्स सूट भी है। इसमें लगा रडार, इलेक्ट्रॉनिक कम्युनिकेशन सिस्टम और सेल्फ प्रोटेक्शन इक्विपमेंट की लागत पूरे विमान की कुल कीमत का 30% है।
इस जेट में आरबीई 2 एए एक्टिव इलेक्ट्रॉनिकली स्कैन्ड एरे (AESA) रडार लगा है, जो लो-ऑब्जर्वेशन टारगेट को पहचानने में मदद करता है। इसमें सिंथेटिक अपरचर रडार (SAR) भी है, जो आसानी से जाम नहीं हो सकता। जबकि, इसमें लगा स्पेक्ट्रा लंबी दूरी के टारगेट को भी पहचान सकता है।

इन सबके अलावा किसी भी खतरे की आशंका की स्थिति मेंइसमें लगा रडार वॉर्निंग रिसिवर, लेजर वॉर्निंग और मिसाइल एप्रोच वॉर्निंग अलर्ट हो जाता है और रडार को जाम करने से बचाता है। इसके अलावा राफेल का रडार सिस्टम 100 किमी के दायरे में भी टारगेट को डिटेक्ट कर लेता है।
राफेल में आधुनिक हथियार भी हैं। जैसे- इसमें 125 राउंड के साथ 30 एमएम की कैनन है। ये एक बार में साढ़े 9 हजार किलो का सामान ले जा सकता है। इसमें हवा से हवा में मारने वाली मैजिक-II, एमबीडीए मीका आईआर या ईएम और एमबीडीए मीटियर जैसी मिसाइलें हैं। ये मिसाइलें हवा में 150 किमी तक के टारगेट को मार सकती हैं।
इसमें हवा से जमीन में मारने की भी ताकत है। इसकी रेंज 560 किमी है।इस एयरक्राफ्ट का इस्तेमाल इराक, अफगानिस्तान, लीबिया, माली और सीरिया में हो चुका है। इस फाइटर जेट के आने से भारत की ताकत हिंद महासागर में भी बढे़गी।
राफेल से मुकाबले के लिए चीन के पास कोई फाइटर नहीं
चीन के पास अभी चेंगड़ू जे-10 विमान है, जो इजरायल के लावी एयरक्राफ्ट का मॉडिफाइड रूप है। चीन का ये विमान अमेरिका के एफ-16 ए/बी के बराबर ही है। चीन के पास ऐसे 400 विमान हैं। इस विमान में 100 किमी तक की रेंज में मारने वाली पीएल-12 बीवीआर मिसाइलें हैं। इसके अलावा चीन के पास शेन्यांग जे-11 भी है, जो सुखोई 27 की कॉपी है। इसमें पीएल-12 मिसाइलें लगी हैं। ये भारत के पास मौजूद सुखोई 30एमकेआई की तरह है।
इसके अलावा चीन ने एक शेन्यांग जे-16 फाइटर जेट भी बनाया है, जो रूस के सुखोई 30 एमकेके का मॉडिफाइड वर्जन है। चीन के पास ऐसे 130 फाइटर जेट हैं। इस विमान में 150 किमी तक की मारक क्षमता वाली पीएल15 मिसाइल भी तैनात हो सकती हैं। चीन के पास सुखोई 30 एमकेके भी है, जो भारतीय वायुसेना के पास मौजूद सुखोई-30एमकेआई की तरह है। चीन के पास सुखोई 35 भी है, जो सुखोई 30 एमकेके की तुलना में एडवांस्ड वैरियंट है। इन सबके अलावा चीन के पास 5वीं पीढ़ी का जे-20 फाइटर जेट भी है। जो अभी ऑपरेशनल नहीं है।

जबकि, भारतीय वायुसेना के पास राफेल, सुखोई 30एमकेआई, मिराज 2000 और मिग 29 का एक शानदार कॉम्बिनेशन है। इसके अलावा जगुआर, मिग 21 बाइसन और स्वदेश एलसीए एमके1 भी है। भारत को जो राफेल मिलने वाला है, उसका मुकाबला करने के लिए चीन के पास कोई लड़ाकू विमान नहीं है।
वहीं, पाकिस्तान के पास सबसे अच्छा फाइटर जेट एफ-16 ब्लॉक 52 है, जिसकी मिसाइल की मारक क्षमता 120 किमी तक की है। कुल मिलाकर पाकिस्तान और चीन की तुलना में भारतीय वायुसेना के पास अच्छे फाइटर जेट हैं।
आधुनिक हथियारों से लैस राफेल सबसे बेहतरीन लड़ाकू विमान है, जिसमें जमीनी हमले, एंटी-शिप स्ट्राइक और परमाणु हमले करने की ताकत है। दसॉ का बनाया गया फाइटर जेट एक ओम्नीरोल विमान है। इसमें AESA रडार, आईआरएसटी, एवियोनिक्स फ्यूस्ड डेटा, स्टील्थ फीचर्स, स्पेक्ट्रा प्रोटेक्शन सूट है। सबसे खास बात ये है कि इसके दोनों तरफ हथियार रखे जा सकते हैं। हमारे पास 36 राफेल विमान होंगे। हालांकि, इतने विमान दो स्क्वाड्रन भी नहीं बनाते। भारत ने भी पहले ऐसा किया है और बाद में 36 विमान ऑर्डर किए हैं।
(एयर मार्शल अनिल चोपड़ा, रिटायर्ड फाइटर पायलट हैं, वे बतौर एयर ऑफिसर इंचार्ज पर्सनल 2012 में रिटायर हुए हैं।)
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from Dainik Bhaskar
कश्मीरियों की मौत पर चुप रहे, कश्मीर के बच्चों को आतंकवादी बनाया और अपने बच्चों के लिए विदेश में पढ़ाई और नौकरियां बटोरी

तारीख थी 21 अक्टूबर 2010 और जगहदेश की राजधानी दिल्ली का एलटीजी ऑडिटोरियम। इस ऑडिटोरियम में सैयद अली शाह गिलानी वामपंथी कार्यकर्ताओं के एक सम्मेलन को संबोधित कर रहे थे। इस सम्मेलन का विषय था- "आजादी-द ओनली वे'। हॉल में मंच पर अरुंधति रॉय, वरवारा राव और एसएआर गिलानी भी बैठे हुए थे और नारे गूंज रहे थे "हम क्या चाहते आजादी'। सैयद अली शाह गिलानी जम्मू-कश्मीर पर भारत के रवैये के खिलाफ थे।
सोमवार सुबह अचानक गिलानी ने अलगाववादी संगठन हुर्रियत कॉन्फ्रेंस से इस्तीफे की घोषणा कर दी। 47 सेकंड की एक ऑडियो क्लिप में 91 साल के गिलानी ने कहा कि उन्होंने संगठन के मौजूदा हालात को देखते हुए हुर्रियत से अलग होने का फैसला लिया है। बाद में दो पन्ने के एक लेटर में उन्होंने अपने अलगाववादी साथियों पर राजनीतिक भ्रष्टाचार और फाइनेंशियल गड़बड़ियां करने का आरोप लगाया। इसके साथ ही उन्होंने पाकिस्तान में हुर्रियत के अलगाववादियों पर भी मजहब को गलत तरीके से पेश करने और फैसले लेने से पहले उनसे सलाह न लेने का दोषी ठहराया।
हुर्रियत के पतन को राजनीतिक भ्रष्टाचार के परिणाम के तौर पर देखा जा रहा है, क्योंकि गिलानी इतने सालों से निर्दोष कश्मीरियों की मौत पर चुप रहे और हमेशा तहरीक (आंदोलन) पर अपने परिवार को वरीयता दी। गिलानी ने अपने बच्चों और पोतों के लिए सरकारी नौकरी सुरक्षित रखने की कोशिश की, जिसे उनके सबसे करीबी दोस्तों और साथियों ने विश्वासघात के रूप में देखा।

90 के दशक में गिलानी ने कट्टरपंथ का रास्ता अपनाया
गिलानी तीन बार जम्मू-कश्मीर विधानसभा में विधायक चुनकर आए। उन्होंने भारत के संविधान की शपथ ली थी। गिलानी के कट्टरपंथी बनने का रास्ता 90 के दशक में तब शुरू हुआ, जब घाटी से कश्मीरी पंडितों का पलायन हो रहा था। गिलानी पहले एक शिक्षक थे, लेकिन बाद में वो जमात की तरफ खींचते चले गए। 90 के दशक की शुरुआत से, गिलानी ने ये प्रचार करना शुरू कर दिया कि इस्लाम को हिंदू भारत से बचाने के लिए कश्मीर की आजादी जरूरी थी। इससे वो पाकिस्तान के करीब आते गए और धीरे-धीरे कश्मीर में भारत के खिलाफ जिहाद करने पर उतर आए।
गिलानी ने शुरू में निजाम-ए-मुस्तफा (पैगंबर का आदेश) का विचार कश्मीर में फैलाया, लेकिन बाद में यही विचार "गिलानी वाली आजादी' के रूप में बदल गया, जिसका मतलब था हिंसक रास्तों पर चलना। बाद में ये सब हाथ से निकलकर आतंकवाद बन गया और जिहादी मानसिकता खुद गिलानी से बड़ी हो गई।
2008 से 2010 तक और आखिरकार 2016 में भी, गिलानी ने बड़े पैमाने पर हिंसक विरोध प्रदर्शनों को उकसाने और जम्मू-कश्मीर में एक सांप्रदायिक विभाजन को भड़काने में कोई कसर नहीं छोड़ी। आजगिलानी खुद अलग-थलग पड़ गए हैं।
हुर्रियत अलगाववाद की कमर तोड़ने के लिए भारत सरकार ने अब चुप रहने का ही रास्ता चुन लिया है। हालांकि, सूत्रों से पता चलता है कि गिलानी को पाकिस्तान का समर्थन करने की अपनी मूर्खता का एहसास हो गया है।लोकल आबादी को खत्म करने के लिए पाकिस्तान सालों से कश्मीर में हथियारों और नशीली दवाओं का इस्तेमाल कर रहा है। सूत्र कहते हैं कि अब पाकिस्तान ने गिलानी को समझा दिया है कि वो अब उनके लिए उतने उपयोगी नहीं रह गए हैं।
क्या परिवार की वजह से हुर्रियत में दरार पड़ी?
गिलानी के इस फैसले से उस जॉइंट रेसिस्टेंस लीडरशिप को भी झटका लगा है, जो उन्होंने कुछ साल पहले मीरवाइज उमर फारूक और यासीन मलिक के साथ मिलकर बनाई थी। दिल्ली की तिहाड़ जेल में कैद मीरवाइज उमर फारूक और यासीन मलिक, गिलानी के फैसले पर चुप हैं और कोई भी अलगाववादी नेता इस पर कुछ भी कहने से बच रहा है।

क्योंकि, गिलानी के अचानक इस्तीफे के कारणों पर बहस जारी है और अब ध्यान हुर्रियत के भीतरी नेतृत्व संकट की ओर जाता है। गिलानी की जगह कौन होगा? इस पर अभी कुछ तय नहीं है। हालांकि, सालों से पत्थरबाजी का काम कर रहे मसरत आलम को गिलानी के विकल्प के तौर पर देखा जा रहा है, लेकिन वो अभी तिहाड़ जेल में है। उसके अलावा अशरफ सहराई का नाम भी चर्चा में है।
हुर्रियत के नेता नईम खान ने गिलानी पर लगाया था आरोप
हुर्रियत में भीतरी दरार कोई नया मामला नहीं है। मई 2017 में एक पत्रकार से टेलीफोन पर बातचीत में हुर्रियत के नेता नईम खान और हिजबुलमुजाहिदीन के फाउंडर अहसान डार ने कहा था कि जब हवाला फंडिंग के मामले में एनआईए ने उनके घर पर छापा मारा था, तब गिलानी ने उनकी कोई मदद नहीं की थी। बातचीत में नईम खान ने तो ये तक कहा था कि अगर गिलानी की मौत हो जाती है, तो उनके जनाजे में उनके परिवार के अलावा और कोई भी कश्मीरी शामिल नहीं होगा।
ऑडियो क्लिप में नईम खान को ये कहते हुए भी सुना गया था कि गिलानी ने उन्हें बलि का बकरा बनाया। हालांकि, उन्होंने उसके बाद भी एनआईए पर पत्थरबाजी करना जारी रखा। नईम ने कहा था, "ये कैसी तहरीक (आंदोलन) है? उधर कश्मीर में मेजर गोगोई को भारतीय सेना सम्मानित करती है और यहां हमें डिमोरलाइज्ड किया जाता है। जब मुझे उनकी सबसे ज्यादा जरूरत थी, तब उन्होंने (गिलानी ने) मुझे छोड़ दिया।'
नईम ने कहा था कि गिलानी का एक ही मकसद हैकि जब तक वो जिंदा हैं, तब तक वही लीडर रहेंगे और उनकी मौत के बाद उनके परिवार का कोई व्यक्ति लीडर बनना चाहिए। अल्ताफ फंटोश न सिर्फ गिलानी के दामाद हैं, बल्कि हुर्रियत की एग्जीक्यूटिव काउंसिल के सदस्य भी हैं।
मार्च 2013 में एक पत्रकार ने दक्षिणदिल्ली में मालवीय नगर में स्थित खिरकी एक्सटेंशन हाउस में गिलानी का इंटरव्यू लिया। ये वही जगह थी, जहां गिलानी सालों से पाकिस्तानी उच्च आयुक्त से मिलते थे और उनसे पैसा भी लेते थे। गिलानी ने उस समय भी पाकिस्तानी आतंकवादियों और निर्दोष कश्मीरियों की हत्या से जुड़े ज्यादातर सवालों का जवाब देने से इनकार कर दिया।

जब गिलानी से पाकिस्तानी आतंकी हाफिज सईद और यासीन मलिक के एक ही मंच साझा करने पर सवाल किया गया, तो उन्होंने हंसते हुए कहा, "ये मेरे लिए अप्रासंगिक सवाल है और मुझे इसका जवाब देने की जरूरत नहीं है।' इसके बाद जब गिलानी से हिजबुलमुजाहिदीन और उसके चीफ कमांडर सैयद सलाहुद्दीन के बारे में पूछा गया तो गिलानी ने कहा, "अगर कश्मीर में आतंकवाद और गन कल्चर आता है, तो इसकाजिम्मेदार भारत सरकार है।'
ईडी ने गिलानी पर 14.4 लाख रुपए का जुर्माना लगाया था
6 साल बाद मार्च 2019 में इनकम टैक्स डिपार्टमेंट ने गिलानी के खिरकी एक्सटेंशन निवास को सील कर दिया, क्योंकि वो 1996-97 से 2001-02 तक का टैक्स भरने में नाकाम रहा था। इसके साथ ही गिलानी पर उसकी प्रॉपर्टी को ट्रांसफर करने से भी रोक दिया गया। इससे पहले ईडी ने गिलानी पर 2002 में अवैध तरीके से 10 लाख रुपए कमाने और 10 हजार डॉलर की हेराफेरी करने के आरोप में 14.4 लाख रुपए का जुर्माना भी लगाया था।
गिलानी की वजह से ही कश्मीरी युवा पत्थरबाज बनने पर मजबूर हुए
पिछले कुछ सालों में गिलानी की कई आतंकवादियों के साथ तस्वीरें सोशल मीडिया पर सामने आई हैं। पाकिस्तान के नेताओं के साथ भी गिलानी की बातचीतकिसी से छुपी नहीं है। गिलानी की वजह से ही कश्मीरी युवा पत्थरबाज बनने या आत्मघाती हमलावर बनने पर मजबूर हुए हैं।
एनआईए और जम्मू-कश्मीर पुलिस समेत कई भारतीय एजेंसियों ने अपनी जांच में ये भी पाया है कि गिलानी और उनके अलगाववादी साथियों ने कश्मीरी युवाओं को हायर एजुकेशन के लिए पाकिस्तान का वीजा दिलाने के लिए पाकिस्तानी हाई कमिश्नर से सिफारिश की थी। ये वही युवा थे, जिन्हें हायर एजुकेशन की आड़ में पाकिस्तान की आईएसआई हथियार चलाने की ट्रेनिंग देती थी और बाद में ये युवा कश्मीर में सुरक्षाबलों के एनकाउंटर में मारे गए।

इतना ही नहीं, पाकिस्तान के आतंकवादियों के चंगुल से बचकर आए लोगों के माता-पिता के प्रति गिलानी ने कभी कोई सहानुभूति नहीं जताई। इसके बजाय गिलानी ने युवाओं को आतंक के आत्मघाती रास्ते पर धकेलना चुना।
जैसे-जैसे गिलानी राजनीति की गुमनामी में ढलते गए, वैसे-वैसे उनके साथी अलगाववादियों के पास सिर्फ दो ही रास्ते रह गए। पहला कि वो भी गिलानी की तरह ही पाकिस्तान की कठपुतली बनकर रह जाएं या फिर जम्मू-कश्मीर के विकास और भविष्य में यहां के युवाओं को मौका दें। गिलानी का इस्तीफा उन लोगों के लिए एक मौका है, जो कट्टरपंथ पर एजुकेशन को, एनकाउंटर पर सिनेमा को और गन कल्चर पर क्रिएटिव आर्ट्स को तरजीह देते हैं।
सरकार कोहुर्रियत पर प्रतिबंध लगा देना चाहिए
घाटी में एक इंटरनल इकोसिस्टम बना है, जो अलगाववाद और आतंकवाद को फलने-फूलने देता है। बीमारी का इलाज करने की बजाय, उसके लक्षणों को ठीक करना चाहिए। अभी के लिए सरकार हुर्रियत को अपनी मौत मरने का विकल्प चुनने दे सकती है, लेकिन उसे इस्लामी संगठन पर प्रतिबंध लगाने से नहीं कतराना चाहिए, जिसने घाटी में सिर्फ जिहादी विचारधारा को बढ़ावा दिया।
गिलानी भले ही अगस्त 2019 में जम्मू-कश्मीर से आर्टिकल370 हटने के बाद हुए विरोध प्रदर्शन या आंदोलन के लिए अपने अलगाववादियों की विफलता की जिम्मेदारी लेने से भाग सकते हैं, लेकिन कश्मीरियों की हत्या को आसानी से न भूल सकते हैं और न ही माफ कर सकते हैं।
कश्मीर की सड़कों पर इस्लामिक कट्टरपंथी के खून और पाकिस्तान के छद्म युद्ध पर चुप्पी ने कश्मीर में एक पूरी पीढ़ी को बर्बाद कर दिया। हजारों मांओं ने अपने बच्चों को खो दिया है और आजादी की इस नासमझी लड़ाई में हजारों बच्चे अनाथ हो गए।
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तिरुपति में हर रोज बाहर से आ रहे 12 हजार श्रद्धालु; जितने पहले दो घंटे में दर्शन करते थे, अब पूरे दिन में कर रहे हैं

सुबह के साढ़े पांच बजे हैं। कडप्पा से आए पीएस सुधीर अपनी पत्नी औरबेटे के साथ श्रीवारी ट्रस्ट के दानदाताओं के लिए ब्रेक (वीआईपी) दर्शन की लाइन में लगे हैं। वे पहले हर महीने दर्शन करने आते थे। लेकिन, पिछले तीन महीने से यहां नहीं आ पाए। हाल ही में उन्होंने श्रीवारी ट्रस्ट में 10 हजार रुपए से ज्यादका दान दिया था। इसलिएउन्हें बिना दिक्कत के ब्रेक दर्शन का विकल्प मिल गया।
ब्रेक दर्शन काटिकट होने की वजह से उन्हें तिरुमाला में एक रात रुकनेके लिए भी कमरा भी मिल गया। सुधीर सोमवार को मंदिर पहुंचे उन 12 हजार श्रद्धालुओं में से एक हैं, जिन्होंनेवेंकटेश बालाजी का दर्शन किया।
तिरुमाला पहाड़ी में कोरोना का एक भी मरीज नहीं
8 से 10 जून तक हर दिन 6 हजार से ज्यादा ट्रस्ट कर्मचारियों और स्थानीय लोगों के साथ किए गए दर्शन के ट्रायल के बाद 11 जून से आम श्रद्धालुओं के लिए दर्शन खोल दिया गया। इसके बाद हर दिन यह संख्या बढ़ती गई। जून के आखिर तक यह संख्या बढ़कर 12 हजार हो गई है। खास बात यह है कि तिरुमाला पहाड़ी, जहां वेंकटेश बालाजी का मंदिर है, वहां कोरोनाका एक भी मरीज नहीं है और वह ग्रीन जोन है।

तिरुमाला तिरुपति देवस्थानम ट्रस्ट (टीटीडी) के धर्मा रेड्डी के मुताबिक तिरुमाला आने के लिए करीब 20 किमीपहले तिरुपति के अलीपिरी टोल गेट से आगे कोई तभी आ सकता है, जब उसके पास विशेष दर्शन, सर्वदर्शनम का ऑनलाइन बुक किया हुआ टिकट हो।
टाइम स्लॉट के आधार पर जारी हो रहे टिकट
टोल गेट पर थर्मल स्कैनिंग के दौरान यदि किसी श्रद्धालु में लक्षण पाए जाते हैं तो उन्हें वहीं रोक दिया जाता है। टीटीडी के गेस्ट हाउस में रुकने वाले श्रद्धालुओं को 24 घंटे में कमरा खाली करना होता है। यहां कमरे ऑड-ईवन के आधार पर बुक हो रहे हैं ताकि इन्हें ठीक से सैनिटाइज किया जा सके।
टिकट भी टाइम स्लॉट के आधार पर जारी किए जा रहे हैंताकि तय समय पर दर्शन करके श्रद्धालु तुरंत वापस लौट जाए। किसी को तिरुमाला में रुकने व सड़क किनारे फुटपाथ पर भी कहीं बैठने की इजाजत नहीं है। मुख्य मंदिर के अलावा परिसर के वाराही सहित अन्य मंदिर बंद हैं, पुष्करणी सरोवर में स्नान करने पर पाबंदी है।
भीड़ नहीं होने से आसानी से हो रहे दर्शन
चाय, कॉफी की इक्का-दुक्का स्टॉलों के अलावा पूरे तिरुमाला में रेस्तरां, खाने-पीने व अन्य चीजों की सभी दुकानें बंद हैं। दोपहर के समय का विशेष दर्शन करने के बाद हैदराबाद की पी विजया ने कहा कि वह पिछले 15 साल से यहां आ रही हैं। साल में एक बार जरूर यहां आती हैं। विजया ने कहा कि इस बार दर्शन करना उनके लिए बेहद आसान रहा।महज 20 मिनट में उन्होंने दर्शन कर लिया।

चित्तूर से आए अरुण अय्यर कहते हैं, वे सर्वदर्शन की टिकट लेकर करीब 12 बजे वैकुंठम कॉम्पलैक्स में दाखिल हुए थे, अभी डेढ़ बजे वह दर्शन करके बाहर भी आ चुके। अरुण कहते हैं, ऐसा लगा मानो वीआईपी दर्शन किए हों, न धक्का-मुक्की, न इंतजार, जहां पहले एक से दो सेकेंड भी दर्शन नहीं हो पाते थे, वहीं आज 10-15 सेकेंड बालाजी को निहारने का मौका मिला। उनका सुझाव है कि टीटीडी को सदा के लिए यह व्यवस्था अपनानी चाहिए।
उनके साथ आईं नीलिमा कहतीं हैं, कोरोना का डर तो है, इसीलिए यात्री मास्क भी पहने हुए हैं और दूर-दूर भी चल रहे हैं। हम भी हिम्मत करके आ गए। अब यदि कुछ हुआ भी तो मन में संतोष है कि हमने बालाजी के दर्शन कर लिया है। हम तो काफी सावधानी बरत रहे हैं बाकी बालाजी देखभाल करेंगे।
आम दिनों में मंदिर की सेवा-पूजा में कम से कम 50 अर्चक (पुजारी) मौजूद रहते हैं। लेकिन, इन दिनों केवल 15 अर्चक ही सुबह ढाई से तीन बजे के बीच सुप्रभातम से लेकर रात्रि पौने एक बजे की एकांत सेवा तक रहते हैं।
तिरुपति शहर में बढ़ रहे संक्रमण के मामले

हालांकि तिरुपति शहर के हालात बिल्कुल अलग हैं। देश के अन्य हिस्सों की तरह यहां भी कोरोनासंक्रमण बढ़ रहा है। तिरुपति के 50 में से 36 वार्डों में कंटेनमेंट जोन बन चुका है। करीब साढ़े तीन लाख की आबादी वालेइस शहर में अब तक 231 लोग संक्रमित हो चुके हैं। 8 जून को तिरुपति में मरीजों की संख्या महज 22 थी, जो 22 दिन में (30 जून) 10 गुना बढ़ गई। तिरुपति के रुइया अस्पताल की एमएस डॉ. टी भारती ने कहा कि इनमें से स्थानीय लोग तो 30 से भी कम हैं, ज्यादातरमरीज तिरुपति के बाहर के इलाकों से हैं।
90 फीसदी होटल और गेस्ट हाउस बंद
तिरुपति में 800 से ज्यादा छोटे-बड़े होटल, लॉज व गेस्ट हाउस हैं लेकिन कंटेनमेंट जोन में होने के चलते 90 फीसदी से ज्यादा बंद हैं। तिरुपति में करीब 3 हजार टैक्सियां हैं, जिनमें से ज्यादातरका धंधा ठप पड़ा है। तिरुपति के वरिष्ठ पत्रकार ए रंगराजन कहते हैं कि तिरुपति आने पर यात्री तिरुमाला के साथ-साथ वेल्लूर के स्वर्ण मंदिर व कालाहस्ती भी जाना पसंद करते थे। लेकिन, इस समय आवागमन की छूट नहीं होने से वे केवल तिरुमाला अपने वाहनों से आ रहे हैं और कहीं जाए बगैर सीधे लौट रहे हैं।

संक्रमण के डर से कोई होटल, लॉज में रुकना भी नहीं चाहता। लोग पैकेट बंद नमकीन, बिस्किट या फल खाकर समय गुजार लेते हैं लेकिन जो रेस्तरां खुले हैं, वहां जाने से डर रहे हैं। रंगराजन कहते हैं कि तिरुमाला का श्रीवारी मंदिर देश का एकमात्र मंदिर है जिसके प्रबंधन में तीन सीनियर आईएएस (इनमें से एक प्रमुख सचिव स्तर के) अधिकारी लगे हैं। मंदिर के पास पर्याप्त फंड भी है और कर्मचारियों की फौज भी। यहीवजह है कि यहां यात्रियों कोदर्शन करने का मौका मिल रहा है।
धर्मारेड्डी ने कहा कि कोरोना के बढ़ते संक्रमण में दर्शन खोलना बेहद जोखिम भरा है लेकिन टीटीडी ने इसे एक चुनौती की तरह लिया है। भगवान की कृपा से तिरुमाला में अभी तक सबकुछ नियंत्रण में हैं।

हालात ठीक रहे तो ज्यादा जारी होंगे टिकट
टीटीडी ने सोमवार को जुलाई महीने में दर्शन टिकट का कोटा जारी किया। अब प्रतिदिन विशेष दर्शन (300 रुपए) के 9000 टिकट और सर्वदर्शनम (निशुल्क दर्शन) के 3000 टिकट जारी हो रहे हैं। टीटीडी यह भी विचार कर रहा है कि यदि हालात ठीक रहे तोअगले 10 दिन में सर्वदर्शनम के लिए 4 से 5 हजार तक टिकट जारी होने लगेंगे।
पड़ोस के सभी प्रदेशों की सीमाएं सील होने के चलते तिरुपति पहुंचने वाले श्रद्धालुओं में फिलहाल 90 फीसदी सेज्यादा आंध्र प्रदेश के अलग-अलगजिलों से ही हैं। हालांकि निजी वाहनों से पड़ोसी राज्यों व दूरदराज के शहरों से उड़ान द्वारा भी श्रद्धालु तिरुपति आ रहे हैं।
तिरुपति एयरपोर्ट पर आने वाले यात्रियों का कोरोना टेस्ट जरूरी है। याताजा कोरोना-निगेटिव रिपोर्ट दिखाने पर ही उन्हें शहर में घूसनेकी इजाजत मिलती है। तिरुपति आने वाले श्रद्धालुओं में से 200 लोगों केरैंडम टेस्ट किए जा रहे हैं। हालांकि टीटीडी प्रशासन ने यह रिपोर्ट सार्वजनिक नहीं की है कि इस रिपोर्ट के नतीजे क्या आ रहे हैं।

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हर दिन मरीजों को बचाने का हौंसला जुटाती हैं, लेकिन घर आकर अपनों का दर्द नहीं बांट पातीं

आज भारत में डॉक्टर्स डे मनाया जा रहा है। स्वतंत्रता सेनानी और बंगाल के सीएम रहे भारत रत्न डॉ. बिधानचंद्र रॉय की याद में मनाया जाने वाला यह दिन इस बार विशेष भी है। आज का दिन दिन-रात जुटे उन डॉक्टर्स को सलाम करने का है जिनके लिए कोरोनावायरस को हराना ही एकमात्र लक्ष्य है।
दुनिया के हर देश में पहुंचे कोरोना से लड़ने के लिए इन फ्रंटलाइन डॉक्टर्स की हजारों कहानियां है। त्याग, समर्पण और संघर्ष की इन कहानियों में ही जिंदगी की उम्मीदे जगमगा रही हैं क्योंकि इस 2020 के डॉक्टर्स डे पर ऐसा लगता है कि हमारा हर दिन डॉक्टर्स की मेहरबानी पर है।
आज इस दिन के मौके परफोटो में देखते हैं फिलीपींस के दो डॉक्टर की कहानी जो बताती है कि हालात कितने मुश्किल हैं और डॉक्टर कितनी हिम्मत के साथ डटे हैं। (सभी फोटो रायटर्सएजेंसी के सौजन्य से)

सबसे पहले फिलीपींस के मनीला में काम कर रही डॉ जेन क्लेरी डोराडो की कहानी। यहां की राजधानी मनीला के ईस्ट एवेन्यू मेडिकल सेंटर हॉस्पिटल में कोविड-19 के इमरजेंसी रूम में काम की जिम्मेदारी लेने वाली इस डॉक्टर की जिंदगी पूरी तरह बदल गई है। जब उन्होंने काम शुरू किया तो सबसे पहले मन में आया कि अब घर नहीं जाना है ताकि परिवारजनों को इंफेक्शन से बचा सकूं, लेकिन वह ऐसा कर नहीं पाईं।








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डॉ. बिधान चंद्र रॉय से जुड़े 4 किस्से: जब गांधी ने कहा- तुम 40 करोड़ देशवासियों का फ्री इलाज नहीं करते हो, रॉय बोले- मैं 40 करोड़ लोगों के प्रतिनिधि का इलाज मुफ्त कर रहा हूं

दुनियाभर के मरीजों को बचाने में कोरोनावॉरियर यानी डॉक्टर्स जुटे हैं। संक्रमण के बीच वो मरीजों का इलाज भी कर रहे हैं और खुद को बचाने की जद्दोजहद में भी लगे हैं। आज नेशनल डॉक्टर्स डे है, जो देश के प्रसिद्ध चिकित्सक और पश्चिम बंगाल के दूसरे मुख्यमंत्री डॉ. बिधान चंद्र रॉय के सम्मान में मनाया जाता है। केंद्र सरकार ने देश में डॉक्टर्स डे मनाने की शुरुआत1 जुलाई 1991 में की। 1 जुलाई उनका जन्मदिवस है। जानिए उनकी लाइफ से जुड़े 5दिलचस्प किस्से...

किस्सा 1 : जब बापू ने बिधान चंद्र से कहा, तुम मुझसे थर्ड क्लास वकील की तरह बहस कर रहे हो
1905 में जब बंगाल का विभाजन हो रहा था जब बिधान चंद्र रॉय कलकत्ता यूनिवर्सिटी में पढ़ाई कर रहे थे। उन्होंने अंग्रेजों के खिलाफ आंदोलन में हिस्सा लेने की जगह अपनी पढ़ाई को प्राथमिकता दी। पढ़ाई पूरी करने के बाद वह स्वतंत्रता आंदोलन से जुड़े और धीरे-धीरे बंगाल की राजनीति में पैर जमाए। इस दौरान वह बापू महात्मा गांधी के पर्सनल डॉक्टर रहे।
1933 में ‘आत्मशुद्धि’ उपवास के दौरान गांधी जी ने दवाएं लेने से मना कर दिया था। बिधान चंद्र बापू से मिले और दवाएं लेने की गुजारिश की। गांधी जी उनसे बोले, मैं तुम्हारी दवाएं क्यों लूं? क्या तुमने हमारे देश के 40 करोड़ लोगों का मुफ्त इलाज किया है?
इस बिधान चंद्र ने जवाब दिया, नहीं, गांधी जी, मैं सभी मरीजों का मुफ्त इलाज नहीं कर सकता। लेकिन मैं यहां मोहनदास करमचंद गांधी को ठीक करने नहीं आया हूं, मैं उन्हें ठीक करने आया हूं जो मेरे देश के 40 करोड़ लोगों के प्रतिनिधि हैं।इस पर गांधी जी ने उनसे मजाक करते हुए कहा, तुम मुझसे थर्ड क्लास वकील की तरह बहस कर रहे हो।

दूसरा किस्सा : रॉय इतने बड़े हैं कि नेहरू भी उनके हर मेडिकल ऑर्डर मानते हैं
डॉ. बिधान चंद्र रॉय की तारीफ का सबसे चर्चित किस्सा देश के पहले प्रधाानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू से जुड़ा है। बिधानचंद्र देश के उन डॉक्टर्स में से एक थे जिनकी हर सलाह का पालन पंडित जवाहर लाल पूरी सावधानी के साथ करते हैं। इसका जिक्र पंडित जवाहर लाल ने वॉशिग्टन टाइम्स को 1962 में दिए एक इंटरव्यू में किया था। उन्होंने उस दौर की बात अखबार से साझा की जब वो काफी बीमार थे और इलाज के लिए डॉक्टर्स का एक पैनल बनाया गया था, जिसमें रॉय शामिल थे। इंटरव्यू के बाद अखबार ने लिखा था, रॉय इतने बड़े हैं कि नेहरू भी उनके हर मेडिकल ऑर्डर का पालन करते हैं।

तीसरा किस्सा : सामाजिक भेदभाव का शिकार हुए, अमेरिक रेस्तरां ने रॉय को बाहर निकल जाने को कहा
1947 में बिधान चंद्र खाने के लिए अमेरिका के रेस्टोरेंटपहुंचे तो उन्हें देखकर सर्विस देने से मना कर दिया गया। पूरा घटनाक्रम न्यूयॉर्क टाइम्स में प्रकाशित हुआ। न्यूयॉर्क टाइम्स में प्रकाशित रिपोर्ट के मुताबिक, रॉय अपने पांच दोस्तों के साथ रेस्तरां पहुंचे। उनको देखकर रेस्तरां ऑपरेटर ने महिला वेटर से कहा, उनसे कहें, यहां उन्हें सर्विस नहीं जाएगी, वो यहां से खाना लेकर बाहर जा सकते हैं।
यह बात सुनने के बाद रॉय वहां से उठे और चले गए। घटना के बाद इस सामाजिक भेदभाव का पूरा किस्सा रिपोर्टर से साझा किया और भारत लौट आए।

चौथा किस्सा : आर्थिक तंगी से जूझ रहे सत्यजीत रे को आर्थिक मदद उपलब्ध कराई
जानेमाने फिल्मकार सत्यजीत रे को अपनी फिल्म पाथेर पंचाली बनाने के लिए आर्थिक संघर्ष से जूझना पड़ा था। कई दिक्कतों के बाद उनकी मां ने उन्हें अपने परिचितों से मिलवाया। रॉय उनमें से एक थे और तत्कालीन मुख्यमंत्री भी थे। रॉय सत्यजीत रे के इस प्रोजेक्ट से काफी प्रभावित हुए और उन्हें सरकारी आर्थिक मदद देने के लिए राजी हुए। इतना ही नहीं फिल्म पूरी होने के बाद रॉय ने जवाहर लाल नेहरू के लिए इस फिल्म की स्पेशल स्क्रीनिंग भी रखवाई। फिल्म में गरीबी से जूझते देश की कहानी दिखाई गई।

पांचवा किस्सा : डीन से 30 मुलाकातों के बाद उन्हें लंदन में मिला एडमिशन
रॉय हायर स्टडी के लिए 1909 में लंदन के सेंट बार्थोलोमिव्स हॉस्पिटल पहुंचे थे। लेकिन यहां उनके लिए एडमिशन लेना आसान नहीं रहा। सेंट बार्थोलोमिव्स हॉस्पिटल के डीन ने रॉय को एडमिशन न देने के लिए काफी कोशिशें की। उन्होंने करीब डेढ़ महीने तक रॉय को रोके रखा ताकि वे वापस लौट जाएं। रॉय ने भी एडमिशन के अपनी कोशिशें जारी रखीं। डीन से एडमिशन के लिए 30 बार मुलाकात की। अंतत: डीन का दिल पिघला और एडमिशन देने के लिए राजी हुए।
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नासा की कई टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल मेडिकल साइंस में

जिस तरह एक बीमारी को दूर करने के लिए एक डॉक्टर मानव शरीर को सूक्ष्म तरीके से समझने की कोशिश करता है, उसी प्रकार नासा अथाह अंतरिक्ष को गहराई से समझने की कोशिश करता है, ताकि हर नई खोज और ज्ञान को मानव कल्याण के लिए इस्तेमाल किया जा सके। नासा अधिकतर सरकारी एजेंसियों से बहुत अलग है। यह दुनियाभर की बाकी स्पेस एजेंसियों से भी अलग है।
बहुत कम लोग जानते हैं कि नासा के पास देश की सुरक्षा की ज़िम्मेदारी नहीं है। हम सिर्फ खोज और आविष्कार करते हैं। नासा पर पैसा कमाने का भार भी नहीं है। नासा दुनिया को एक अविभाजित अस्तित्व के तौर पर देखता है। नासा जब धरती को अंतरिक्ष से देखता है तो उसे सीमाएं नजर नहीं आती।
नासा में डॉक्टर होने के नाते मेरा काम यह सुनिश्चित करना है कि अंतरिक्ष में यात्रा करने वाले एस्ट्रोनॉट्स हर हाल में तंदरुस्त रहें। आज नासा की कई टेक्नोलॉजी मेडिकल साइंस में इस्तेमाल हो रही हैं। उदाहरण के तौर पर मानव शरीर के तापमान को नापने के लिए आज जिस थर्मो गन का इस्तेमाल हो रहा है, वह थर्मो स्कैन टेक्नोलॉजी पर आधारित है। इस टेक्नोलॉजी की मदद से नासा ग्रहों के तापमान को नाप लेता है।
नासा ने और भी कई ऐसी तकनीक इजाद की हैं, जिनका मेडिकल साइंस में इस्तेमाल हो सकता है। हमारे पास एक ऐक्वा सैटेलाइट है, जो हवा और मिट्टी में नमी को नापने का काम करता है। इस टेक्नोलॉजी के उपयोग से यह पता किया जा सकता है कि कहां मच्छर पनप रहे हैं, जो डेंगू और जीका जैसी बीमारियां बढ़ा सकते हैं। इस जानकारी के आधार पर पब्लिक हेल्थ अथॉरिटी सचेत होकर रोकथाम की कार्यवाही कर सकती है।
कोविड-19 के मरीजों को वेंटिलेटर की आवश्यकता पड़ती है। नासा की जॉइंट प्रपल्शन लैब के इंजीनियरों ने मात्र 39 दिनों में न सिर्फ हल्का और कारगर वेंटिलेटर बनाया, बल्कि बिना लाइसेंस फीस के कई देशों को इसे बनाने की छूट भी दे दी है। जो भी देश इस टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल करना चाहते हैं वे कर सकते हैं। कोरोना महामारी के दौरान मरीजों को ऑक्सीजन की जरूरत पड़ रही है। आप जानते हैं कि अंतरिक्ष में ऑक्सीजन है ही नहीं। हम ऐसी टेक्नोलॉजी पर काम कर रहे हैं, जिसे ऑक्सीजन कॉन्सनट्रेटर्स कहते हैं।
इसकी मदद से यंत्र वातावरण में मौजूद भाप को इलेक्ट्रॉनिक प्रोसेस से ऑक्सीजन में बदल देगा। यानी ऑक्सीजन की बोतलों को भरने या बदलने की आवश्यकता ही नहीं पड़ेगी। इस तकनीक को हम स्पेस में तो इस्तेमाल कर रहे हैं, लेकिन जल्दी ही इसका इस्तेमाल आसानी से अस्पतालों में हो सकेगा। इस तकनीक का सबसे ज्यादा लाभ उन देशों को होगा जो आज ऑक्सीजन के सप्लाई चेन से बहुत दूर हैं। वे जहां जरूरत हो ऑक्सीजन बना सकते हैं। आप सोच के देखिए वो परिस्थिति जब एक भी मरीज की मौत किसी भी अस्पताल में ऑक्सीजन की कमी से नहीं होगी। ऐसा समय दूर नहीं है।
दिसंबर के अंत में या जनवरी की शुरुआत में हमें चीन में पनप रही बीमारी के बारे में पता लगना शुरू हुआ। हमें ऐसा लगा कि सार्स या मर्स की तरह ही इस बीमारी को भी रोक लिया जाएगा। लेकिन एक स्पेस एजेंसी होने के नाते हमने जनवरी की शुरुआत में अपने सिस्टम्स की टेस्टिंग इस नज़रिए से शुरू कर दी थी कि अगर जरूरत पड़ी तो क्या हम बिना ऑफिस आए काम जारी रख सकते हैं। हमारे लिए ये जानना जरूरी था कि अगर हम टेलिवर्क करते हैं तो हमारा आईटी सिस्टम कितना लोड ले सकता है।
कोरोना वारयस के बारे में जानकारी मिलने के तुरंत बाद ही नासा की टॉप लीडरशिप ने बहुत जल्दी ऐसे निर्णय लेने शुरू कर दिए थे ताकि कम से कम मानव संसाधन के इस्तेमाल से जरूरी काम नासा के सेंटर से किए जा सकें और बाकी सब लोग टेलिवर्क कर सकें। बिना यात्रा किए अगर काम को अंजाम देना हो तो लॉजिस्टिकल चुनौतियां क्या हो सकती हैं इसका मूल्यांकन भी हमने बहुत जल्दी शुरू कर दिया था। जिन लोगों को डीएम-2 स्पेस एक्स मिशन के लिए स्पेस यात्रा करनी थी, हमने तत्काल उनके लिए कोविड टेस्टिंग की व्यवस्था कर दी थी। हम स्पेस स्टेशन में किसी किस्म का संक्रमण बर्दाश्त नहीं कर सकते। खास तौर पर ऐसा संक्रमण, जिसकी न तो दवा हो और ना ही कोई वैक्सीन।
महामारियों का अनुमान लगाने और वैक्सीन-दवा बनाने तक में भविष्य में सुपर कंप्यूटिंग और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस से काफी मदद मिलेगी। इसरो जैसे संस्थानों के साथ साझा कार्यक्रम भी बहुत कारगर सिद्ध हो सकता है। स्पेस हमें बताता है कि अनंत ब्रह्मांड में हम रेत के जर्रे के बराबर भी नहीं हैं। हम सिर्फ इतना ही मान सकते हैं कि यात्रा करना ही हम सब की नियति है। यात्रा की तुलना में मंजिल का अस्तित्व उतना महत्वपूर्ण नहीं है।
(जैसा उन्होंने रितेश शुक्ल को बताया)
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भारत और चीन के बीच विवाद से जुड़े हुए सात कड़वे सच

आज भारत-चीन सीमा पर संकट का सामना करने के लिए उसी देशप्रेम की जरूरत है, जिसका परिचय राममनोहर लोहिया और अटल बिहारी वाजपेयी ने साठ साल पहले दिया था। वर्ष 1962 के चीन युद्ध से पहले चीन पर कड़वा सच बोलने से सब कतराते थे। या तो वे नेहरू से घबराते थे, या माओ के मोह में फंस जाते थे। इस माहौल में सबसे पहले राम मनोहर लोहिया ने चीन से देश की सुरक्षा को खतरे और नेहरू की लापरवाही के प्रति देश को आगाह किया था।
युद्ध के बाद संसद में अटल बिहारी वाजपेयी ने भी भारत-चीन संबंध का कड़वा सच सामने रखा था। आज फिर चुप्पी का पर्दा डालने की कोशिश है। ऐसे में इस चुनौती का सामना करने के लिए हम सबसे पहले सच का सामना करें, भारत-चीन संबंध के विवाद के सात कड़वे सच बिना लाग-लपेट के देश के सामने पेश किए जाएं।
पहला कड़वा सच: चीन की फौज एलएसी को पार कर हमारी 40-60 वर्ग किलोमीटर जमीन पर कब्जा करके बैठ गई है। इसकी पुष्टि सैटेलाइट तस्वीरों से हुई है। हमारी सेना और विदेश मंत्रालय के बयानों से भी यही आशय निकलता है। प्रधानमंत्री का कहना सच नहीं है कि ‘ना कोई हमारी सीमा में घुसा है, न ही कोई वहां घुसा हुआ है, न ही हमारी कोई पोस्ट दूसरे के कब्जे में है’। कड़वा सच यह है कि प्रधानमंत्री के बयान को चीन ने जमकर भुनाया। पूरा सच यह है कि 62 के युद्ध के बाद भी चीन द्वारा कब्जे की यह पहली घटना नहीं थी। पर कांग्रेसी प्रधानमंत्रियों ने इतनी नासमझी का बयान नहीं दिया था।
दूसरा कड़वा सच: चीन अपना कब्जा नहीं छोड़ेगा। दोनों सेनाओं के पीछे हटने जैसी खबर भ्रामक है। कड़वा सच यह है कि हमारी जमीन पर जिस चीनी चौकी को हटाने के लिए हमारे 20 जवान शहीद हुए थे, ठीक उसी जगह चीन ने और बड़ी चौकी बना ली है। बातचीत में चीन का रुख वही है जिसे हरियाणवी में कहते हैं ‘पंचों की बात सर माथे, लेकिन परनाला वहीं गिरेगा!’ पूरा सच यह है कि चीन दो कदम आगे लेकर, एक कदम पीछे खींचने वाला खेल कई बार दोहरा चुका है।
तीसरा कड़वा सच: चीन का यह कब्जा सरकार की लापरवाही के कारण हुआ। सितंबर में चीन के आक्रामक रुख का इशारा मिला था। मार्च तक चीन तैयारी कर चुका था। अप्रैल में सरकार को चीन के इरादों का पता लग गया था। मई में कब्जा हुआ। सेना और राष्ट्रीय सुरक्षा व्यवस्था की चेतावनी के बावजूद सरकार ने आंखें बंद रखीं। इसकी कोई गारंटी नहीं कि कोई दूसरी सरकार यह गफलत ना करती। लेकिन यह तय है राष्ट्रीय सुरक्षा के मामले में यह सरकार दूसरों से बेहतर नहीं है।
चौथा कड़वा सच: चीन की फौज को मुंहतोड़ जवाब निहत्थे सैनिकों ने दिया, सरकार ने नहीं। हमारी सेना को आक्रामक चीनी फौजियों का मुकाबला करने की जो छूट गलवान घाटी मुठभेड़ के बाद मिली, वह पहले नहीं दी गई थी। सच यह है कि पाकिस्तान और बाकी पड़ोसियों के सामने शेर की तरह गुर्राने वाली इस सरकार के मुंह में चीन के मामले में दही जम गया था।
पांचवां कड़वा सच: आज चीन से युद्ध करके कब्ज़ा छुड़ाना संभव नहीं है। एटम बॉम्ब के रहते खुले युद्ध का विकल्प न भारत के पास है, न चीन के। जमीनी लड़ाई में पराक्रम और मानसिक बल में हमारी फौज किसी से उन्नीस नहीं है। लेकिन पहले से काबिज चीनी फौज को इन इलाकों में बेहतर इंफ्रास्ट्रक्चर का फायदा है। इसकी जिम्मेदारी जितनी इस सरकार की है, उतनी ही पिछली सरकारों की भी।
छठा कड़वा सच: फिलहाल कूटनीति के जरिए चीन को मना या झुका लेना संभव नहीं दिखता। बेशक बहुत से देश चीन से नाराज हैं, लेकिन वे भारत के सवाल पर चीन से संबंध खराब नहीं करेंगे। प्रधानमंत्री भले ही ट्रम्प को अपना यार समझें, लेकिन ट्रम्प को भारत की चिंता नहीं है। उधर पड़ोस के बाकी देशों से हमने उचित-अनुचित झगड़ा मोल ले रखा है।
सातवां कड़वा सच: भारत के किसी बॉयकॉट या बैन से चीन की अर्थव्यवस्था पर बहुत फर्क नहीं पड़ेगा। फिलहाल चीनी वस्तुओं का आयात रोकने से भारत को ही नुकसान होगा। दोनों अर्थव्यवस्थाओं में यह असंतुलन नई बात नहीं है। इसके लिए भी केवल वर्तमान सरकार को दोषी नहीं ठहरा सकते।
एक स्वतंत्र, सार्वभौम राष्ट्र होने के नाते हमें सीमा पर चीन की दादागिरी का सामना करना होगा। लेकिन इस चुनौती का सामना जनता की आंख में धूल झोंकने से नहीं होगा, किसी सांकेतिक नौटंकी से नहीं होगा। भारत को अपने तरीके से, अपना समय चुनकर, अपने चुनिंदा क्षेत्र में चीन की इस चुनौती का जवाब देना होगा। इसके लिए पूरे देश को एकजुट होकर संकल्प लेना होगा। इस राष्ट्रीय एकता को बनाने और देश के सामने पूरा सच रखने की शुरुआत प्रधानमंत्री को करनी होगी।
(ये लेखक के अपने विचार हैं)
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